सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तेलंगाना बीजेपी की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी के खिलाफ लोकसभा चुनाव प्रचार भाषण से जुड़ा मानहानि मामला रद्द कर दिया था।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने इस मामले में दखल देने से इनकार किया। अदालत ने टिप्पणी की, “हम बार-बार कह रहे हैं कि राजनीतिक लड़ाइयाँ इस अदालत में न लाएँ। खारिज। यदि आप राजनेता हैं, तो आपको मोटी चमड़ी रखनी चाहिए।”
मई 2024 में बीजेपी की तेलंगाना इकाई ने शिकायत दर्ज कराई थी कि चुनावी भाषण में CM रेवंत रेड्डी ने यह कहकर पार्टी की छवि खराब की कि बीजेपी सत्ता में आने पर आरक्षण खत्म कर देगी। शिकायत में कहा गया था कि इस बयान ने पार्टी की साख को नुकसान पहुँचाया।

अगस्त 2023 में हैदराबाद की निचली अदालत ने रेड्डी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (भूतपूर्व) और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 125 (चुनाव के दौरान वर्गों के बीच वैमनस्य फैलाना) के तहत मामला प्रथमदृष्टया साबित माना था। इसके खिलाफ रेड्डी ने हाईकोर्ट का रुख किया।
1 अगस्त को तेलंगाना हाईकोर्ट ने निचली अदालत का आदेश रद्द करते हुए कार्यवाही को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि शिकायत करने वाला व्यक्ति राष्ट्रीय नेतृत्व की ओर से अधिकृत नहीं था, इसलिए शिकायत टिकाऊ नहीं है।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि राजनीतिक भाषण अक्सर अतिरंजित होते हैं और उन्हें मानहानि का आधार मानना भी एक अतिशयोक्ति होगी।
हाईकोर्ट के तर्क से सहमति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी की याचिका खारिज कर दी और साफ कहा कि राजनीतिक लड़ाइयाँ अदालत में नहीं, बल्कि राजनीतिक मंचों पर लड़ी जानी चाहिए।