सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में महाराष्ट्र के परभणी जिले के उन किसानों को राहत दी, जिनकी ज़मीन वर्ष 1994 में जिंतूर औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना के लिए अधिग्रहित की गई थी। शीर्ष अदालत ने उनका मुआवजा ₹32,000 प्रति एकड़ से बढ़ाकर ₹58,320 प्रति एकड़ कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह फैसला उन अपीलों पर सुनाया, जिनमें किसानों ने बॉम्बे हाईकोर्ट के अप्रैल 2022 के आदेश को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने किसानों की मुआवजा बढ़ाने की याचिकाएं खारिज कर दी थीं।
“हम निर्देश देते हैं कि अपीलकर्ताओं को दिया गया मुआवजा ₹32,000 प्रति एकड़ से बढ़ाकर ₹58,320 प्रति एकड़ किया जाए,” अदालत ने कहा।

अदालत ने माना कि किसानों की भूमि प्रमुख स्थान पर स्थित थी और उन्हें सर्वोच्च बिक्री मिसाल (exemplar) के आधार पर मुआवजा मिलना चाहिए था। पीठ ने यह भी कहा कि भले ही मामला हाईकोर्ट को वापस भेजा जा सकता था, लेकिन चूंकि अपीलकर्ता किसान हैं और उनकी ज़मीन 1990 के दशक की शुरुआत में अधिग्रहित की गई थी, इसलिए न्यायहित में सुप्रीम कोर्ट को ही यह तय करना चाहिए कि उन्हें सर्वोच्च बिक्री मूल्य के आधार पर मुआवजा मिलना चाहिए या नहीं।
न्यायालय ने यह भी दोहराया कि जब समान प्रकृति की भूमि के लिए कई बिक्री मिसालें मौजूद हों, तो “आमतौर पर सबसे उच्चतम और वास्तविक बिक्री मिसाल को प्राथमिकता दी जाती है।”
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि मुआवजा निर्धारण इस सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए कि एक विक्रेता एक इच्छुक खरीदार से अपनी ज़मीन के लिए वास्तविकता में कितनी राशि की अपेक्षा कर सकता है।
यह भूमि अधिग्रहण महाराष्ट्र के परभणी जिले के पुंगला गांव में हुई थी। दिसंबर 1994 में राज्य सरकार ने किसानों की ज़मीन का कब्ज़ा लिया था और ₹45,70,508 का कुल मुआवजा निर्धारित किया गया था। इस मुआवजे को अपर्याप्त मानते हुए किसानों ने पहले संदर्भ न्यायालय और फिर हाईकोर्ट का रुख किया था।