सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इंदौर के कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति दे दी। मालवीय पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और धार्मिक प्रतीकों को लेकर सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक कार्टून और टिप्पणियां पोस्ट करने का आरोप है।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर की ओर से याचिका पर तत्काल सुनवाई की मांग के बाद इसे 14 जुलाई के लिए सूचीबद्ध किया। यह याचिका मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देती है, जिसमें मालवीय को राहत देने से इनकार कर दिया गया था।
ग्रोवर ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि यह कार्टून 2021 में कोविड महामारी के दौरान बनाया गया था और इस मामले में हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि आरोप बीएनएस की उन धाराओं के तहत लगाए गए हैं, जिनमें अधिकतम सजा तीन साल है, लेकिन उच्च न्यायालय ने अर्नेश कुमार और इमरान प्रतापगढ़ी जैसे फैसलों में स्थापित व्यक्तिगत स्वतंत्रता के सिद्धांतों को नजरअंदाज कर दिया।

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने 3 जुलाई को मालवीय की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था कि संबंधित कार्टून “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का घोर दुरुपयोग” है। अदालत ने यह भी कहा कि कार्टून में आरएसएस और प्रधानमंत्री को भगवान शिव के संदर्भ में अपमानजनक ढंग से चित्रित किया गया, जो धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने का जानबूझकर किया गया प्रयास है।
अदालत ने कहा, “यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का महज दुरुपयोग है।” अदालत ने आगे कहा कि मालवीय की टिप्पणियों और दूसरों को भी इसी तरह की सामग्री साझा करने के लिए प्रोत्साहित करना हिरासत में पूछताछ की पर्याप्त वजह है।
मालवीय के खिलाफ प्राथमिकी मई में इंदौर के लसूडिया पुलिस थाने में आरएसएस सदस्य और अधिवक्ता विनय जोशी की शिकायत पर दर्ज की गई थी। शिकायत में आरोप लगाया गया कि मालवीय की सोशल मीडिया गतिविधियां—जैसे पोस्ट, कार्टून, वीडियो और टिप्पणियां—हिंदू धार्मिक प्रतीकों का अपमान करती हैं और प्रधानमंत्री व आरएसएस को बदनाम करती हैं।
उनके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 196 (साम्प्रदायिक सद्भावना के विरुद्ध कार्य), 299 (धार्मिक भावनाएं आहत करना), और 352 (जानबूझकर अपमान कर शांति भंग को उकसाना), के साथ-साथ आईटी एक्ट की धारा 67A (ऑनलाइन अश्लील सामग्री प्रकाशित करना) लगाई गई हैं।
उच्च न्यायालय में मालवीय ने दलील दी थी कि उन्होंने केवल कार्टून पोस्ट किया था, और प्लेटफॉर्म पर अन्य लोगों द्वारा की गई टिप्पणियों के लिए वे जिम्मेदार नहीं हैं। हालांकि, अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि उन्होंने इस सामग्री को समर्थन और प्रचार देकर उसकी जिम्मेदारी ली है।
अब जब सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई की सहमति दे दी है, यह केस फिर से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, डिजिटल युग में असहमति की आपराधिकता और ऑनलाइन अभिव्यक्ति की सीमाओं पर बहस को जीवंत कर रहा है।