मद्रास हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जी आर स्वामीनाथन के करुण दीपम (Karthigai Deepam) दीये को मदुरै स्थित तिरुप्परंकुंद्रम पहाड़ी पर जलाने की अनुमति देने वाले आदेश के खिलाफ कथित तौर पर “जातीय और धार्मिक आधार पर अपमानजनक” टिप्पणी करने वाले प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है।
यह याचिका अधिवक्ता जी एस मणि ने दाखिल की है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि सत्तारूढ़ डीएमके समर्थित दलों, वामपंथी संगठनों, कुछ वकीलों और अन्य व्यक्तियों ने चेन्नई और मदुरै में मद्रास हाईकोर्ट के परिसर सहित सार्वजनिक स्थलों पर “अवैध प्रदर्शन” किए और न्यायमूर्ति स्वामीनाथन के खिलाफ “गंभीर अपमानजनक और जातीय-धार्मिक” टिप्पणियाँ कीं।
याचिका में क्या कहा गया है
याचिका के अनुसार, विरोध प्रदर्शन जानबूझकर न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाने और सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने के उद्देश्य से किए गए। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि तमिलनाडु सरकार और पुलिस को निर्देशित किया जाए कि वे ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई करें, जिसमें आपराधिक मुकदमे दर्ज करना भी शामिल हो।
याचिकाकर्ता का कहना है कि यह केवल एक धार्मिक आयोजन के आदेश के खिलाफ असहमति नहीं थी, बल्कि न्यायिक स्वतंत्रता के खिलाफ संगठित हमला था जिसमें न्यायाधीश को उसकी जाति और धर्म के आधार पर निशाना बनाया गया।
करुण दीपम आदेश क्या था?
न्यायमूर्ति जी आर स्वामीनाथन ने 1 दिसंबर को एक आदेश पारित कर भक्तों को तिरुप्परंकुंद्रम पहाड़ी पर स्थित “दीपथून” नामक एक पत्थर के स्तंभ पर करुण दीपम का दीप जलाने की अनुमति दी थी। यह क्षेत्र एक दरगाह के निकट स्थित है, जिसे लेकर आपत्तियां उठाई गई थीं।
अपने आदेश में न्यायाधीश ने स्पष्ट किया था कि:
“दीपथून पर दीप जलाने से दरगाह की संरचना को कोई क्षति नहीं होगी, क्योंकि वह कम से कम 50 मीटर की दूरी पर स्थित है।”
हालांकि, जब यह आदेश लागू नहीं हुआ, तो न्यायालय ने 3 दिसंबर को एक और आदेश जारी किया जिसमें भक्तों को स्वयं दीप जलाने की अनुमति दी गई और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) को उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया।
इसके बाद, डीएमके सरकार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
सुप्रीम कोर्ट से क्या मांग की गई है?
जी एस मणि की याचिका में प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की अपील की गई है। उनका कहना है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में की गई इस प्रकार की जाति और धर्म आधारित टिप्पणियों को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता और यह न्यायिक प्रक्रिया तथा सामाजिक शांति के लिए खतरा है।
सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका पर सुनवाई की तिथि अभी निर्धारित नहीं हुई है।

