नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (NSEL) घोटाले से संबंधित एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (PMLA) और महाराष्ट्र जमाकर्ता संरक्षण अधिनियम (MPID Act) के तहत कुर्क की गई संपत्तियों पर बैंकों और वित्तीय संस्थानों जैसे सुरक्षित ऋणदाताओं का कोई प्राथमिक अधिकार नहीं होगा। अदालत ने यह भी कहा कि जब ये संपत्तियां अपराध से अर्जित धन की श्रेणी में आती हैं, तो उन पर बैंकों के दावे SARFAESI Act और RDB Act के तहत भी मान्य नहीं होंगे।
न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने रिट याचिका (सिविल) संख्या 995/2019: नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड बनाम भारत संघ एवं अन्य में फैसला सुनाया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति द्वारा 10 अगस्त, 2023 और 8 जनवरी, 2024 को पारित आदेशों की वैधता की पुष्टि की गई।
मामले की पृष्ठभूमि
2005 में स्थापित NSEL, 63 मून टेक्नोलॉजीज लिमिटेड द्वारा प्रवर्तित एक कमोडिटी ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म था। जुलाई 2013 में यह सामने आया कि करीब ₹5,600 करोड़ की धोखाधड़ी हुई, जिससे 13,000 से अधिक निवेशकों को नुकसान हुआ। इसके बाद एफआईआर दर्ज हुईं, बॉम्बे हाईकोर्ट में कई मुकदमे चले, और प्रवर्तन निदेशालय (ED) तथा महाराष्ट्र सरकार ने कई संपत्तियां कुर्क कीं।
न्यायिक प्रक्रिया को केंद्रीकृत और तेज करने के उद्देश्य से, सुप्रीम कोर्ट ने 4 मई 2022 को जस्टिस प्रदीप नंद्राजोग की अध्यक्षता में एक उच्चाधिकार समिति का गठन किया और देशभर में लंबित सभी डिक्री और पंच निर्णयों के निष्पादन का अधिकार उसे सौंपा।
प्रमुख कानूनी प्रश्न
- क्या SARFAESI और RDB कानूनों के तहत सुरक्षित ऋणदाता, PMLA और MPID कानूनों के तहत कुर्क की गई संपत्तियों पर प्राथमिकता का दावा कर सकते हैं?
- क्या IBC की धारा 14 और 96 के तहत लगने वाले दिवालियापन अधिस्थगन (moratorium) का प्रभाव MPID कानून के तहत पहले से कुर्क संपत्तियों पर पड़ेगा?
समिति के निष्कर्ष
10 अगस्त 2023 को समिति ने कहा कि जब संपत्ति अपराध की आय (proceeds of crime) है और पहले ही PMLA या MPID कानून के तहत कुर्क हो चुकी है, तो SARFAESI या RDB Act के तहत सुरक्षित ऋणदाता उस पर कोई प्राथमिकता नहीं जता सकते।
8 जनवरी 2024 के आदेश में समिति ने यह भी स्पष्ट किया कि जो संपत्तियां MPID कानून के तहत मोरेटोरियम से पहले कुर्क हो चुकी हैं, वे दिवालिया प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनेंगी और उन्हें समिति डिक्री निष्पादन के लिए प्रयोग कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट के पर्यवेक्षण और निर्णय
न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने कहा:
“हालांकि अनुच्छेद 142 के अंतर्गत अदालत को व्यापक अधिकार प्राप्त हैं, लेकिन वे अधिकार उन स्थितियों में नहीं अपनाए जा सकते जहां वे स्पष्ट रूप से किसी वैधानिक कानून के विपरीत जाते हों।”
उन्होंने यह भी कहा कि:
“अनुच्छेद 142 का प्रयोग ऐसे कार्यों के लिए नहीं किया जा सकता, जिन्हें सीधे तौर पर कानून के माध्यम से नहीं किया जा सकता।”
हालांकि कोर्ट ने माना कि 4 मई 2022 के आदेश से कुछ टकराव संभव था, लेकिन यह आदेश निवेशकों के हित और त्वरित न्याय के उद्देश्य से पारित किया गया था। इसलिए, जब समिति पहले से कार्य कर रही है और संपत्ति का निष्पादन प्रक्रिया में है, तो अब सुरक्षित ऋणदाताओं की आपत्तियां औचित्यहीन हो जाती हैं।