सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि मोटर दुर्घटना मामलों में, यदि पीड़ित नाबालिग हो और मृत्यु या स्थायी विकलांगता हुई हो, तो आय की गणना संबंधित राज्य में दुर्घटना की तिथि पर कुशल श्रमिक के न्यूनतम वेतन के आधार पर की जानी चाहिए। यदि दावेदार आय का प्रमाण नहीं दे पाता, तो बीमा कंपनी को यह न्यूनतम वेतन डेटा न्यायाधिकरण के समक्ष प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा।
अदालत ने इस सिद्धांत को लागू करते हुए, 2012 में 8 वर्षीय बालक को 90% स्थायी विकलांगता होने पर गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा दी गई ₹8.65 लाख की राशि बढ़ाकर ₹35,90,489 कर दी, जिस पर 9% वार्षिक ब्याज भी मिलेगा।
प्रकरण की पृष्ठभूमि
14 अक्टूबर 2012 को, 8 वर्षीय हितेश नागजीभाई पटेल अपने पिता के साथ बनासकांठा, गुजरात में एक कच्ची सड़क पर खड़ा था। इस दौरान, एक वाहन (GJ-8V-3085) लापरवाहीपूर्वक चलाते हुए उससे टकरा गया। हादसे में उसके सिर पर गंभीर चोटें आईं और बाएं पैर का विच्छेदन करना पड़ा।
पिता के माध्यम से, हितेश ने मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 166 के तहत ₹10 लाख का दावा दायर किया।
सितंबर 2021 में मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) ने 30% स्थायी विकलांगता मानते हुए ₹3,90,000 का मुआवज़ा 9% ब्याज सहित प्रदान किया।
अगस्त 2024 में गुजरात उच्च न्यायालय ने स्थायी विकलांगता 90% मानकर राशि बढ़ाकर ₹8,65,000 कर दी और कृत्रिम पैर सहित कुछ अतिरिक्त मदों में राशि जोड़ी।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई
अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि—
- आय की गणना न्यूनतम वेतन के आधार पर नहीं की गई।
- भौतिक एवं अभौतिक दोनों मदों में मुआवज़ा अपर्याप्त है।
न्यायमूर्ति संजय कौल और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने माना कि निचली अदालतों ने स्थापित विधि का पालन नहीं किया।
अदालत ने Kajal बनाम जगदीश चंद (2020) 4 SCC 413 और Baby Sakshi Greola बनाम मंज़ूर अहमद सायमन (2024 SCC OnLine SC 3692) का हवाला देते हुए कहा—
“मोटर वाहन दुर्घटना में मृत्यु या स्थायी विकलांगता का शिकार नाबालिग को गैर-आय अर्जक व्यक्ति की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता… आय की गणना कम से कम संबंधित राज्य में कुशल श्रमिक को देय न्यूनतम वेतन के आधार पर की जानी चाहिए।”
मुआवज़े का पुनः निर्धारण
2012 में गुजरात में कुशल श्रमिक का न्यूनतम वेतन ₹227.85 प्रतिदिन था, जो ₹6,836 प्रतिमाह बनता है। प्रणय सेठी के सिद्धांत के अनुसार 40% भविष्य की संभावनाएं और 18 गुणांक (multiplier) लागू करते हुए, 90% विकलांगता पर भविष्य की आय हानि ₹18,60,489 तय की गई।
अन्य मदों में— चिकित्सा व्यय, भविष्य के चिकित्सा व्यय, विशेष आहार व परिवहन, विवाह संभावना की हानि, उपचार अवधि की आय हानि, पीड़ा व कष्ट, सुख-सुविधाओं की हानि और कृत्रिम पैर की लागत— भी जोड़ी गई।
अंतिम मुआवज़ा तालिका:
मद | राशि |
भविष्य की आय हानि (90% विकलांगता) | ₹18,60,489 |
चिकित्सा व्यय | ₹30,000 |
भविष्य का चिकित्सा व्यय | ₹50,000 |
विशेष आहार व परिवहन | ₹1,00,000 |
विवाह संभावना की हानि | ₹3,00,000 |
उपचार अवधि की आय हानि | ₹50,000 |
पीड़ा व कष्ट | ₹5,00,000 |
सुख-सुविधाओं की हानि | ₹2,00,000 |
कृत्रिम पैर की लागत | ₹5,00,000 |
कुल | ₹35,90,489 |
महत्वपूर्ण निर्देश
- अनिवार्य न्यूनतम वेतन आधार – नाबालिग से जुड़े मामलों में आय की गणना संबंधित राज्य के कुशल श्रमिक के न्यूनतम वेतन पर होनी चाहिए।
- बीमा कंपनियों की ज़िम्मेदारी – यदि आय सिद्ध नहीं होती, तो बीमा कंपनी को न्यूनतम वेतन डेटा न्यायाधिकरण को देना होगा।
- निर्देश का प्रसार – उच्च न्यायालय यह आदेश सभी MACT को भेजकर अनुपालन सुनिश्चित करें।
अपील स्वीकार की गई और मुआवज़ा ₹35,90,489 तय किया गया, जिस पर दावा याचिका की तारीख से 9% वार्षिक ब्याज मिलेगा। राशि 30 सितंबर 2025 तक सीधे अपीलकर्ता के बैंक खाते में जमा की जानी है।
