आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने बताया रेल डिब्बा, कहा– जो अंदर हैं, वे दूसरों को नहीं आने देना चाहते

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आरक्षण व्यवस्था की तुलना ट्रेन के डिब्बे से करते हुए कहा कि भारत में जो लोग एक बार आरक्षण का लाभ लेकर ‘डिब्बे’ में प्रवेश कर जाते हैं, वे दूसरों को उसमें प्रवेश नहीं करने देना चाहते।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को दिए गए 27 प्रतिशत आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता मंगेश शंकर ससाणे की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि जयंत कुमार बंथिया की अध्यक्षता वाले राज्य आयोग ने ओबीसी की राजनीतिक पिछड़ापन की स्थिति का मूल्यांकन किए बिना आरक्षण की सिफारिश कर दी।

इस पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “इस देश में आरक्षण का मामला अब ट्रेन जैसा हो गया है। जो लोग एक बार डिब्बे में चढ़ जाते हैं, वे नहीं चाहते कि कोई और उसमें चढ़े। यही असल खेल है, और याचिकाकर्ता का भी यही मकसद है।”

वरिष्ठ वकील शंकरनारायणन ने जवाब में कहा कि डिब्बों को पीछे जोड़ा भी जा रहा है। उन्होंने तर्क दिया कि सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ापन अलग चीज है, और किसी समूह को ओबीसी घोषित कर देना अपने आप में उसे राजनीतिक रूप से पिछड़ा घोषित नहीं करता।

उन्होंने कहा, “ओबीसी वर्ग के भीतर भी यह पहचान जरूरी है कि कौन राजनीतिक रूप से पिछड़े हैं और कौन सामाजिक रूप से, तभी आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए।”

इस पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि समावेशिता के सिद्धांत के अनुसार, राज्य सरकारों को और अधिक वर्गों की पहचान करनी होगी। “सामाजिक पिछड़े वर्ग होंगे, राजनीतिक पिछड़े वर्ग होंगे, और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग भी होंगे। तो फिर उन्हें इसका लाभ क्यों न मिले? इसे किसी एक परिवार या समूह तक क्यों सीमित रखा जाए?” उन्होंने कहा।

शीर्ष अदालत ने इस याचिका पर महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा है और इसे पहले से लंबित मामलों के साथ टैग कर दिया है।

READ ALSO  न्यायिक विस्टा और विशेष न्यायिक अवसंरचना प्राधिकरण की मांग हेतु याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया

इस बीच, ओबीसी आरक्षण से जुड़ी एक अन्य याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने राज्य चुनाव आयोग को आदेश दिया कि वह आगामी चार सप्ताह के भीतर महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों की अधिसूचना जारी करे। ये चुनाव 2022 की बंथिया आयोग रिपोर्ट से पहले की स्थिति के अनुसार कराए जाएंगे।

कोर्ट ने निर्देश दिया कि चुनाव प्रक्रिया चार महीने के भीतर पूरी की जाए, हालांकि आयोग उपयुक्त परिस्थितियों में समय बढ़ाने की मांग कर सकता है। साथ ही कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इन चुनावों के परिणाम सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिकाओं के अंतिम निर्णयों के अधीन होंगे।

READ ALSO  तीसरे पक्ष के विरुद्ध 'एग्रीमेंट टू सेल' के आधार पर स्थायी निषेधाज्ञा का दावा सुनवाई योग्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

गौरतलब है कि 22 अगस्त 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और चुनाव आयोग को स्थानीय निकाय चुनावों की प्रक्रिया में यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया था।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles