सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्या कांत, जस्टिस उज्ज्वल भुइयां और जस्टिस नोंगमीकपम कोटेश्वर सिंह शामिल हैं, ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि ‘लेटर ऑफ इंटेंट’ (LoI) केवल “अनुबंध का पूर्वगामी” (precursor to a contract) और “भ्रूणावस्था में एक वादा” (promise in embryo) है। यह तब तक कोई बाध्यकारी या कानूनी अधिकार नहीं बनाता जब तक कि इसमें दी गई शर्तें और पूर्व-आवश्यकताएं पूरी तरह से संतुष्ट न हो जाएं।
शीर्ष अदालत ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें राज्य सरकार द्वारा तकनीकी शर्तों का पालन न करने पर एक सशर्त LoI को रद्द करने के निर्णय को खारिज कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि राज्य सरकार का निर्णय प्रशासनिक विवेक का वैध प्रयोग था और इसे मनमाना नहीं कहा जा सकता।
पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि कोई बोलीदाता (bidder) LoI की विशिष्ट शर्तों को पूरा किए बिना, अनुबंध की प्रत्याशा में एकतरफा काम शुरू कर देता है, तो यह उसे कोई कानूनी अधिकार नहीं देता। हालांकि, ‘क्वांटम मेरिट’ (quantum meruit) के सिद्धांत का हवाला देते हुए, कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह कंपनी को उन मशीनों और सेवाओं की लागत का भुगतान करे जिनका उपयोग पायलट या प्रदर्शन (demonstration) चरण के दौरान वास्तव में किया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद हिमाचल प्रदेश के खाद्य, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामले विभाग द्वारा सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को आधुनिक बनाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक पॉइंट-ऑफ-सेल (ePoS) उपकरणों की आपूर्ति, स्थापना और रखरखाव के लिए जारी एक टेंडर से जुड़ा है। 2021 और 2022 के बीच कई असफल प्रयासों के बाद, चौथे टेंडर में मेसर्स ओएसिस साइबरनेटिक्स प्राइवेट लिमिटेड (M/s OASYS Cybernatics Pvt. Ltd.) एकमात्र तकनीकी रूप से योग्य बोलीदाता के रूप में उभरी थी।
2 सितंबर, 2022 को विभाग ने कंपनी को एक LoI जारी किया। यह LoI सशर्त था और इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि यह “एनआईसी (NIC) सॉफ्टवेयर के साथ प्रस्तावित उपकरणों की संगतता और पूर्व-शर्तों को पूरा करने” के अधीन है। कंपनी को निम्नलिखित कदम उठाने थे:
- एनआईसीएसआई (NICSI), हैदराबाद में उपकरणों का ‘कम्पैटिबिलिटी टेस्ट’ कराना।
- निदेशालय में अपग्रेडेड उपकरणों का लाइव डेमो देना।
- उपकरणों की विस्तृत एमआरपी और लैंडिंग लागत प्रस्तुत करना।
- इन चरणों के सफल समापन के बाद ही औपचारिक समझौता किया जाना था।
जहां एक ओर कंपनी ने दावा किया कि उसने 5,000 से अधिक उपकरणों का निर्माण कर लिया है और तैयारी शुरू कर दी है, वहीं विभाग ने 6 जून, 2023 को यह कहते हुए LoI रद्द कर दिया कि सरकार ने नया टेंडर आमंत्रित करने का निर्णय लिया है।
कंपनी ने इस रद्दीकरण को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने 30 मई, 2024 को अपने फैसले में रद्दीकरण को मनमाना और बिना कारण बताया और राज्य को LoI के साथ आगे बढ़ने का निर्देश दिया। इसके खिलाफ हिमाचल प्रदेश राज्य ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
पक्षों की दलीलें
हिमाचल प्रदेश राज्य का तर्क:
- राज्य ने तर्क दिया कि LoI एक “सशर्त संचार” था और जब तक ‘लेटर ऑफ एक्सेप्टेंस’ (LoA) या अनुबंध निष्पादित नहीं किया जाता, तब तक यह कोई बाध्यकारी दायित्व नहीं बनाता।
- यह कहा गया कि बार-बार रिमाइंडर देने के बावजूद, कंपनी ने पूर्व-शर्तों को पूरा नहीं किया, विशेष रूप से लागत का विवरण देने और NIC सॉफ्टवेयर के साथ सफल टेस्टिंग में विफलता।
- राज्य ने यह भी आरोप लगाया कि कंपनी ने अपने पूर्ववर्ती इकाई (predecessor entity) के अन्य राज्यों में ब्लैकलिस्ट होने के तथ्यों को छुपाया था।
- यह जोर दिया गया कि आधार-सक्षम PDS सुनिश्चित करने का जनहित, बोलीदाता की निजी अपेक्षाओं से ऊपर है।
मेसर्स ओएसिस साइबरनेटिक्स प्रा. लि. का तर्क:
- कंपनी ने तर्क दिया कि रद्दीकरण “मनमाना, बिना कारण और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन” था।
- यह कहा गया कि कंपनी ने LoI पर भरोसा करते हुए उपकरणों के निर्माण और बुनियादी ढांचे की स्थापना में भारी निवेश किया है।
- कंपनी का कहना था कि राज्य ने आठ महीने तक कार्यान्वयन के निर्देश देकर उनसे प्रदर्शन (performance) करवाया, इसलिए अब वे LoI वापस नहीं ले सकते।
- ब्लैकलिस्टिंग के मुद्दे पर, कंपनी ने तर्क दिया कि शर्त केवल बोली जमा करने की तारीख पर लागू अयोग्यता के लिए थी, जो उन पर लागू नहीं होती थी।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
1. लेटर ऑफ इंटेंट की प्रकृति
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात का विश्लेषण किया कि क्या LoI ने कोई निहित संविदात्मक अधिकार (vested contractual rights) बनाए। राजस्थान को-ऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन लिमिटेड और ड्रेसर रैंड एस.ए. जैसे पिछले फैसलों का हवाला देते हुए, पीठ ने दोहराया कि LoI का उद्देश्य अंततः किसी भी पक्ष को अनुबंध में प्रवेश करने के लिए बाध्य करना नहीं होता।
कोर्ट ने टिप्पणी की:
“यह केवल ‘भ्रूणावस्था में एक वादा’ (promise in embryo) है, जो केवल निर्धारित पूर्व-शर्तों की संतुष्टि या LoA जारी होने पर ही अनुबंध में परिपक्व हो सकता है। एक बोलीदाता की यह उम्मीद कि ऐसा अनुबंध होगा, व्यावसायिक रूप से वास्तविक हो सकती है, लेकिन यह कानूनी हक नहीं है।”
कोर्ट ने पाया कि उक्त LoI पूरी तरह से सशर्त था। टेंडर की संरचना क्रमिक थी: टेस्टिंग, डेमो, स्वीकृति, और फिर निष्पादन।
2. रद्दीकरण की वैधता
कोर्ट ने जांच की कि क्या रद्दीकरण मनमाना था। हालांकि कोर्ट ने माना कि रद्दीकरण पत्र में कारणों का अभाव था, लेकिन समकालीन रिकॉर्ड के आधार पर राज्य के औचित्य को परखा गया।
- ब्लैकलिस्टिंग का मुद्दा: कोर्ट ने कंपनी की पुरानी ब्लैकलिस्टिंग पर राज्य के तर्क को खारिज कर दिया। कोर्ट ने नोट किया कि राज्य ने पहले एक प्रतिद्वंद्वी बोलीदाता के खिलाफ मुकदमे में इसी टेंडर प्रक्रिया का बचाव किया था। कोर्ट ने कहा कि राज्य अपनी पुरानी स्थिति से पलट नहीं सकता।
- LoI शर्तों का पालन न करना: हालांकि, कोर्ट ने रद्दीकरण के दूसरे आधार को सही ठहराया—जो कि तकनीकी शर्तों को पूरा करने में कंपनी की विफलता थी। कोर्ट ने नोट किया कि कंपनी लागत का ब्यौरा देने या NIC सॉफ्टवेयर के साथ संगतता प्रमाणित करने में विफल रही।
कंपनी द्वारा उपकरणों के एकतरफा निर्माण के तर्क पर कोर्ट ने कहा:
“ये कार्य, हालांकि मेहनती थे, एकतरफा किए गए थे और LoI की शर्तों के पूरा होने से पहले किए गए थे। हमारे विचार में, ये कार्य संविदात्मक अनुपालन के बजाय ‘व्यावसायिक अधीरता’ (commercial impatience) का उदाहरण हैं—यह ‘गाड़ी को घोड़े के आगे रखने’ जैसा है।”
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली और हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया। कोर्ट ने 2 सितंबर, 2022 के लेटर ऑफ इंटेंट को रद्द करने के राज्य के फैसले को बरकरार रखा और राज्य को कानून के अनुसार नया टेंडर जारी करने की स्वतंत्रता दी।
राहत के निर्देश: यह मानते हुए कि कंपनी ने पायलट चरणों और प्रदर्शन के लिए उपकरणों की आपूर्ति की थी, कोर्ट ने समानता (equity) के आधार पर निम्नलिखित निर्देश जारी किए:
- राज्य सरकार पायलट/प्रदर्शन चरणों के दौरान उपयोग की गई ePoS मशीनों और सेवाओं का विवरण सुनिश्चित करने के लिए एक तथ्य-खोज जांच (Fact-Finding Enquiry) आयोजित करेगी।
- राज्य सरकार तीन महीने के भीतर कंपनी को ‘क्वांटम मेरिट’ के सिद्धांत पर सत्यापित लागत और खर्चों की प्रतिपूर्ति करेगी।
- इस भुगतान पर, मशीनरी और बुनियादी ढांचा राज्य के पास निहित हो जाएगा।
- लाभ की हानि या परिणामी नुकसान (consequential damages) के लिए कोई और दावा मान्य नहीं होगा।




