सुप्रीम कोर्ट ने एनईपी को राज्यों पर थोपने से किया इनकार, याचिका खारिज

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और केरल में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) को अनिवार्य रूप से लागू करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। न्यायमूर्ति जे.बी. पारडीवाला और आर. महादेवन की पीठ ने स्पष्ट किया कि जब तक किसी नीति से मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता, तब तक न्यायपालिका हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

यह याचिका अधिवक्ता जी.एस. मणि द्वारा दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि इन तीनों राज्यों को संवैधानिक रूप से एनईपी लागू करना अनिवार्य है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि राज्य राजनीतिक कारणों से नीति का विरोध कर रहे हैं, खासकर हिंदी को अनिवार्य रूप से पढ़ाने के प्रावधान को लेकर।

जब अदालत ने मणि से उनके इस मुद्दे से व्यक्तिगत रूप से जुड़े होने के बारे में पूछा, तो उन्होंने बताया कि वह तमिलनाडु से हैं लेकिन दिल्ली में रहते हैं। इस पर पीठ ने कहा, “हालांकि वह तमिलनाडु से हैं, लेकिन उन्होंने खुद माना कि वह दिल्ली निवासी हैं।” अदालत ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि मणि को इस मामले में कोई व्यक्तिगत हक (लोकस स्टैंडी) नहीं है।

Video thumbnail

संविधान के अनुच्छेद 32 का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि अदालत केवल उन्हीं मामलों में हस्तक्षेप कर सकती है, जहां मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ हो। “हम किसी राज्य को एनईपी लागू करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते,” अदालत ने कहा।

READ ALSO  बॉम्बे हाईकोर्ट ने पुणे में AIMIM की टीपू सुल्तान जयंती रैली को शर्तों के साथ मंजूरी दी

मणि ने अपनी याचिका में बच्चों को समान और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिलाने के अधिकार को संरक्षित करने की मांग करते हुए पूरे देश में एनईपी लागू करने का अनुरोध किया था। उन्होंने तर्क दिया कि यह नीति समान और समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देती है और भारतीय भाषाओं को नि:शुल्क पढ़ाने की बात करती है।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन पहले से ही एनईपी, विशेषकर इसकी तीन-भाषा फॉर्मूला, के मुखर विरोधी रहे हैं। उन्होंने केंद्र सरकार पर गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया है और यह भी कहा है कि शिक्षा राज्यों का विषय है। स्टालिन ने 42वें संविधान संशोधन को वापस लेने की भी मांग की है, जिससे शिक्षा को समवर्ती सूची में रखा गया था।

READ ALSO  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आगरा में बंदरों के खतरे पर जनहित याचिका में नोटिस जारी किया

एनईपी को लेकर केंद्र और तमिलनाडु के बीच टकराव का असर समग्र शिक्षा योजना के तहत मिलने वाली केंद्रीय सहायता पर भी पड़ा है। रिपोर्ट्स के अनुसार, केंद्र ने एनईपी लागू न करने के कारण राज्य की वित्तीय सहायता रोक दी है।

राज्यों के अधिकारों की रक्षा के लिए स्टालिन ने अप्रैल में एक उच्च स्तरीय समिति गठित की थी, जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस कुरियन जोसेफ कर रहे हैं। यह समिति राज्यों की संवैधानिक स्वायत्तता बनाए रखने और सहयोगात्मक संघवाद को सशक्त करने के उपायों पर काम कर रही है।

READ ALSO  वकील का जज साहिबा को बर्थडे विश करना पड़ा महँगा- जाने क्यूँ

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला संघीय ढांचे को मजबूत करता है और दोहराता है कि किसी नीति को लागू करना तब तक राज्यों का विशेषाधिकार है, जब तक वह नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न करे।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles