सुप्रीम कोर्ट ने DHFL समाधान योजना विवाद में NCLAT के आदेश को पलटा, मूल रिज़ॉल्यूशन प्लान बहाल

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (DHFL) की दिवाला समाधान प्रक्रिया से जुड़े एक महत्वपूर्ण फैसले में नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) के आदेश को निरस्त कर दिया। यह मामला Piramal Capital and Housing Finance (PCHF) द्वारा प्रस्तुत समाधान योजना से संबंधित था, जिसमें DHFL के ₹45,000 करोड़ के ‘अवॉइडेंस ट्रांजैक्शंस’ को केवल ₹1 के मूल्य पर आंका गया था।

न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने 2021 में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के नेतृत्व में बने क्रेडिटर्स कमेटी (CoC) और मुंबई की NCLT बेंच द्वारा स्वीकृत मूल समाधान योजना को बहाल कर दिया। इस योजना के तहत PCHF ने कुल ₹34,250 करोड़ में DHFL का अधिग्रहण किया था।

इस समाधान योजना को लेकर यह आपत्ति उठाई गई थी कि DHFL के पूर्व प्रबंधन द्वारा की गई फर्जी, अवमूल्यित और जबरन की गई लेनदेन—जिन्हें IBC (Insolvency and Bankruptcy Code) में “अवॉइडेंस ट्रांजैक्शन” कहा जाता है—से संभावित वसूली की वैधता को नजरअंदाज किया गया और उन्हें केवल ₹1 में शामिल कर लिया गया।

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पूर्व प्रमोटर कपिल वधावन और DHFL में भारी निवेश रखने वाली 63 Moons Technologies ने इस योजना को चुनौती दी थी। उनका तर्क था कि ₹45,000 करोड़ मूल्य की संपत्तियों को बेहद कम मूल्य पर सौंपा जा रहा है, जबकि छोटे लेनदारों को बेहद कम राशि से संतुष्ट होना पड़ रहा है।

जनवरी 2022 में NCLAT ने CoC को निर्देश दिया था कि वह इस समाधान योजना में अवॉइडेंस ट्रांजैक्शन से संभावित वसूली की पुनः समीक्षा करे। इस आदेश को चुनौती देते हुए CoC और PCHF ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और दलील दी कि NCLAT ने अपनी अधिकार सीमा का अतिक्रमण किया है और IBC के प्रावधानों की गलत व्याख्या की है।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में न केवल CoC के वाणिज्यिक निर्णयों की पवित्रता को बरकरार रखा गया है, बल्कि यह भी स्पष्ट किया गया है कि अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) किस सीमा तक हस्तक्षेप कर सकता है।

अदालत ने NCLAT को निर्देश दिया है कि वह अवॉइडेंस ट्रांजैक्शंस से संबंधित राशि के आवंटन को IBC के उचित प्रावधानों के तहत नए सिरे से परखे।

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यह निर्णय दिवाला समाधान ढांचे में वित्तीय स्थिरता, लेनदारों के अधिकारों और IBC की मूल भावना की पुष्टि करता है। सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि फर्जी और अवमूल्यित लेनदेन से होने वाली वसूली को कॉर्पोरेट देनदार को ही लौटाया जाना चाहिए, ताकि सभी लेनदारों के हित सुरक्षित रह सकें।

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