भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक अभूतपूर्व और चिंताजनक घटना सामने आई है। सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही के दौरान पहली बार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के दुरुपयोग का मामला पकड़ा गया है। शीर्ष अदालत उस समय स्तब्ध रह गई जब यह पता चला कि एक वादी ने अपना जवाब तैयार करने के लिए एआई टूल्स का सहारा लिया, जिसके परिणामस्वरूप कोर्ट में सैकड़ों ऐसे फर्जी मुकदमों (केस लॉ) का हवाला दे दिया गया, जिनका वास्तव में कोई अस्तित्व ही नहीं था।
यह मामला जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए.जी. मसीह की पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान सामने आया। यह विवाद ‘ओमकारा एसेट्स रिकंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड’ और ‘गुस्ताद होटल्स प्राइवेट लिमिटेड’ के बीच चल रहा था, जो एनसीएलएटी (NCLAT) की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।
सुनवाई के दौरान, ओमकारा एसेट्स की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल ने पीठ का ध्यान इस गंभीर अनियमितता की ओर खींचा। उन्होंने बताया कि दूसरे पक्ष (गुस्ताद होटल्स बेंगलुरु के प्रमोटर दीपक रहेजा) द्वारा दाखिल किए गए प्रत्युत्तर (rejoinder) में जिन न्यायिक मिसालों का हवाला दिया गया है, वे पूरी तरह से काल्पनिक हैं और किसी भी न्यायिक रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं हैं।
कौल ने तर्क दिया कि जिन कुछ मामलों का सही उल्लेख किया भी गया था, उनमें तय किए गए कानूनी सवालों को एआई टूल ने गलत तरीके से रिपोर्ट किया था। उन्होंने इसे केवल तकनीकी चूक नहीं, बल्कि “केस कानूनों का निर्माण और कानूनी बिंदुओं की मनगढ़ंत रचना” करार दिया।
फर्जीवाड़े का खुलासा होने पर गुस्ताद होटल्स की कानूनी टीम ने तुरंत अपनी गलती स्वीकार कर ली। दीपक रहेजा का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सी.ए. सुंदरम ने इस चूक पर गहरा खेद व्यक्त किया।
पीठ के समक्ष अपनी शर्मिंदगी जाहिर करते हुए सुंदरम ने कहा, “मैं इससे ज्यादा शर्मिंदा कभी नहीं हुआ।” उन्होंने स्वीकार किया कि कोर्ट में यह एक भयानक त्रुटि हुई है। सुंदरम ने एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (AoR) द्वारा दायर एक हलफनामा पढ़कर सुनाया, जिसमें वकील ने बिना शर्त माफी मांगी थी। हलफनामे में स्पष्ट किया गया कि यह जवाब वादी के मार्गदर्शन में तैयार किया गया था, जिसने एआई टूल्स का उपयोग किया था।
सुंदरम ने कहा कि वे याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए मुद्दों से पूरी तरह सहमत हैं और उन्होंने दूषित जवाब को वापस लेने की अनुमति मांगी। उन्होंने अदालत को आश्वासन दिया कि भविष्य में ऐसी गलती दोबारा न हो, इसके लिए पूरी सावधानी बरती जाएगी।
इस घटना ने कोर्ट रूम में कानूनी सबमिशन की विश्वसनीयता पर एक गंभीर बहस छेड़ दी। वरिष्ठ अधिवक्ता कौल ने कहा कि इतनी “गंभीर गलती” के बाद दोषी पक्ष को सुनवाई का हक नहीं होना चाहिए।
कौल ने व्यस्त न्यायपालिका में ‘एआई हेलोसिनेशन’ (AI Hallucinations) के व्यावहारिक खतरों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जजों की पीठ अक्सर एक दिन में 70 से 80 मामलों की सुनवाई करती है, ऐसे में हर एक उद्धरण (citation) की मैन्युअल जांच करना बेहद कठिन है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि अदालत अनजाने में “एआई-जनित झूठ” पर भरोसा कर लेती है, तो यह न्यायिक प्रणाली के लिए “विनाशकारी” साबित होगा।
मामले का संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे हल्के में लेने से इनकार कर दिया। पीठ ने टिप्पणी की, “हम इसे केवल नजरअंदाज नहीं कर सकते।” कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि जब जवाब में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यह वादी के मार्गदर्शन में तैयार किया गया था, तो एओआर (AoR) को दोष क्यों लेना चाहिए।
हलांकि, फर्जी फाइलिंग के विवाद के बावजूद, सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए मुख्य विवाद को गुण-दोष (merit) के आधार पर सुनने का निर्णय लिया।

