सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को नोएडा टोल ब्रिज कंपनी लिमिटेड (NTBCL) की उस पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया जिसमें दिसंबर 2024 के निर्णय की समीक्षा की मांग की गई थी। उस निर्णय में अदालत ने दिल्ली-नोएडा-डायरेक्ट (DND) फ्लाईवे को टोल-मुक्त घोषित किया था।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने 20 दिसंबर 2024 के फैसले को दोहराते हुए कहा कि इस मामले में पुनर्विचार की कोई जरूरत नहीं है। पहले दिए फैसले में अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2016 के आदेश को बरकरार रखते हुए NTBCL को टोल वसूली रोकने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि कंपनी ने परियोजना की लागत और पर्याप्त मुनाफा पहले ही वसूल लिया है, इसलिए आगे टोल वसूली न्यायसंगत नहीं है।
सुनवाई के दौरान कंपनी के वकील ने नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में कंपनी के पक्ष में कुछ टिप्पणियों का हवाला दिया, जो कथित रूप से फैसले में नहीं दिखाई गई थीं। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “आपने पहले ही काफी पैसा कमा लिया है।”

पीठ ने NTBCL के वरिष्ठ अधिकारी प्रदीप पुरी की एक अलग याचिका पर भी विचार किया, जिसमें उन्होंने दिसंबर के फैसले में उनके खिलाफ की गई कथित व्यक्तिगत टिप्पणियों को हटाने या स्पष्ट करने की मांग की थी। अदालत ने कहा कि वह CAG रिपोर्ट का प्रासंगिक अंश रिकॉर्ड में शामिल करेगी और यह देखेगी कि क्या टिप्पणियों को स्पष्ट किया जा सकता है। साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि ऑडिट रिपोर्ट में कोई व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट के मूल निर्णय में नोएडा प्राधिकरण, उत्तर प्रदेश सरकार और दिल्ली सरकार की भूमिका पर भी सख्त टिप्पणी की गई थी, जिसे न्यायालय ने “लोकहित के प्रति गंभीर विश्वासघात” बताया था।
कोर्ट ने कहा था:
“NTBCL ने परियोजना लागत और पर्याप्त मुनाफा पहले ही वसूल लिया है, इसलिए टोल वसूली जारी रखने का कोई औचित्य नहीं बचता।”
CAG रिपोर्ट के अनुसार, 2001 से 2016 के बीच कंपनी ने टोल से ₹892.51 करोड़ की कमाई की, ₹243.07 करोड़ लाभांश के रूप में बांटे, और 31 मार्च 2016 तक कंपनी के ऊपर कोई बकाया ऋण नहीं था।
अदालत ने दोहराया कि किसी भी निजी संस्था को सार्वजनिक अधोसंरचना के माध्यम से अनुचित मुनाफा कमाने की इजाजत नहीं दी जा सकती, खासकर तब जब वैधानिक संस्थाएं जैसे कि नोएडा प्राधिकरण अपनी सीमाएं पार कर निजी कंपनियों को शुल्क वसूली की शक्ति दे देती हैं।