मद्रास हाईकोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) द्वारा सर्किल आधारित अधिकारी (CBO) पद पर नियुक्ति को ख़ारिज किए जाने के निर्णय को सही ठहराया है। यह निर्णय न्यायमूर्ति एन. माला ने रिट याचिका संख्या 11122/2021 में पारित किया, जिसमें याचिकाकर्ता पी. कार्तिकेयन की याचिका को खारिज कर दिया गया।
पृष्ठभूमि
भारतीय स्टेट बैंक ने 27 जुलाई 2020 को CBO पद के लिए विज्ञापन जारी किया था। याचिकाकर्ता ने सभी चयन चरणों — लिखित परीक्षा, साक्षात्कार, चिकित्सकीय परीक्षण आदि को सफलतापूर्वक पार कर लिया था और 12 मार्च 2021 को नियुक्ति पत्र भी जारी कर दिया गया था। हालांकि, 9 अप्रैल 2021 को बैंक ने उनकी नियुक्ति को रद्द कर दिया, यह कहते हुए कि उनकी CIBIL रिपोर्ट में वित्तीय अनुशासन की गंभीर कमियाँ पाई गई हैं।
इस निर्णय के विरुद्ध याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर कर नियुक्ति रद्द करने के आदेश को निरस्त करने और सेवा में शामिल होने की अनुमति देने की मांग की।

याचिकाकर्ता की दलील
याचिकाकर्ता की ओर से यह तर्क दिया गया कि विज्ञापन जारी होने की तिथि पर उनके ऊपर कोई बकाया ऋण नहीं था और उन्होंने सभी ऋण चुका दिए थे। उन्होंने दावा किया कि न तो उन्हें CIBIL ने डिफॉल्टर घोषित किया और न ही किसी अन्य एजेंसी ने, इसलिए उनकी नियुक्ति को रद्द किया जाना गलत था।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उनके समान परिस्थिति वाले अन्य अभ्यर्थियों को सेवा में शामिल होने की अनुमति दी गई, जिससे उनके साथ भेदभाव हुआ।
बैंक का पक्ष
बैंक की ओर से यह कहा गया कि विज्ञापन की धारा 1(E) के अनुसार, जिन अभ्यर्थियों के नाम पर ऋण/क्रेडिट कार्ड भुगतान में चूक या CIBIL या अन्य एजेंसियों से प्रतिकूल रिपोर्ट हो, वे पात्र नहीं माने जाएंगे। यह शर्त स्पष्ट रूप से दी गई थी।
बैंक ने याचिकाकर्ता की 12.03.2021 की CIBIL रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि उस रिपोर्ट में अनेक चूकें, ऋण वसूली हेतु दायर वाद, क्रेडिट कार्ड बकाया की राइट-ऑफ, तथा 2016 से 2021 के बीच 50 से अधिक व्यक्तिगत ऋणों की पूछताछ शामिल थीं, जिससे वित्तीय अनुशासनहीनता प्रमाणित होती है।
न्यायालय का विश्लेषण
न्यायमूर्ति एन. माला ने कहा कि याचिकाकर्ता की व्याख्या कि विज्ञापन तिथि पर बकाया न होना ही पर्याप्त था, अनुचित है। उन्होंने कहा:
“यह स्पष्ट है कि केवल ऋण चुका देना पर्याप्त नहीं, बल्कि पूरे समयावधि में ऋणों की अदायगी का रिकॉर्ड साफ़ होना चाहिए और किसी भी प्रकार की प्रतिकूल CIBIL रिपोर्ट नहीं होनी चाहिए।”
न्यायालय ने यह भी माना कि याचिकाकर्ता ने अपने उत्तर में ऋण अदायगी में चूक को स्वीकार किया था और इस कारण बैंक द्वारा धारा 1(E) का प्रयोग करते हुए नियुक्ति रद्द करना पूरी तरह उचित था।
सुप्रीम कोर्ट के Chief Manager, Punjab National Bank बनाम Anik Kumar Das [(2021) 12 SCC 80] में दिए गए निर्णय का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि एक बार जब कोई अभ्यर्थी विज्ञापन की शर्तों को स्वीकार करते हुए प्रक्रिया में भाग लेता है, तो बाद में उन शर्तों को चुनौती नहीं दी जा सकती।
भेदभाव के आरोप पर
न्यायालय ने भेदभाव के आरोप को खारिज करते हुए कहा कि बैंक ने केवल उन्हीं अभ्यर्थियों को सेवा में शामिल किया, जिन्होंने 20.03.2021 की आंतरिक सर्कुलर की शर्तों का पालन किया। चूंकि याचिकाकर्ता ने एक से अधिक ईएमआई में भुगतान नहीं किया था, इसलिए वह उस श्रेणी में नहीं आते।
निष्कर्ष
अंत में न्यायमूर्ति एन. माला ने कहा कि याचिकाकर्ता की CIBIL रिपोर्ट में दर्ज ऋण चूक को देखते हुए याचिका में कोई मेरिट नहीं है। उन्होंने कहा:
“बैंकिंग सेवा में जहाँ कर्मचारियों को जनता के पैसे से काम करना होता है, वहाँ वित्तीय अनुशासन अत्यंत आवश्यक है। ऐसे में वित्तीय अनुशासनहीन व्यक्ति पर सार्वजनिक धन की ज़िम्मेदारी नहीं सौंपी जा सकती।”
इस आधार पर रिट याचिका खारिज कर दी गई और संबंधित अंतरिम याचिका भी समाप्त की गई।
मामले का विवरण:
- मामला: पी. कार्तिकेयन बनाम द जनरल मैनेजर एवं अन्य
- पीठ: न्यायमूर्ति एन. माला
- मामला संख्या: रिट याचिका संख्या 11122/2021
- वकील: याचिकाकर्ता की ओर से श्री वी. सिद्धार्थ; प्रतिवादियों की ओर से श्री सी. मोहन और सुश्री ए. रेक्सी जोसेफिन मैरी