IBC धारा 7 के तहत आवेदन में ‘डिफेक्टिव एफिडेविट’ होने पर उसे सीधे खारिज नहीं किया जा सकता; सुधार का मौका देना अनिवार्य: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC), 2016 की धारा 7 के तहत दायर आवेदन को केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि उसके समर्थन में दिया गया शपथ पत्र (Affidavit) त्रुटिपूर्ण (defective) है। शीर्ष अदालत ने व्यवस्था दी है कि ऐसी प्रक्रियात्मक खामियां सुधार योग्य (curable) होती हैं और ये आवेदन को ‘कानूनन अस्तित्वहीन’ (non est) नहीं बनातीं।

कोर्ट ने यह भी कहा कि नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) ऐसी खामियों के लिए आवेदन को तब तक खारिज नहीं कर सकता, जब तक कि आवेदक को IBC की धारा 7(5)(b) के प्रावधान (proviso) के तहत नोटिस देकर त्रुटि सुधारने के लिए 7 दिनों का समय न दिया जाए।

जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे की पीठ इस कानूनी सवाल पर विचार कर रही थी कि क्या किसी IBC आवेदन को केवल इसलिए खारिज किया जा सकता है क्योंकि उसका सत्यापन (verification) शपथ पत्र की तारीख के बाद किया गया था। पीठ ने फैसला सुनाया कि यह एक प्रक्रियात्मक त्रुटि है जिसे सुधारा जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि NCLT रजिस्ट्री द्वारा जारी किया गया ‘सामान्य नोटिस’ कानून की धारा 7(5)(b) के तहत अनिवार्य ‘विशिष्ट नोटिस’ की जगह नहीं ले सकता।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला लिवइन एक्वा सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड (अपीलकर्ता कंपनी) और एचडीएफसी बैंक (HDFC Bank) के बीच का है। कंपनी ने बैंक से 5.5 करोड़ रुपये का ऋण लिया था, जिसे 4 अगस्त 2019 को नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (NPA) घोषित कर दिया गया। इसके बाद, एचडीएफसी बैंक ने कॉर्पोरेट इनसॉल्वेंसी रिज़ॉल्यूशन प्रोसेस (CIRP) शुरू करने के लिए NCLT, अहमदाबाद बेंच के समक्ष IBC की धारा 7 के तहत आवेदन दायर किया।

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इस आवेदन में एक तकनीकी पेंच फंस गया। आवेदन का सत्यापन (verification) 26 जुलाई 2023 को किया गया था, जबकि इसके समर्थन में शपथ पत्र 17 जुलाई 2023 को ही बनवा लिया गया था। NCLT की जांच शाखा ने इसे त्रुटि माना। बाद में, संयुक्त रजिस्ट्रार ने एक समेकित (consolidated) नोटिस जारी कर कई याचिकाओं में सुधार के निर्देश दिए, लेकिन बैंक द्वारा सुधार न किए जाने पर 18 जून 2024 को NCLT ने आवेदन खारिज कर दिया।

इसके खिलाफ बैंक ने नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) का दरवाजा खटखटाया। NCLAT ने 27 अगस्त 2025 को NCLT के आदेश को पलट दिया और मामले को गुण-दोष के आधार पर सुनने के लिए रिस्टोर कर दिया। इसी आदेश के खिलाफ कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।

पक्षों की दलीलें

अपीलकर्ता (लिवइन एक्वा सॉल्यूशंस): कंपनी की ओर से तर्क दिया गया कि एचडीएफसी बैंक का आवेदन ‘non est’ (यानी कानून की नजर में जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है) था। उनका कहना था कि NCLT नियम, 2016 के नियम 10(1) का पालन नहीं किया गया और चूंकि सत्यापन की तारीख शपथ पत्र के बाद की है, इसलिए आवेदन शुरू से ही खारिज होने योग्य था।

प्रतिवादी (HDFC बैंक): बैंक ने NCLAT के समक्ष स्वीकार किया था कि आवेदन में त्रुटि थी, लेकिन उन्होंने तर्क दिया कि यह एक ऐसी गलती है जिसे बेहतर शपथ पत्र दाखिल करके सुधारा जा सकता है। प्रक्रियात्मक अनियमितता के कारण आवेदन को खारिज नहीं किया जाना चाहिए।

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सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण

जस्टिस संजय कुमार की अगुवाई वाली पीठ ने NCLT नियमों और IBC के प्रावधानों का विस्तार से विश्लेषण किया:

1. प्रक्रियात्मक त्रुटि घातक नहीं: कोर्ट ने कहा कि उदय शंकर त्रियार बनाम राम कलेवर प्रसाद सिंह (2006) के फैसले के अनुसार, प्रक्रियात्मक दोषों को मौलिक अधिकारों को हराने या अन्याय का कारण बनने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, जब तक कि कानून स्पष्ट रूप से ऐसा न कहे। कोर्ट ने माना कि ‘दोषपूर्ण’ शपथ पत्र दाखिल करने से आवेदन ‘non est’ नहीं हो जाता।

2. धारा 7(5)(b) के तहत नोटिस अनिवार्य: कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि IBC की धारा 7(5)(b) का परंतुक (proviso) स्पष्ट करता है कि आवेदन खारिज करने से पहले एडजुडिकेटिंग अथॉरिटी (NCLT) को आवेदक को नोटिस देना होगा और उसे गलती सुधारने के लिए 7 दिन का समय देना होगा।

कोर्ट ने पाया कि NCLT रजिस्ट्री द्वारा वेबसाइट या नोटिस बोर्ड पर जारी किया गया ‘सामान्य नोटिस’ इस कानूनी आवश्यकता को पूरा नहीं करता। नोटिस विशेष रूप से आवेदक को दिया जाना चाहिए था।

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3. NCLAT के आदेश में सुधार: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि NCLAT ने आवेदन की अस्वीकृति को सही तौर पर रद्द किया, लेकिन उसने एक गलती की। NCLAT को मामले को सीधे सुनवाई के लिए भेजने के बजाय, पहले बैंक को अपनी गलती (शपथ पत्र) सुधारने का निर्देश देना चाहिए था।

निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने अपील का निपटारा करते हुए निम्नलिखित निर्देश दिए:

  1. त्रुटि सुधार: एचडीएफसी बैंक को निर्देश दिया गया है कि वह आज से 7 दिनों के भीतर एक सही शपथ पत्र दाखिल कर अपनी अर्जी की त्रुटियों को दूर करे।
  2. सुनवाई: त्रुटि सुधार के बाद, NCLT अहमदाबाद बेंच इस मामले को कानून और प्रक्रिया के अनुसार गुण-दोष (merits) पर सुनेगी।
  3. दोनों पक्ष अपना-अपना कानूनी खर्च स्वयं वहन करेंगे।

केस विवरण:

  • केस टाइटल: लिवइन एक्वा सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड बनाम एचडीएफसी बैंक लिमिटेड
  • केस नंबर: सिविल अपील संख्या 11766 ऑफ 2025 (2025 INSC 1349)
  • कोरम: जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे

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