सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि केवल ड्राइविंग लाइसेंस के बिना वाहन चलाना, हालांकि मोटर वाहन अधिनियम (MV Act) के तहत दंडनीय है, लेकिन यह नार्कोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (NDPS Act) के तहत न्यूनतम निर्धारित सजा से अधिक सजा देने का आधार नहीं हो सकता।
न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने मोहम्मद कामिल पटेल बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (आपराधिक अपील संख्या 5036/2025) के मामले में फैसला सुनाते हुए दोषी की 12 साल के सश्रम कारावास की सजा को घटाकर अनिवार्य न्यूनतम 10 साल कर दिया है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह अपील छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट (बिलासपुर) के 15 जनवरी, 2025 के फैसले के खिलाफ दायर की गई थी। हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता को NDPS अधिनियम की धारा 20(b)(ii)(c) (वाणिज्यिक मात्रा में मादक पदार्थ रखने) और मोटर वाहन अधिनियम की धारा 3/181 के तहत दोषी ठहराए जाने की पुष्टि की थी।
मामला एक बोलेरो वाहन से 206.230 किलोग्राम गांजा बरामद होने से संबंधित है, जिसे अपीलकर्ता चला रहा था। सत्र न्यायालय (Trial Court) ने शुरू में 20 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी, जिसे हाईकोर्ट ने घटाकर 12 साल कर दिया था। हालांकि, अपीलकर्ता ने मोटर वाहन अधिनियम के तहत मिली सजा को चुनौती नहीं दी थी, लेकिन NDPS अधिनियम के तहत मिली सजा की अवधि को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
पक्षों की दलीलें
अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि यद्यपि वाहन से वाणिज्यिक मात्रा में मादक पदार्थ बरामद किया गया था, लेकिन अपीलकर्ता का कोई पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और वह पहली बार का अपराधी (First Offender) है।
बचाव पक्ष ने जोर देकर कहा कि NDPS अधिनियम के तहत निर्धारित न्यूनतम सजा 10 वर्ष है। न्यूनतम से अधिक सजा देने के लिए अधिनियम की धारा 32B के तहत कुछ विशेष परिस्थितियां (aggravating factors) होनी चाहिए, जो इस मामले में मौजूद नहीं हैं।
इसके विपरीत, छत्तीसगढ़ राज्य के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले नारायण दास बनाम छत्तीसगढ़ राज्य [2025 INSC 872] का हवाला दिया। राज्य ने तर्क दिया कि कोर्ट धारा 32B में निर्दिष्ट कारकों के अलावा अन्य कारकों पर भी विचार कर सकता है। राज्य का मुख्य तर्क यह था कि अपीलकर्ता बिना ड्राइविंग लाइसेंस के वाहन चला रहा था, जिसे सजा बढ़ाने के लिए एक कारक माना जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
अदालत ने सबसे पहले “चेतन कब्जे” (conscious possession) के मुद्दे पर विचार किया। पीठ ने अपीलकर्ता की इस दलील को खारिज कर दिया कि उसे मादक पदार्थ की जानकारी नहीं थी। कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता वाहन का चालक और एकमात्र सवार था।
कोर्ट ने कहा:
“NDPS अधिनियम की धारा 35 आरोपी की मानसिक स्थिति के बारे में एक उपधारणा (rebuttable presumption) पैदा करती है। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है जो यह दिखाए कि आरोपी को अपने कब्जे वाले वाहन में मादक पदार्थ की मौजूदगी की जानकारी नहीं थी।”
सजा की अवधि के मुद्दे पर, पीठ ने विश्लेषण किया कि क्या ड्राइविंग लाइसेंस न होना NDPS मामले में सजा बढ़ाने का आधार बन सकता है। कोर्ट ने मोटर वाहन अधिनियम के तहत अपराध और NDPS अधिनियम के तहत सजा को बढ़ाने वाली परिस्थितियों के बीच अंतर स्पष्ट किया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा:
“हमारा विचार है कि बिना लाइसेंस के वाहन चलाना मोटर वाहन अधिनियम के तहत चालक को दंडित करने का आधार हो सकता है, जैसा कि वर्तमान मामले में किया गया है। लेकिन यह अपने आप में यह मानने का आधार नहीं हो सकता कि अपराधी अन्य अवैध गतिविधियों में शामिल है जो अपराध को सुविधाजनक बनाती हैं, जिससे NDPS अधिनियम की धारा 32B के खंड (f) के मद्देनजर न्यूनतम से अधिक सजा दी जाए।”
फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने यह नोट किया कि अपीलकर्ता “बिना किसी पूर्व आपराधिक इतिहास वाला पहला अपराधी (first offender)” है। कोर्ट ने माना कि न्याय के उद्देश्यों की पूर्ति तब होगी जब उसकी सजा को घटाकर न्यूनतम निर्धारित अवधि तक सीमित कर दिया जाए।
आदेश पारित करते हुए कोर्ट ने कहा:
“तदनुसार, हम अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हैं और हाईकोर्ट द्वारा दी गई 12 साल की सजा को घटाकर NDPS अधिनियम की धारा 20(b)(ii)(c) के तहत 10 साल का सश्रम कारावास करते हैं। हाईकोर्ट के आदेश का बाकी हिस्सा बरकरार रहेगा।”
परिणामस्वरूप, सुप्रीम कोर्ट ने मोटर वाहन अधिनियम के तहत सजा को बरकरार रखते हुए NDPS अधिनियम के तहत कारावास की अवधि को 2 साल कम कर दिया।

