सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक महिला आईपीएस अधिकारी और उसके माता-पिता को आदेश दिया कि वे उसके पूर्व पति और उनके परिवार से बिना शर्त सार्वजनिक माफी मांगें। कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक विवाद के दौरान दायर कई आपराधिक मामलों के कारण पति और उसके परिवार को गंभीर मानसिक और शारीरिक पीड़ा झेलनी पड़ी।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने पाया कि पत्नी द्वारा लगाए गए आरोपों के चलते पति को 109 दिन और उसके पिता को 103 दिन जेल में बिताने पड़े। आरोपों में धारा 498ए (क्रूरता), 307 (हत्या का प्रयास) और 376 (बलात्कार) जैसे गंभीर आरोप शामिल थे।
कोर्ट ने टिप्पणी की, “उन्होंने जो सहा है, उसकी भरपाई या पुनर्स्थापना किसी भी तरह से नहीं की जा सकती।” कोर्ट ने इसे नैतिक स्तर पर क्षतिपूर्ति मानते हुए सार्वजनिक माफी को उचित ठहराया।

पत्नी द्वारा दर्ज कराए गए मामले
आईपीएस अधिकारी पत्नी ने कुल 6 आपराधिक मामले दर्ज कराए थे, जिनमें शामिल थे:
- एक एफआईआर: जिसमें घरेलू हिंसा (498ए), हत्या का प्रयास (307), बलात्कार (376) जैसे गंभीर आरोप लगाए गए
- दो शिकायतें धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात) के तहत
- तीन शिकायतें घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत
- इसके अलावा तलाक, भरण-पोषण आदि के लिए पारिवारिक न्यायालय में मामले
पति ने भी तलाक की अर्जी दायर की थी। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के खिलाफ दर्ज मामलों को अपने-अपने क्षेत्र में ट्रांसफर कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी।
कोर्ट ने माफी का स्वरूप भी तय किया
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा कि पत्नी और उसके माता-पिता को अपनी बिना शर्त माफी निम्न स्थानों पर प्रकाशित करनी होगी:
- एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय हिंदी और अंग्रेजी अखबार में
- सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर, जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब आदि
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह माफी कानूनी जिम्मेदारी को स्वीकार करना नहीं मानी जाएगी, और इसका किसी भी प्रकार की कानूनी प्रक्रिया पर कोई असर नहीं पड़ेगा। माफी तीन दिन के भीतर प्रकाशित करनी होगी।
कोर्ट ने माफी का शब्दशः प्रारूप भी तय किया, जिसमें कहा गया:
“मैं [नाम], पिता/माता [नाम], निवासी [पता], मैं एवं मेरे माता-पिता की ओर से [पति के परिवार का नाम] के सभी सदस्यों से दिल से क्षमा याचना करती हूँ… मैं समझती हूँ कि आरोपों और कानूनी लड़ाइयों ने तनावपूर्ण वातावरण बनाया और आपके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित किया… मैं इस माफी के माध्यम से शांति और closure की कामना करती हूँ… मैं पुनः इस माफी में यह स्पष्ट करना चाहती हूँ कि हमारे बीच जन्मी बालिका को जानने और मिलने के लिए आपका परिवार हमेशा स्वागत योग्य है।”
भविष्य में दुरुपयोग पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी को यह भी निर्देश दिया कि वह अपने आईपीएस पद या किसी अन्य अधिकारिक स्थिति का दुरुपयोग कर पति या उसके परिवार के खिलाफ किसी भी प्रकार की कार्यवाही, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से, नहीं करेंगी। इसमें कोई मानसिक या शारीरिक क्षति पहुंचाना भी शामिल है।
साथ ही, कोर्ट ने पति और उसके परिवार को चेताया कि यदि वे इस माफी का उपयोग किसी भी न्यायालय, प्रशासनिक या कानूनी मंच पर पत्नी के खिलाफ करते हैं, तो यह अवमानना माना जाएगा और उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
विवाह Article 142 के तहत समाप्त
कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेष अधिकारों का प्रयोग करते हुए विवाह को समाप्त कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पति-पत्नी अक्टूबर 2018 से अलग रह रहे हैं, और इतने लंबे समय से जारी विवाद और कानूनी झगड़ों के कारण अब उनके बीच मेल-मिलाप की कोई संभावना नहीं बची है।
साथ ही, कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि दोनों पक्षों के बीच लंबित सभी आपराधिक और दीवानी मामले रद्द/वापस लिए जाएं।
यह आदेश दोनों पक्षों द्वारा दायर ट्रांसफर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पारित किया गया।