सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक याचिकाकर्ता और उसके वकीलों को निर्देश दिया कि वे तेलंगाना हाईकोर्ट के एक मौजूदा जज से बिना शर्त माफी मांगें, जिन पर उन्होंने राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामले में “आपत्तिजनक और अमर्यादित आरोप” लगाए थे।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति अतुल एस. चंदुरकर की पीठ एक स्वत: संज्ञान अवमानना मामले की सुनवाई कर रही थी, जो एन. पेड्डी राजू द्वारा दायर एक ट्रांसफर याचिका से उत्पन्न हुआ। इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि जज ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के तहत दर्ज आपराधिक मामला रद्द करते समय पक्षपात और अनुचित आचरण किया।
मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की, “हम किसी भी वादी को इस तरह के आरोप लगाने की इजाजत नहीं दे सकते। हाईकोर्ट के जज संवैधानिक पदाधिकारी होते हैं, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट के जजों के समान सम्मान और संरक्षण प्राप्त है।” उन्होंने चेतावनी दी कि राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों में जजों की निष्पक्षता पर सवाल उठाने की प्रवृत्ति चिंताजनक होती जा रही है।

सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े, जिन पर अवमानना का नोटिस जारी हुआ था, ने अदालत में “बिना शर्त और पूर्ण माफी” पेश की और आरोप लगाने की परिस्थितियों को स्पष्ट किया। हालांकि पीठ ने कहा कि संवैधानिक पीठ के फैसले के अनुसार, न केवल वादी बल्कि याचिका पर हस्ताक्षर करने वाले वकील भी न्यायालय की अवमानना के दोषी हो सकते हैं।
अदालत ने निर्देश दिया कि पहले से निपटाए जा चुके मामले को फिर से तेलंगाना हाईकोर्ट में खोलकर संबंधित जज के समक्ष एक सप्ताह के भीतर पेश किया जाए। पेड्डी राजू को उस जज के सामने बिना शर्त माफी पेश करनी होगी, जिसे जज एक सप्ताह के भीतर स्वीकार या अस्वीकार करेंगे।
मुख्य न्यायाधीश ने हाल के तीन जजों की पीठ के एक फैसले का उल्लेख किया, जिसमें वास्तविक माफी को दंडात्मक कार्रवाई पर प्राथमिकता देने की बात कही गई थी। उन्होंने कहा, “दंड देने के बजाय माफ करने में ही विवेक है।”
गौरतलब है कि 29 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने पेड्डी राजू, उनके एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड रितेश पाटिल और अन्य वकीलों को अवमानना नोटिस जारी किया था और याचिका वापस लेने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। अदालत ने कहा था, “तेलंगाना हाईकोर्ट के मौजूदा जज के खिलाफ आपत्तिजनक आरोप लगाए गए हैं… केवल वादी ही नहीं, बल्कि याचिका पर हस्ताक्षर करने वाला वकील भी अवमानना का दोषी होता है।”