एक अपील में अपना फैसला सुनाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कर्मचारी को आपराधिक आरोपों से बरी होने पर भी बर्खास्तगी का आदेश पारित किया जा सकता है।
मामले के संक्षिप्त तथ्य –
प्रतिवादी वर्ष 1992 में कांस्टेबल के रूप में राजस्थान पुलिस सेवा में शामिल हुआ था।
उसी वर्ष, उसके खिलाफ हत्या के एक मामले में धारा 301, 120 बी और 201 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
हालाँकि उसके खिलाफ पहले से ही मुकदमा चल रहा था, फिर भी उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की गई।
उस हत्या के मुकदमे में बरी कर दिया गया था, लेकिन अनुशासनात्मक समिति ने कहा कि
उसके खिलाफ आरोप सबित हुए है और उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
कांस्टेबल ने राजस्थान उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश पीठ के समक्ष याचिका दायर की जिसे खारिज कर दिया गया।
हालांकि, एक डिवीजन बेंच ने सिंगल जज बेंच के आदेश को खारिज कर दिया और प्रतिवादी को सेवा में वापस बहाल करने का निर्देश दिया।
उक्त से क्षुब्ध होकर प्रतिवादी राज्य ने सर्वाेच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
आपराधिक मामले में बरी होने पर स्वतः अनुशासनात्मक जांच समाप्त नहीं होती
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि साजिश के आरोप को बनाए रखने के लिए प्रत्यक्ष सबूत आपराधिक मुकदमे में भी आना मुश्किल था,
इसलिए यदि प्रतिवादी को बरी कर दिया गया तो यह एक अलग परिदृश्य था।
यह देखा गया कि अपील में मुख्य मुद्दा यह था कि उसका नाम एक हत्या के मामले में सामने आया था और
अगर यह पुलिस बल में सेवा करते समय उसकी प्रतिष्ठा और अखंडता को प्रभावित करेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने दक्षिणी रेलवे अधिकारियों बनाम भारत संघ के निर्णय का भी संदर्भ दिया, जहां यह माना गया था कि
अपराधिक मामले में आरोपी कर्मचारी के खिलाफ बर्खास्तगी आदेश पारित किया जा सकता है,
भले ही वह आपराधिक आरोप में बरी हो गया हो।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने देखा कि, कई गवाहों अपने बयान से पलट गये और यहां तक कि
स्टार गवाह ने भी अपना बयान बदल दिया था।
ऐसी परिस्थिति में अनुशासनात्मक कार्यवाही समाप्त नहीं होगी।
अनुशासनात्मक कार्यवाही का उल्लेख करते हुए, अदालत ने टिप्पणी की कि निष्कर्ष निकालने के लिए
पर्याप्त सामग्री थी कि प्रतिवादी का निर्वहन सम्मानजनक नहीं था।
अदालत प्रतिवादी राज्य के तर्क से सहमत थी यदि कर्मचारी को बहाल किया गया था तो यह पुलिस बल में जनता के विश्वास को नष्ट कर सकता है।
प्रतिवादी राज्य की अपील की अनुमति दी गई।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग किया और निर्देश दिया कि
सेवाओं से समाप्ति को सेवा की न्यूनतम योग्यता अवधि की तारीख से माना जाएगा। जिससे की कर्मचारी को पेंशन के लाभ से वंचित ना किया जाये।
Case Details:-
Title:State of Rajasthan vs Heem Singh
Case No. Civil Appeal 3340 of 20202
Coram: Hon’ble Justice DY Chandrachud and Hon’ble Justice Indira Banerjee