सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कर्नाटक के धर्मस्थल में कथित सामूहिक दफन मामले की मीडिया कवरेज पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि “गैग ऑर्डर” (मीडिया पर रोक) सिर्फ अत्यंत असाधारण मामलों में ही जारी किए जाते हैं।
न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने हालांकि कर्नाटक की एक निचली अदालत को निर्देश दिया कि वह धर्मस्थल मंदिर के सचिव हर्षेन्द्र कुमार डी की उस याचिका पर दोबारा विचार करे जिसमें उन्होंने मंदिर परिवार पर कथित अपमानजनक सामग्री हटाने की मांग की थी।
शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि उसने इस मामले के मेरिट पर कोई राय नहीं दी है और याचिकाकर्ता को सभी आवश्यक सामग्री निचली अदालत के समक्ष प्रस्तुत करने को कहा।

यह मामला उस समय चर्चा में आया जब सोशल मीडिया और कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले स्थित धर्मस्थल मंदिर के पास कई महिलाओं की हत्या कर उन्हें दफनाया गया। बेंगलुरु की एक दीवानी अदालत ने इस पर अंतरिम आदेश जारी कर 390 मीडिया संस्थानों को रिपोर्टिंग से रोकते हुए करीब 9,000 लिंक और खबरें हटाने का निर्देश दिया था।
हालांकि, कर्नाटक हाईकोर्ट ने 1 अगस्त को इस आदेश को रद्द कर दिया।
हर्षेन्द्र कुमार डी ने दावा किया कि मंदिर और उसके प्रबंधन के खिलाफ करीब 8,000 यूट्यूब चैनलों द्वारा झूठी और मानहानिकारक सामग्री प्रसारित की जा रही है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था कि इस तरह की सामग्री हटाने के लिए निर्देश दिए जाएं।
गौरतलब है कि 23 जुलाई को भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक अन्य याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया था, जिसे यूट्यूब चैनल थर्ड आई ने दायर किया था। उस याचिका में धर्मस्थल विवाद से जुड़े विषयों पर मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक लगाने वाले आदेश को चुनौती दी गई थी।
अब तक किसी भी प्राथमिकी (FIR) में न तो मंदिर प्रशासन और न ही हर्षेन्द्र कुमार के खिलाफ कोई ठोस आरोप दर्ज किया गया है। बावजूद इसके, मामले की गंभीरता को देखते हुए कर्नाटक सरकार ने विशेष जांच दल (SIT) का गठन कर दिया है।
राज्य के गृह मंत्री जी परमेश्वर ने हाल ही में कहा था कि धर्मस्थल में महिलाओं की कथित हत्याओं के आरोपों की जांच निष्पक्ष और गहराई से होनी चाहिए, ताकि किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले सच्चाई सामने लाई जा सके।
पृष्ठभूमि
धर्मस्थल मंदिर कर्नाटक का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है, जिसका प्रबंधन धर्माधिकारी डी वीरेंद्र हेगड़े के परिवार द्वारा किया जाता है। हालिया विवाद के बाद सोशल मीडिया और यूट्यूब पर हजारों वीडियो सामने आए, जिनमें मंदिर प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए गए। इस मामले ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धार्मिक भावनाओं और प्रतिष्ठा के अधिकार के बीच संतुलन के सवाल को एक बार फिर उजागर कर दिया है।