सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में संदिग्ध समीर कुलकर्णी की अपील खारिज कर दी, जिसमें गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत अभियोजन स्वीकृति की वैधता को चुनौती दी गई थी। शीर्ष अदालत ने बॉम्बे हाईकोर्ट के पिछले फैसले को बरकरार रखा, जिसने कुलकर्णी की याचिका को भी खारिज कर दिया था।
मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस एम एम सुंदरेश और जस्टिस अरविंद कुमार ने कहा कि उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने का कोई ठोस कारण नहीं मिला। कार्यवाही के दौरान बेंच ने कहा, “हमें विवादित फैसले में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला।”
वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान द्वारा प्रस्तुत कुलकर्णी ने तर्क दिया कि यूएपीए की धारा 45(2) के तहत आवश्यक स्वीकृति प्राप्त नहीं की गई थी, इस प्रकार इस अधिनियम के तहत आरोप अमान्य हो गए। दीवान ने इस बात पर जोर दिया कि एक बार जब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने मामले को अपने हाथ में ले लिया, तो केंद्र सरकार से मंजूरी लेना अनिवार्य था।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 30 अप्रैल को विशेष अदालत में कुलकर्णी के खिलाफ कार्यवाही रोक दी थी, क्योंकि 28 जून, 2023 के बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली उनकी याचिका की समीक्षा लंबित थी। कुलकर्णी ने तर्क दिया कि मुंबई में विशेष एनआईए अदालत में मुकदमा सक्षम प्राधिकारी से वैध मंजूरी के बिना चलाया गया था, जैसा कि यूएपीए की धारा 45 के तहत आवश्यक है।
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2008 के मालेगांव विस्फोट में छह लोगों की मौत हो गई थी और लगभग 100 लोग घायल हो गए थे, जिसमें महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव शहर में एक मोटरसाइकिल पर बम लगाया गया था। इस साजिश के सिलसिले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित सहित कई लोगों को गिरफ्तार किया गया था। हालांकि, महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) से जांच अपने हाथ में लेने वाली एनआईए ने बाद में साध्वी प्रज्ञा को दोषमुक्त कर दिया।