न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने बलात्कार और अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार अधिनियम के तहत दर्ज प्राथमिकी को रद्द करते हुए कहा कि यह शिकायत “झूठ का पुलिंदा है, जिसमें मनगढ़ंत और दुर्भावनापूर्ण आरोप लगाए गए हैं।” पीठ ने कहा कि मामले की आगे की कार्रवाई न्याय का उपहास और अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगी।
पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता बटलंकी केशव (केसवा) कुमार अनुराग ने तेलंगाना हाईकोर्ट द्वारा पारित 13 दिसंबर 2022 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें हैदराबाद स्थित माधापुर थाने में दर्ज एफआईआर संख्या 103/2022 को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था। उक्त एफआईआर में आईपीसी की धारा 376(2)(n) और एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(2)(v) के तहत बलात्कार और जातीय भेदभाव के गंभीर आरोप लगाए गए थे।
इससे पहले भी शिकायतकर्ता महिला ने 29 जून 2021 को एफआईआर संख्या 751/2021 दर्ज कराई थी, जिसमें केवल एक बार जबरन यौन संबंध बनाने का आरोप लगाया गया था। हाईकोर्ट ने उस एफआईआर को रद्द नहीं किया था, परंतु पुलिस को जांच पूरी करने और इस दौरान आरोपी को गिरफ़्तार न करने का निर्देश दिया था।
पक्षकारों की दलीलें
अपीलकर्ता की ओर से:
अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि दूसरी एफआईआर झूठे और बढ़ा-चढ़ाकर लगाए गए आरोपों पर आधारित है। जबकि पहली एफआईआर में केवल 24 जून 2021 की एक घटना का ज़िक्र था, बाद की एफआईआर में 4 मई, 11 मई, 28 मई और 7 जून 2021 को यौन संबंध बनाने के आरोप लगाए गए थे, जो पहली एफआईआर से पहले की तारीखें हैं।
चैट और कॉल रिकॉर्डिंग के अनुवाद भी पेश किए गए, जिनसे यह संकेत मिलता है कि शिकायतकर्ता ओब्सेसिव कम्पल्सिव डिसऑर्डर (OCD) से पीड़ित थीं और उन्होंने जानबूझकर अपीलकर्ता पर दबाव बनाया। 2019 में एक अन्य व्यक्ति के खिलाफ भी शिकायतकर्ता द्वारा इसी प्रकार की शिकायत दर्ज कराई गई थी।
राज्य सरकार की ओर से:
राज्य सरकार की ओर से वकील ने अपील का विरोध करते हुए कहा कि गंभीर आरोप लगाए गए हैं और जांच पूरी होनी चाहिए।
न्यायालय के अवलोकन
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि दोनों एफआईआर के आरोपों में भारी विरोधाभास है। पीठ ने कहा:
“यह स्वाभाविक नहीं है कि शिकायतकर्ता पहले की एफआईआर में उन घटनाओं का उल्लेख करना भूल जाएं, जो पहले ही घटित हो चुकी थीं।”
अदालत ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता एक 30 वर्षीय शिक्षित महिला हैं और उन्होंने व्हाट्सएप चैट्स में खुद स्वीकार किया है कि वह “ग्रीन कार्ड होल्डर” को फंसाना चाहती थीं और “अगले शिकार में निवेश” करना चाहती हैं।
न्यायालय ने टिप्पणी की:
“ये चैट शिकायतकर्ता की प्रवृत्ति को दर्शाते हैं जो कि प्रपंचपूर्ण और प्रतिशोधी प्रतीत होती है।”
जातिगत भेदभाव के आरोप को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि पहली एफआईआर में इसका कोई ज़िक्र नहीं था, और यह आरोप बाद की एफआईआर में जोड़ा गया था, जो स्पष्ट रूप से बढ़ा-चढ़ाकर किया गया आरोप है।
अंततः न्यायालय ने कहा:
“मान लेते हैं कि अपीलकर्ता ने विवाह के वादे से पीछे हटने का फैसला किया, तब भी यह नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने झूठे विवाह के वादे पर शिकायतकर्ता से यौन संबंध बनाए, या उन्होंने यह अपराध इसलिए किया क्योंकि शिकायतकर्ता अनुसूचित जाति/जनजाति समुदाय से थीं।”
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए एफआईआर संख्या 103/2022, 751/2021 और उनसे संबंधित सभी कार्यवाहियों को पूरी तरह रद्द कर दिया कि:
“विवादित एफआईआर शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए झूठे, मनगढ़ंत और दुर्भावनापूर्ण आरोपों का पुलिंदा है। रिकॉर्ड में मौजूद तथ्य उसकी प्रतिशोधात्मक और प्रपंचपूर्ण प्रवृत्ति को उजागर करते हैं।”
मामला: बटलंकी केशव (केसवा) कुमार अनुराग बनाम तेलंगाना राज्य व अन्य
आपराधिक अपील संख्या: 2879 / 2025 (एसएलपी (क्रिमिनल) संख्या 3316 / 2023 से उत्पन्न)