सुप्रीम कोर्ट ने बिना मध्यस्थता के मुस्लिम महिलाओं के तलाक को अवैध घोषित करने की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें यह घोषित करने के निर्देश जारी करने की मांग की गई थी कि मध्यस्थता के बिना मुस्लिम महिलाओं को तलाक देना शून्य है और उनके बच्चों के पुनर्वास के लिए कदम उठाने की मांग की गई थी।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील से कहा कि इसी तरह के कई मामले पहले से ही लंबित हैं और वह उनमें हस्तक्षेप कर सकते हैं।

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पीठ ने कहा, “चूंकि याचिकाकर्ता के वकील का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत उठाए जाने वाले विषय पर कुछ याचिकाएं लंबित हैं, इसलिए याचिकाकर्ता को उचित आवेदन दायर करके लंबित कार्यवाही में हस्तक्षेप करने की अनुमति दी जाती है।”

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शीर्ष अदालत शाइस्ता अंबर और न्यायबोध फाउंडेशन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें यह घोषित करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी कि मध्यस्थता के बिना मुस्लिम महिलाओं को तलाक देना शून्य है।

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