सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश में हिरासत में हुई मौत की जांच CBI को सौंपी, राज्य सरकार की निष्क्रियता पर कड़ी टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मध्य प्रदेश सरकार को 24 वर्षीय युवक की कथित हिरासत में मौत के मामले में कोई ठोस कार्रवाई न करने पर कड़ी फटकार लगाई और मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को सौंपने का आदेश दिया।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने CBI के क्षेत्रीय पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिया कि वह तुरंत मामला दर्ज करें और देवा परधी की मौत की “निष्पक्ष, पारदर्शी और त्वरित” जांच करें। अदालत ने यह भी कहा कि जिन पुलिस अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध है, उन्हें एक महीने के भीतर गिरफ्तार किया जाए और गिरफ्तारी के 90 दिनों के भीतर जांच पूरी की जाए।

यह आदेश देवा परधी की मां और मौसी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान आया। याचिका में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें जांच स्थानांतरित करने से इनकार किया गया था और साथ ही देवा के चाचा एवं एकमात्र चश्मदीद गंगाराम परधी को जमानत देने से भी इनकार कर दिया गया था।

Video thumbnail

याचिकाकर्ताओं के अनुसार, देवा और गंगाराम को एक चोरी के मामले में गिरफ्तार किया गया था और पुलिस हिरासत में दोनों के साथ बर्बरता की गई। देवा की मौत कथित रूप से इसी पुलिस प्रताड़ना के कारण हुई, हालांकि पुलिस ने दावा किया कि उसकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई। गंगाराम इस समय न्यायिक हिरासत में है और उसने पुलिस और जेल अधिकारियों से जान का खतरा बताया है।

READ ALSO  कोविड संक्रमण को रोकने के लिए प्रत्येक 48 घंटों पर सैनिटाइजेशन हो:इलाहाबाद हाई कोर्ट

अदालत ने मध्य प्रदेश सरकार के रवैये पर तीखी टिप्पणी की। राज्य की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने बताया कि दो अधिकारियों को केवल पुलिस लाइन में स्थानांतरित किया गया है। इस पर पीठ ने नाराजगी जताते हुए कहा कि FIR दर्ज होने के बावजूद अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई और परिवार को शुरुआत में शिकायत दर्ज करने से भी रोका गया।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर भी अदालत ने गंभीर सवाल उठाए। पीठ ने कहा, “देवा के शरीर पर कई चोटों के बावजूद मेडिकल बोर्ड ने मृत्यु का कारण नहीं बताया। यह चूक जानबूझकर की गई प्रतीत होती है और इसमें स्थानीय पुलिस का प्रभाव नजर आता है। डॉक्टरों पर भी दबाव डाला गया लगता है।”

READ ALSO  दिल्ली की अदालत ने तीन तलाक देने, आपराधिक धमकी देने के आरोपी व्यक्ति को जमानत दी

अदालत ने nemo judex in causa sua (कोई भी अपने ही मामले में न्यायाधीश नहीं हो सकता) सिद्धांत का हवाला देते हुए कहा कि म्याना पुलिस थाने के खिलाफ लगे आरोपों की निष्पक्ष जांच उसी विभाग द्वारा नहीं हो सकती। मजिस्ट्रियल जांच और गंगाराम के बयान से भी हिरासत में मौत के आरोपों की पुष्टि होती है।

पीठ ने कहा कि FIR दर्ज हुए करीब आठ महीने हो चुके हैं लेकिन अब तक जांच में कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है, जिससे यह आशंका प्रकट होती है कि “अभियोजन को अभियुक्तों द्वारा कुचल दिया जाएगा।”

READ ALSO  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सार्वजनिक पार्क में अनधिकृत मंदिर निर्माण के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया

अंततः सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को “राज्य पुलिस की आपसी मिलीभगत से न्याय में बाधा डालने का क्लासिक उदाहरण” बताते हुए इसकी पूरी जांच तत्काल प्रभाव से CBI को सौंप दी।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles