राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सक्रिय 95 आपराधिक गिरोहों के खुलासे के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इन मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए विशेष अदालतें गठित करने का सुझाव दिया। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया में देरी का फायदा उठाकर कुख्यात अपराधी जमानत पा रहे हैं, जिससे न्याय प्रणाली की गंभीर चूक उजागर होती है।
पीठ ने गवाहों की सुरक्षा को लेकर भी चिंता जताई। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “अगर आप मुकदमे को लंबित रखते हैं, तो अपराधियों को जमानत मिल जाती है। और जिस देश में गवाहों की सुरक्षा नहीं है, वहां आप जानते हैं कि गवाहों का क्या हश्र होता है।”
दिल्ली सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.डी. संजय ने अदालत को बताया कि उन्होंने एक डीसीपी के साथ मिलकर राजधानी में फैले अपराधी गिरोहों की विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है। सुनवाई के दौरान एक युवती की हत्या का मामला भी सामने आया, जो एक हत्या के मुकदमे में मुख्य गवाह थी। पहले इस मामले को प्रेम प्रसंग का रूप दिया गया, लेकिन बाद में पता चला कि यह एक पूर्व नियोजित हत्या थी, जिससे गवाह को चुप कराया जा सके।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि विशेष अदालतों की संख्या का निर्धारण लंबित मामलों की संख्या के आधार पर होना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया, “प्रत्येक अदालत में पांच से दस मामलों की सुनवाई के लिए आवश्यक समय का आकलन करें और फिर उसके अनुसार विशेष अदालतों की योजना बनाएं।”
सुनवाई के केंद्र में गैंगस्टर महेश खत्री उर्फ भोली का मामला था, जिसने हाईकोर्ट से जमानत याचिका खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में राहत की मांग की थी। अदालत ने इस दौरान यह भी टिप्पणी की कि इस तरह के आपराधिक नेटवर्क केवल दिल्ली तक सीमित नहीं हैं, बल्कि हरियाणा सहित पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में फैले हुए हैं।