सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) की कुलपति प्रोफेसर नाइमा खातून की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। इस फैसले के साथ ही ऐतिहासिक विश्वविद्यालय की पहली महिला कुलपति का चयन बरकरार रहेगा।
न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ ने प्रोफेसर मुजफ्फर उरुज रब्बानी और फैजान मुस्तफा द्वारा दायर अपील को ठुकरा दिया। याचिकाकर्ताओं ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें खातून की नियुक्ति को वैध ठहराया गया था।
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि प्रोफेसर खातून की नियुक्ति “हितों के टकराव” से प्रभावित है। उनका आरोप था कि चयन प्रक्रिया के दौरान खातून के पति, जो उस समय एएमयू के कुलपति थे, ने निर्णायक वोट उनकी पत्नी के पक्ष में दिया।

मामला शुरू में मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष आया था, जिसमें न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन भी शामिल थे। 18 अगस्त को न्यायमूर्ति चंद्रन ने खुद को मामले की सुनवाई से अलग कर लिया। उन्होंने कहा कि वे पहले कंसोर्टियम ऑफ नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज़ (CNLU) के चांसलर रहे हैं और उसी दौरान उन्होंने याचिकाकर्ता फैजान मुस्तफा को चुना था।
उन्होंने कहा, “मैं उस समय CNLU का चांसलर था, जब मैंने फैजान मुस्तफा का चयन किया था… इसलिए मैं इस मामले से खुद को अलग कर रहा हूं।”
हालांकि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि न्यायमूर्ति चंद्रन को अलग होने की आवश्यकता नहीं है और वे मामले का निपटारा कर सकते हैं, लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने उन्हें निर्णय लेने का अधिकार देते हुए मामला दूसरी पीठ को सौंप दिया।
इसके बाद मामला न्यायमूर्ति माहेश्वरी और न्यायमूर्ति बिश्नोई की पीठ को सौंपा गया, जिसने सोमवार को याचिका खारिज कर दी। इसके साथ ही प्रोफेसर नाइमा खातून की नियुक्ति पर कानूनी चुनौती समाप्त हो गई और वे एएमयू की पहली महिला कुलपति के रूप में कार्यरत रहेंगी।