सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार और अन्य संबंधित पक्षों से एक जनहित याचिका (PIL) पर जवाब मांगा, जिसमें ऑटिज़्म, सेरेब्रल पाल्सी और बहु-विकलांगता जैसी न्यूरोडायवर्जेंट स्थितियों से ग्रस्त व्यक्तियों की उपेक्षा और उनके कल्याण में संस्थागत उदासीनता का आरोप लगाया गया है।
न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने एक्शन फॉर ऑटिज़्म नामक समाजसेवी संस्था की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति दी। याचिका में आरोप लगाया गया है कि राष्ट्रीय न्यास अधिनियम, 1999 जैसे कानूनों के बावजूद, सरकारें इन विशेष व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रही हैं।
पीठ ने कहा, “हम पहले पांच प्रतिवादियों (केंद्र और अन्य) को नोटिस जारी करेंगे। राज्यों को फिलहाल अलग रखा जाएगा।” अगली सुनवाई के लिए 29 अगस्त की तारीख तय की गई है।

याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि उन्होंने एक अंतरिम राहत याचिका भी दाखिल की है, जिसमें इस मुद्दे की तात्कालिकता को रेखांकित किया गया है। उन्होंने कहा कि यूनीक डिसएबिलिटी आईडी (UDID) जारी करने के लिए कोई समर्पित केंद्र नहीं हैं और ऑटिज़्म से पीड़ित लोगों के लिए यात्रा करना भी मुश्किल होता है। “जब तक एयरलाइंस क्रू और एयरपोर्ट स्टाफ को संवेदनशील और प्रशिक्षित नहीं किया जाएगा, तब तक ये लोग सम्मानपूर्वक यात्रा नहीं कर सकते,” वकील ने कहा।
न्यायालय ने पूछा कि क्या याचिकाकर्ता ने कोई सुझाव दिए हैं या अंतरराष्ट्रीय अनुभवों का उल्लेख किया है। इस पर वकील ने कहा कि याचिका में न केवल समस्याएं उठाई गई हैं, बल्कि समाधान और अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं का भी उल्लेख किया गया है।
उन्होंने बताया कि कई देशों में हवाई अड्डों और रेलवे स्टेशनों के स्टाफ को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वे न्यूरोडायवर्जेंट व्यक्तियों के व्यवहार को समझ सकें। भारत में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां जांच या सुरक्षा जांच के दौरान इन व्यक्तियों के साथ अनुचित व्यवहार हुआ।
वकील ने यह भी तर्क दिया कि देश के कुल बजट में से मात्र दो प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च होता है, और उसमें से भी केवल दो प्रतिशत मानसिक स्वास्थ्य पर। उन्होंने कहा कि भारत में न्यूरोडायवर्जेंट व्यक्तियों की संख्या बहुत अधिक है, लेकिन सामाजिक कलंक के कारण उनकी रिपोर्टिंग कम होती है।
उन्होंने कहा कि कई ऑटिस्टिक व्यक्ति अत्यंत प्रतिभाशाली होते हैं, लेकिन संप्रेषण और सामाजिक कौशल में कठिनाई के कारण उन्हें समर्थन नहीं मिल पाता।