सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए देशभर के सभी राज्य सूचना आयोगों (SICs) को कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं। यह नोटिस अदालत के उस पूर्व आदेश की अवहेलना को लेकर जारी किए गए हैं जिसमें आयोगों को हाइब्रिड सुनवाई (ऑनलाइन व ऑफलाइन दोनों विकल्प) और ई-फाइलिंग की सुविधा लागू करने का निर्देश दिया गया था।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारड़ीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने राज्य सूचना आयोगों को निर्देश दिया है कि वे 28 अप्रैल 2025 तक विस्तृत अनुपालन रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल करें। यह कार्रवाई अधिवक्ता किशन चंद जैन द्वारा दायर अवमानना याचिका के आधार पर की गई है, जिसमें आरोप लगाया गया था कि आयोगों ने सुप्रीम कोर्ट के 9 अक्टूबर 2023 के आदेश का पालन नहीं किया है।
उक्त आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा था कि दूर-दराज़ क्षेत्रों से आने वाले आरटीआई याचिकाकर्ताओं को राहत देने हेतु सभी राज्य सूचना आयोगों को 31 दिसंबर 2023 तक हाइब्रिड सुनवाई की व्यवस्था और ई-फाइलिंग प्रणाली लागू करनी होगी। इस कदम का उद्देश्य RTI प्रणाली को अधिक सुलभ और प्रभावी बनाना था।

सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा,
“हम पुनः निर्देश देते हैं कि देश के सभी राज्य सूचना आयोग आरटीआई शिकायतों और अपीलों की सुनवाई के लिए हाइब्रिड मोड उपलब्ध कराएं।”
इसके अतिरिक्त, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया था कि प्रत्येक दिन की कॉज लिस्ट (कार्य सूची) में वर्चुअल सुनवाई का लिंक उपलब्ध कराया जाए और राज्य सरकारें आवश्यक तकनीकी अवसंरचना के लिए निधि सुनिश्चित करें। साथ ही सूचना अधिकारियों (PIOs) को नोटिस की सेवा भी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया था, ताकि प्रशासनिक प्रक्रिया और अधिक दक्ष बन सके।
इस सख्त कदम से संकेत मिलता है कि सुप्रीम कोर्ट आरटीआई प्रणाली की पारदर्शिता और कार्यकुशलता सुनिश्चित करने के लिए किसी भी प्रकार की लापरवाही को बर्दाश्त नहीं करेगा।