सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को निठारी हत्याकांड के दोषी सुरेंद्र कोली की क्यूरेटिव याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई की अनुमति दे दी। यह याचिका 2011 में दिए गए उसके एकमात्र दोषसिद्धि आदेश को चुनौती देती है।
कोली को 2005 से 2007 के बीच नाबालिग लड़कियों के साथ दुष्कर्म और हत्या के 12 मामलों में बरी किया जा चुका है। इसके बावजूद वह अब भी जेल में है क्योंकि एक मामले में उसकी सजा बरकरार है। इसी सजा को चुनौती देने के लिए कोली ने यह याचिका दायर की है।
कोली ने 30 अगस्त को क्यूरेटिव याचिका दाखिल की थी, ठीक एक महीने बाद जब सुप्रीम कोर्ट ने 12 मामलों में उसे निर्दोष ठहराया था। अदालत ने कहा था कि अभियोजन पक्ष उसका दोष साबित करने में विफल रहा और जांच में गंभीर खामियां थीं।

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति विनोद के. चंद्रन की पीठ के समक्ष अधिवक्ता पायोशी राय ने कोली की ओर से पेश होकर कहा, “12 मामलों में वह बरी हो चुका है। लेकिन एक मामले की सजा के कारण वह अब भी जेल में है। उसकी पुनर्विचार याचिका पहले खारिज हो चुकी थी, अब क्यूरेटिव याचिका दाखिल की गई है।”
पीठ ने कहा कि 2011 के दोषसिद्धि आदेश देने वाले न्यायाधीश अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इस पर सीजेआई ने कहा, “हम एक नई पीठ गठित करेंगे।”
क्यूरेटिव याचिका किसी दोषी के लिए उपलब्ध अंतिम न्यायिक उपाय है। आमतौर पर इसे चेंबर में सुना जाता है और तभी स्वीकार किया जाता है जब यह साबित हो कि पक्षकार को सुना नहीं गया, निर्णय में पक्षपात की आशंका रही या कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग हुआ।
कोली की पुनर्विचार याचिका 2014 में खुली अदालत में सुनवाई के बाद खारिज कर दी गई थी। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने उसकी दोषसिद्धि और मृत्युदंड को बरकरार रखा था। हालांकि, 2015 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दया याचिका पर देरी के आधार पर मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया।
2007 में नोएडा के निठारी गांव में कोली के नियोक्ता मोनिंदर सिंह पंधेर के घर के पास नाले से कई बच्चों के कंकाल बरामद हुए थे।
सीबीआई ने आरोप लगाया कि कोली लड़कियों को बहला-फुसलाकर घर ले जाता था, जहां उनका यौन शोषण कर हत्या कर दी जाती थी। उस पर नरभक्षण के आरोप भी लगे थे। निचली अदालत ने कोली को 13 मामलों में दोषी ठहराया, जबकि पंधेर को 2 मामलों में दोषी पाया गया था। बाद में पंधेर सभी मामलों से बरी हो गया।