सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक पूर्व न्यायिक अधिकारी के खिलाफ उसकी बेटी द्वारा लगाए गए यौन शोषण के आरोपों पर दर्ज आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया। न्यायालय ने कहा कि यह मामला “चौंकाने वाला” है और इसका परीक्षण आवश्यक है।
जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने आरोपी पूर्व जज द्वारा बॉम्बे हाईकोर्ट के 15 अप्रैल के आदेश को चुनौती देने वाली विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई की। हाईकोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) और पोक्सो कानून (POCSO Act) के तहत दर्ज एफआईआर और आरोपों को रद्द करने से इनकार कर दिया था।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि यह मामला एक लंबे समय से चल रहे वैवाहिक विवाद से उत्पन्न हुआ है और इसे प्रतिशोध के रूप में दर्ज किया गया है। उन्होंने कहा कि कथित घटनाओं के कई सालों बाद ये आरोप सामने आए हैं, जबकि शिकायतकर्ता पत्नी को 2014 से इसकी जानकारी थी, लेकिन उन्होंने 2019 तक कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की।

हालांकि, पीठ ने आरोपों की गंभीरता को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की और कहा:
“हम इन बातों में नहीं पड़ना चाहते। आत्महत्या बेटे की हरकतों के कारण भी हो सकती है। बेटी आरोप लगा रही है… यह चौंकाने वाला मामला है। वह एक न्यायिक अधिकारी है और उस पर गंभीर प्रकार के incest (रक्त संबंधी यौन शोषण) के आरोप हैं! यह चौंकाने वाला है। और यह आरोप उसकी अपनी बेटी ने लगाए हैं। ज़ाहिर है, वह मानसिक रूप से आहत हुई होगी। ऐसे मामले में कार्यवाही रद्द कैसे की जा सकती है?”
न्यायालय ने याचिकाकर्ता की पृष्ठभूमि संबंधी दलीलों को खारिज करते हुए हाईकोर्ट के आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया। साथ ही ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह मामले की सुनवाई शीघ्र करे।
आरोप और घटनाक्रम
याचिका के अनुसार, एफआईआर 21 जनवरी 2019 को महाराष्ट्र के भंडारा में दर्ज की गई थी। आरोप मई 2014 से 2018 के बीच हुई घटनाओं से संबंधित हैं। चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है, लेकिन विशेष पोक्सो कोर्ट में अब तक आरोप तय नहीं हुए हैं।
याचिकाकर्ता पर निम्नलिखित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है:
- भारतीय दंड संहिता की धारा 354 – किसी महिला की लज्जा भंग करने की नीयत से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग।
- पोक्सो अधिनियम की धारा 7, 8, 9(ल), 9(न), और 10 – यौन उत्पीड़न, गंभीर यौन उत्पीड़न, और रिश्तेदार द्वारा अथवा विश्वास या अधिकार की स्थिति में किया गया यौन अपराध।
याचिका में यह भी दावा किया गया है कि शिकायत याचिकाकर्ता के पिता की दिसंबर 2018 में हुई आत्महत्या के तुरंत बाद दर्ज कराई गई। कथित रूप से आत्महत्या पत्र में शिकायतकर्ता और उसके परिवार को आत्महत्या के लिए दोषी ठहराया गया था। याचिका में यह भी कहा गया कि बेटी का बयान पिता की आत्महत्या के बाद कथित रूप से प्रभावित कर दर्ज कराया गया।
याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि हाईकोर्ट द्वारा पोक्सो अधिनियम के तहत कानूनी presumption (अनुमान) लगाने का आधार नहीं है क्योंकि अब तक कोई प्रारंभिक तथ्य स्थापित नहीं हुए हैं, और मुकदमे पूर्व चरण में ऐसा अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप से इनकार किए जाने के बाद अब यह मामला विशेष पोक्सो अदालत में आगे बढ़ेगा।