परीक्षा शुल्क जमा न होने से अधिवक्ता परीक्षा से वंचित, SBI को ₹7 लाख मुआवजा देने का निर्देश

कानपुर नगर की जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने एक अधिवक्ता को ₹7 लाख का एकमुश्त मुआवजा देने का आदेश भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को दिया है। आयोग ने माना कि बैंक की लापरवाही के कारण शिकायतकर्ता सहायक अभियोजन अधिकारी (A.P.O.) परीक्षा में सम्मिलित नहीं हो सके, जिससे उन्हें कैरियर की अपूर्णनीय क्षति” (irreparable career loss) और “शारीरिक, मानसिक व आर्थिक क्षति” हुई। यह आदेश आयोग के अध्यक्ष श्री विनोद कुमार और सदस्य श्रीमती नीलम यादव की पीठ ने 3 अक्टूबर 2025 को उपभोक्ता वाद संख्या 550/2018 में पारित किया।

मामला क्या था

शिकायतकर्ता अधिवक्ता अवनीश वर्मा ने 16 अक्टूबर 2018 को SBI की अध्यक्ष, नोडल अधिकारी और कृष्णा नगर शाखा प्रबंधक के विरुद्ध शिकायत दर्ज की थी। उन्होंने बताया कि उन्होंने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित A.P.O. 2015 की प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी और मुख्य परीक्षा हेतु ₹225 शुल्क SBI की कृष्णा नगर शाखा में 7 दिसंबर 2015 को जमा किया था।

उनका आरोप था कि बैंक क्लर्क की “दुर्भावनापूर्ण व लापरवाहीपूर्ण” कार्यप्रणाली के कारण शुल्क आयोग के खाते में जमा नहीं हुआ और केवल एक सामान्य रसीद (संख्या 41514396) दी गई। शिकायतकर्ता ने दो दिन बाद वेबसाइट पर विवरण अपडेट करने की कोशिश की, पर सफलता नहीं मिली। शाखा ने “तकनीकी कारण” बताते हुए दो दिन बाद पुनः प्रयास करने को कहा। 11 दिसंबर को भी असफलता मिलने के बाद अंतिम तिथि 13 दिसंबर तक कोई उपाय शेष नहीं था, क्योंकि 12 दिसंबर शनिवार और 13 दिसंबर रविवार था।

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इससे वे परीक्षा में शामिल नहीं हो सके और उन्होंने कहा कि उन्हें “सीधा करियर लॉस हुआ, जो अपूरणीय है।” उन्होंने 11 दिसंबर 2015 को बैंकिंग लोकपाल के पास शिकायत की। शाखा प्रबंधक ने 8 अप्रैल 2016 को पत्र लिखकर गलती स्वीकार की। लोकपाल ने 21 मई 2018 को ₹10,000 मुआवजा देने का आदेश दिया, जिसे शिकायतकर्ता ने अस्वीकार कर उपभोक्ता आयोग में ₹20 लाख मुआवजे की मांग की।

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कार्यवाही और आयोग के निष्कर्ष

बैंक ने न तो जवाब दाखिल किया और न ही आयोग के समक्ष उपस्थित हुआ। परिणामस्वरूप 14 मई 2019 को एकतरफा कार्यवाही (ex-parte) का आदेश हुआ। बाद में शाखा प्रबंधक की पुनर्विचार याचिका ₹300 लागत पर स्वीकार हुई, पर बैंक ने यह लागत नहीं दी। आयोग ने 17 नवंबर 2022 को बैंक का लिखित बयान “ग्रहणीय नहीं” मानते हुए उसका पक्ष बंद कर दिया।

अवनीश वर्मा ने अपने पक्ष में अनेक दस्तावेज़ दाखिल किए — शुल्क जमा रसीद, आयोग की अधिसूचना, बैंकिंग लोकपाल का आदेश, बैंक की क्षमायाचना और 2007 A.P.O. परीक्षा की अंकतालिका।

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आयोग ने माना कि शिकायतकर्ता वास्तव में परीक्षा में सम्मिलित नहीं हो सके क्योंकि शुल्क समय पर जमा नहीं हुआ। निर्णय में कहा गया, “इससे शिकायतकर्ता को सीधे करियर की हानि हुई, जो निस्संदेह अपूरणीय है।”

आयोग ने यह भी उल्लेख किया कि बैंकिंग लोकपाल द्वारा ₹10,000 मुआवजा देने का आदेश स्वयं बैंक की त्रुटि सिद्ध करता है। बैंक ने 8 अप्रैल 2016 के पत्र में अपनी गलती स्वीकार की थी।

आयोग ने अवनीश वर्मा की चयन संभावनाओं पर टिप्पणी करते हुए कहा कि A.P.O. 2007 परीक्षा (100 पदों) में उन्होंने 203 अंक प्राप्त किए थे, जबकि ओबीसी वर्ग की कट-ऑफ 212 थी, यानी केवल 9 अंकों से वे पीछे रह गए थे। वर्ष 2015 की अधिसूचना में 372 पद थे, इसलिए “पूर्ण संभावना थी कि शिकायतकर्ता चयनित हो जाते।”

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अंतिम आदेश

आयोग ने शिकायत को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए SBI सहित सभी प्रतिवादियों को संयुक्त रूप से यह भुगतान करने का आदेश दिया—

  1. ₹7,00,000 एकमुश्त मुआवजा “करियर हानि व शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक क्षति” के लिए।
  2. इस राशि पर 7% वार्षिक साधारण ब्याज शिकायत दर्ज करने की तिथि (16 अक्टूबर 2018) से वास्तविक भुगतान की तिथि तक।
  3. ₹10,000 वाद व्यय के रूप में।

बैंक को आदेश की अनुपालन 45 दिनों के भीतर सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं।

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