आवारा कुत्तों के बढ़ते हमलों पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त निर्देश जारी करते हुए कहा है कि दिल्ली-एनसीआर के सभी आवारा कुत्तों को आठ सप्ताह के भीतर पकड़कर विशेष शेल्टर होम में रखा जाए। अदालत ने स्पष्ट किया कि इसके लिए संबंधित प्राधिकरणों को पर्याप्त शेल्टर सुविधाएं विकसित करनी होंगी और एक बार शेल्टर में रखे गए कुत्तों को दोबारा सड़कों पर नहीं छोड़ा जाएगा।
पिछले महीने शीर्ष अदालत ने स्वप्रेरणा से संज्ञान लेते हुए एक मीडिया रिपोर्ट पर गौर किया था, जिसमें कुत्तों के काटने के मामलों में बढ़ोतरी और रेबीज़ के खतरे को उजागर किया गया था। अदालत ने कहा कि “हर दिन, शहर और इसके बाहरी इलाकों में सैकड़ों कुत्तों के काटने के मामले सामने आ रहे हैं, जिनसे रेबीज़ फैल रही है और खासकर बच्चों व बुजुर्गों की जान जा रही है।”
एमसीडी का एक्शन प्लान
इसी बीच, नगर निगम दिल्ली (एमसीडी) ने आवारा कुत्तों की समस्या से निपटने के लिए कई कदम उठाने की घोषणा की है। इस माह की शुरुआत में एमसीडी ने कहा कि वह अपने पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) केंद्रों को अपग्रेड करेगी और राजधानी में ज़ोन-वार एंटी-रेबीज़ जागरूकता अभियान शुरू करेगी।

एमसीडी के अनुसार, एनजीओ के सहयोग से चलने वाले इन नसबंदी केंद्रों में जल्द ही माइक्रोचिप लगाने की सुविधा शुरू होगी, जिससे नसबंदी की स्थिति और स्वास्थ्य संबंधी विवरण दर्ज किए जा सकेंगे और निगरानी आसान होगी। केंद्रों में नियमित स्वास्थ्य जांच, जिसमें रक्त परीक्षण भी शामिल है, कराई जाएगी।
ये फैसले 4 अगस्त को एमसीडी स्थायी समिति की उपसमिति की बैठक में लिए गए, जिसमें पर्यावरणविद और भाजपा नेता मेनेका गांधी, स्थायी समिति की अध्यक्ष सत्य शर्मा और अन्य अधिकारी मौजूद थे।
मेनेका गांधी ने जन्म नियंत्रण केंद्रों को प्रशिक्षित स्टाफ, आधुनिक चिकित्सा उपकरण, पर्याप्त संसाधन और मजबूत निगरानी प्रणाली से लैस करने पर जोर दिया, ताकि मानवीय और प्रभावी नसबंदी सुनिश्चित की जा सके। उन्होंने एनजीओ, पशु कल्याण संगठनों और स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर दीर्घकालिक योजना बनाने की भी वकालत की।
सत्य शर्मा ने कहा कि एमसीडी का उद्देश्य पशु कल्याण और जनस्वास्थ्य के बीच संतुलन बनाना है। उन्होंने कहा, “सभी संबंधित एजेंसियों और विशेषज्ञों की मदद से ठोस और समन्वित कार्रवाई की जा रही है।”