सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को असम सरकार के अधिकारियों के खिलाफ अवमानना की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति दी है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि राज्य के गोलपाड़ा जिले में हाल ही में की गई विध्वंस कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने असम के मुख्य सचिव और अन्य संबंधित अधिकारियों को दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने का नोटिस जारी किया।
याचिका आठ स्थानीय निवासियों द्वारा दाखिल की गई है, जिसमें कहा गया है कि जून में हुई बेदखली और विध्वंस की कार्रवाई से 667 से अधिक परिवार प्रभावित हुए, और यह कार्रवाई बिना व्यक्तिगत सुनवाई या अपील का अवसर दिए, जल्दबाजी और मनमाने ढंग से की गई।

वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा, “सिर्फ दो दिन का नोटिस दिया गया और उसके तुरंत बाद मकान गिरा दिए गए। ये वे लोग हैं जो 60–70 वर्षों से वहां रह रहे थे। ब्रह्मपुत्र नदी की धारा समय-समय पर बदलती है, जिससे लोग ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बसने को विवश होते हैं।”
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि यह कार्रवाई विशेष रूप से अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाकर की गई, जबकि बहुसंख्यक समुदाय के ऐसे ही मामलों को छोड़ा गया, जिससे पक्षपातपूर्ण रवैया स्पष्ट होता है।
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि यदि राज्य सरकार यह साबित करती है कि यह जमीन सरकारी है, तो सुप्रीम कोर्ट की 13 नवंबर 2024 की उस व्यवस्था के अनुसार राहत नहीं दी जा सकती जिसमें स्पष्ट किया गया था कि सार्वजनिक स्थलों, सरकारी भूमि, नदी किनारे या जल निकायों पर अवैध कब्जे के मामलों में बिना 15 दिन के नोटिस के भी कार्रवाई की जा सकती है।
हालांकि, पीठ ने इस मामले में नोटिस जारी करने का निर्णय लिया और राज्य सरकार से जवाब मांगा।