सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मध्य प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि वह एक ऐसे कैदी को ₹25 लाख का मुआवज़ा दे, जिसने अपनी वैध सजा पूरी करने के बाद भी करीब साढ़े चार साल अतिरिक्त जेल में बिताए।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारडीवाला और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि सोहन सिंह का यह मामला मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन है और राज्य की व्यवस्था की विफलता को दर्शाता है। अदालत ने साथ ही मध्य प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को निर्देश दिया कि वह राज्य की सभी जेलों का सर्वेक्षण करे और सुनिश्चित करे कि कोई भी कैदी सजा पूरी होने या ज़मानत मिलने के बाद भी जेल में न रहे।
सोहन सिंह को जुलाई 2005 में सागर जिले की खुरई सत्र अदालत ने बलात्कार, घर में घुसपैठ और आपराधिक धमकी (धारा 376(1), 450 और 506-बी, आईपीसी) में दोषी ठहराकर उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

लेकिन अक्टूबर 2017 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने मामले में एफआईआर दर्ज करने में देरी और चिकित्सीय साक्ष्य के अभाव को देखते हुए उसकी सजा घटाकर सात साल का कठोर कारावास कर दी थी। इसके बावजूद, सिंह को अपनी वैध सजा पूरी करने के बाद भी चार साल सात महीने से अधिक जेल में रहना पड़ा।
इस वर्ष मामला सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में आया तो अदालत ने इसे “काफी चौंकाने वाला” करार दिया और जवाब मांगा। सोमवार को राज्य के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता नचिकेता जोशी ने स्पष्ट किया कि सिंह कुछ समय ज़मानत पर बाहर रहा था, लेकिन फिर भी उसकी अतिरिक्त कैद करीब 4.7 साल हुई।
सिंह की ओर से पेश हुए अधिवक्ता महफूज़ अहसन नज़की ने राज्य से जवाबदेही तय करने की मांग की। पीठ ने इस दौरान राज्य सरकार द्वारा पहले दाखिल किए गए “भ्रामक हलफनामों” पर भी कड़ी नाराज़गी जताई।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह गंभीर न्यायिक त्रुटि है और सरकार को बताना होगा कि ऐसी चूक कैसे हुई तथा दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई करनी होगी।
22 अगस्त के अपने आदेश में अदालत ने कहा था, “हम जानना चाहते हैं कि इतनी गंभीर चूक कैसे हुई और क्यों याचिकाकर्ता सात साल की सजा पूरी करने के बाद भी सात साल से अधिक समय तक जेल में रहा।”
अदालत ने मुआवज़े के साथ-साथ यह भी स्पष्ट कर दिया कि इस तरह के मामलों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता और भविष्य में इन्हें रोकने के लिए ठोस कदम उठाना अनिवार्य है।