सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केरल हाईकोर्ट की उस कथित “नियमित प्रथा” पर चिंता व्यक्त की, जिसके तहत अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) याचिकाओं पर सीधे सुनवाई की जाती है, बिना इस शर्त के कि अभियुक्त पहले सत्र न्यायालय (Sessions Court) का दरवाज़ा खटखटाए।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और उसके उत्तराधिकारी भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) में निर्धारित प्रक्रिया से यह विचलन असामान्य है और अन्य किसी भी हाईकोर्ट में ऐसा प्रचलन नहीं है।
पीठ ने टिप्पणी की—
“एक मुद्दा जो हमें परेशान कर रहा है वह यह है कि केरल हाईकोर्ट में यह एक नियमित प्रथा जैसी बन गई है कि वह अग्रिम जमानत याचिकाओं को सीधे स्वीकार करता है, बिना याचिकाकर्ता के पहले सत्र न्यायालय जाने के। ऐसा क्यों है? CrPC या BNSS में एक निर्धारित अनुक्रम दिया गया है। मैं वर्तमान मामले पर टिप्पणी नहीं कर रहा हूं, लेकिन सिद्धांत के तौर पर… यह किसी और हाईकोर्ट में नहीं होता।”

इस प्रणालीगत मुद्दे की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा को अमिकस क्यूरी (amicus curiae) नियुक्त किया और केरल हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से विस्तृत जवाब मांगा।
पीठ ने यह भी कहा कि ट्रायल कोर्ट को दरकिनार करने से कई महत्वपूर्ण तथ्य रिकॉर्ड पर आने से छूट सकते हैं। अदालत ने कहा—
“हम इस पहलू पर विचार करना चाहते हैं और यह तय करेंगे कि क्या हाईकोर्ट में जाना अभियुक्त की पसंद पर निर्भर होगा या यह अनिवार्य होगा कि पहले सत्र न्यायालय से ही रुख किया जाए।”
यह मामला तब उठा जब मोहम्मद रासल सी नामक एक आरोपी, जिस पर नाबालिग से दुष्कर्म का आरोप है, ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। उसकी अग्रिम जमानत याचिका को इस वर्ष मार्च में केरल हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। अब यह मामला 14 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में फिर से सुना जाएगा।