निहत्थे व्यक्ति पर चाकू से 4 वार करना क्रूरता का संकेत: सुप्रीम कोर्ट ने हत्या की सजा बरकरार रखी, ‘अचानक झगड़े’ की दलील खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि किसी निहत्थे व्यक्ति के शरीर के महत्वपूर्ण अंगों पर चाकू से चार बार वार करना यह दर्शाता है कि आरोपी ने क्रूर तरीके से काम किया है। इसके चलते उसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 300 के अपवादों का लाभ नहीं मिल सकता। शीर्ष अदालत ने हत्या के दोषी की सजा को कम करने की अपील को खारिज कर दिया है।

जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले की पुष्टि करते हुए अपीलकर्ता सुरेंद्र कुमार की आईपीसी की धारा 302 (हत्या) के तहत सजा को बरकरार रखा।

कानूनी मुद्दा और पृष्ठभूमि

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी प्रश्न यह था कि क्या अपीलकर्ता की सजा को धारा 300 आईपीसी के अपवादों के आधार पर हत्या (धारा 302) से घटाकर कम गंभीर अपराध में बदला जा सकता है। इस पहलू पर विचार करने के लिए मार्च 2025 में एक सीमित नोटिस जारी किया गया था।

अभियोजन पक्ष का मामला पोस्टमार्टम रिपोर्ट (Autopsy Report) पर आधारित था, जिसमें मृतक के शरीर के महत्वपूर्ण अंगों पर चाकू के चार घाव पाए गए थे। विशेष रूप से, “कॉमन कैरोटिड और सबक्लेवियन धमनियां (arteries) कटी हुई पाई गई थीं।” अदालत ने पाया कि सामान्य स्थिति में ये चोटें मृत्यु का कारण बनने के लिए पर्याप्त थीं।

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अदालत ने यह भी नोट किया कि ट्रायल के दौरान कोई बचाव साक्ष्य (defense evidence) प्रस्तुत नहीं किया गया था। इसके अलावा, दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 313 के तहत अपने बयान में, याचिकाकर्ता ने केवल इनकार किया था और यह नहीं कहा था कि मृतक ने उस पर हमला किया था या कोई चोट पहुंचाई थी।

पक्षों की दलीलें

अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि यह घटना धारा 300 आईपीसी के अपवाद 2 (निजी रक्षा के अधिकार का अतिक्रमण) या अपवाद 4 (बिना पूर्व-योजना के जुनून में अचानक हुआ झगड़ा) के तहत आनी चाहिए।

वकील ने दलील दी कि साक्ष्यों से संकेत मिलता है कि मृतक नशे का आदी था और घटना से पहले “जोर-जोर से चिल्लाने की आवाजें सुनी गई थीं।” इसके आधार पर यह दावा किया गया कि घटना से पहले कहासुनी या झगड़ा हुआ था। वकील ने यह भी कहा कि आरोपी को भी चोट लगी थी, जो संघर्ष का संकेत देती है।

कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियां

सुप्रीम कोर्ट ने धारा 300 आईपीसी के अपवादों की प्रयोज्यता की जांच की और अपीलकर्ता की दलीलों को खारिज कर दिया।

अपवाद 2 (निजी रक्षा का अधिकार) पर कोर्ट ने माना कि यह कृत्य अपवाद 2 के तहत नहीं आएगा क्योंकि “यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं है कि मृतक द्वारा आरोपी या उसकी संपत्ति पर हमला किया गया था।” पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अपीलकर्ता ने धारा 313 सीआरपीसी के बयान में आत्मरक्षा की कोई दलील नहीं दी थी। इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने नोट किया कि “यह नहीं दिखाया गया है कि मृतक के पास कोई हथियार था।”

अपवाद 4 (अचानक झगड़ा) पर कोर्ट ने दोहराया कि अपवाद 4 लागू होने के लिए चार शर्तों का पूरा होना आवश्यक है:

  1. कोई पूर्व-योजना (premeditation) न हो।
  2. अचानक झगड़ा हुआ हो।
  3. कृत्य जुनून के आवेश (heat of passion) में किया गया हो।
  4. हमलावर ने कोई अनुचित लाभ नहीं उठाया हो या क्रूर तरीके से कार्य नहीं किया हो।
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भगवान मुंजाजी पावड़े बनाम महाराष्ट्र राज्य (1978) और अवधेश कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2019) के मामलों का हवाला देते हुए, कोर्ट ने कहा कि ‘लड़ाई’ (Fight) का अर्थ एक द्विपक्षीय लेन-देन है जिसमें दोनों तरफ से वार किए जाते हैं। कोर्ट ने कहा कि जहां आरोपी हथियारबंद है और मृतक निहत्था है, वहां अगर अचानक कहासुनी होती है लेकिन लड़ाई नहीं, तो अपवाद 4 लागू नहीं होगा।

मौजूदा मामले में, पीठ ने टिप्पणी की:

“मौजूदा मामले में, वार के आदान-प्रदान (exchange of blows) का कोई सबूत नहीं है। इसलिए, हमारे विचार में, यह मामला धारा 300 के अपवाद 4 के तहत नहीं आएगा। इसके अलावा, एक निहत्थे व्यक्ति के शरीर के महत्वपूर्ण अंगों पर 4 चाकू के वार करना यह दर्शाता है कि आरोपी ने क्रूर तरीके से कार्य किया है।”

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अपवाद 1 (गंभीर और अचानक उकसावे) पर इस तर्क पर कि झगड़े के कारण मामला अपवाद 1 के तहत आ सकता है, कोर्ट ने कहा:

“हमारे विचार में, रिकॉर्ड पर ऐसा कोई सबूत नहीं है जो यह बताए कि उकसावा इतना गंभीर और अचानक था कि अपीलकर्ता ने अपना आत्म-नियंत्रण खो दिया हो।”

निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने सजा कम करने के लिए किसी भी तरह की परिस्थितियां नहीं पाईं और अपील को खारिज करते हुए धारा 302 आईपीसी के तहत सजा को बरकरार रखा।

केस विवरण

  • केस का शीर्षक: सुरेंद्र कुमार बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य
  • केस नंबर: क्रिमिनल अपील संख्या [SLP (Crl) No. 5532/2025 से उत्पन्न]
  • साइटेशन: 2025 INSC 1412
  • कोरम: जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां
  • याचिकाकर्ता के वकील: श्री अजय मारवाह (AOR), श्री स्वरूपानंद मिश्रा, श्री मृगांक भारद्वाज, सुश्री धृति शर्मा, श्री राहुलकुमार, श्री राजीव सेठी।
  • प्रतिवादी के वकील: श्री वरिंदर कुमार शर्मा (AOR)।

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