देशभर के 3,500 से अधिक कैदियों ने सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी (SCLSC) से कानूनी सहायता मांगी है। यह पहल उन कैदियों को न्याय सुलभ कराने के उद्देश्य से शुरू की गई है, जो अभी तक किसी वकील का प्रतिनिधित्व नहीं पा सके हैं। यह जानकारी एक प्रेस विज्ञप्ति में दी गई है।
विज्ञप्ति के अनुसार, 5 मई 2025 तक लगभग 3,800 कैदियों ने SCLSC से औपचारिक रूप से कानूनी सहायता का अनुरोध किया। SCLSC ने राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों (SLSAs) और कारागार विभागों के सहयोग से यह राष्ट्रव्यापी अभियान 10 जनवरी 2025 को शुरू किया था।
SCLSC ने बताया, “इस पहल का उद्देश्य विशेष रूप से ऐसे कानूनी रूप से कमजोर कैदियों की सहायता करना है, जिनके पास वैधानिक उपाय उपलब्ध हैं लेकिन वे अभी तक किसी वकील से प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं कर सके हैं। साथ ही यह उन कैदियों की मदद के लिए भी है जिन्हें शीघ्र कानूनी हस्तक्षेप की आवश्यकता है, जिन्होंने सजा के खिलाफ अपील नहीं की है, या जिन्होंने अपनी अधिकतम सजा का आधा हिस्सा काट लिया है लेकिन जमानत नहीं मिली है।”
अभियान के तहत उन कैदियों को भी सहायता दी जा रही है जिनकी सजा में छूट या समयपूर्व रिहाई की याचिकाएं खारिज हो गई हैं और जिन्होंने सर्वोच्च न्यायालय का रुख नहीं किया है।
इस अभियान के अंतर्गत SCLSC, SLSAs, उच्च न्यायालय कानूनी सेवा समितियों (HCLSCs) और जेल प्रशासन के सहयोग से एक व्यापक सर्वेक्षण किया गया। प्रारंभिक रूप से 4,216 पात्र कैदियों की पहचान की गई। 1 अप्रैल को SCLSC के अध्यक्ष जस्टिस सूर्यकांत ने HCLSCs और SLSAs के अध्यक्षों के साथ एक राष्ट्रीय वर्चुअल बैठक की और जेलों में जाकर कैदियों को कानूनी सहायता प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु विशेष समितियां गठित करने का आह्वान किया।
5 मई को हुई समीक्षा बैठक में जस्टिस सूर्यकांत ने उच्च न्यायालय कानूनी सेवा समितियों से जिला स्तरीय नोडल अधिकारियों की नियुक्ति करने को कहा ताकि SCLSC के साथ बेहतर समन्वय स्थापित हो सके। इन अधिकारियों को दस्तावेजी प्रक्रियाओं को पूरा कराने, स्पष्टीकरण प्राप्त करने और त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करने का जिम्मा सौंपा गया है।
प्रेस विज्ञप्ति में यह भी बताया गया कि कुछ कैदियों ने अपनी शीघ्र संभावित रिहाई, निजी वकीलों की नियुक्ति या स्वतंत्रता दिवस अथवा गणतंत्र दिवस पर संभावित सजा में छूट जैसे कारणों से कानूनी सहायता लेने से इनकार कर दिया। फिर भी, कुल मिलाकर यह पहल काफी सफल रही है।
13 मई तक जहां दस्तावेज पूरे हो गए थे, वहां लगभग 600 मामलों में पैनल अधिवक्ताओं की नियुक्ति कर दी गई थी और 285 मामलों में सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाएं दाखिल की गई हैं।