हिज़्ब-उल-मुजाहिदीन प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन के दो बेटों, सैयद अहमद शकील और सैयद शाहिद यूसुफ़ ने जेल में बंद रहते हुए परिवार से टेलीफोन पर बात करने की अनुमति बहाल करने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। यह याचिका दिल्ली जेल नियमावली की धारा 631 को चुनौती देती है, जो आतंकवाद और राज्य के खिलाफ अपराधों में आरोपित कैदियों के टेलीफोनिक संपर्क को प्रतिबंधित करती है।
मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने शुक्रवार को मामले पर संज्ञान लिया, लेकिन राज्य और जेल प्रशासन की ओर से कोई पेशी न होने पर सुनवाई की अगली तारीख 22 मई तय की।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि अप्रैल 2024 में जारी परिपत्र के तहत उन्हें सप्ताह में केवल एक बार कॉल की अनुमति देना मनमाना फैसला है, जबकि 2022 की एक नीति के तहत पहले उन्हें सप्ताह में पाँच बार कॉल करने की छूट थी।

शकील को 2018 में श्रीनगर से गिरफ्तार किया गया था। उन पर 2011 के एक आतंकी फंडिंग मामले में हिज़्ब-उल-मुजाहिदीन के नेटवर्क से हवाला के जरिए धन प्राप्त करने का आरोप है। वहीं, यूसुफ़ को 2017 में गिरफ्तार किया गया और 2018 में उनके खिलाफ विदेशी फंडिंग में संलिप्तता को लेकर आरोपपत्र दाखिल किया गया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से यह भी कहा गया कि अप्रैल 2024 के बाद से शकील को अपने परिवार से किसी भी तरह का संपर्क नहीं मिला है और विभिन्न कैदियों के बीच कॉल की सुविधा में भेदभाव उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
दिल्ली जेल नियमावली, 2018 की धारा 631 के अनुसार, आतंकवाद या गंभीर अपराधों में आरोपित कैदियों को केवल उप महानिरीक्षक (रेंज) की पूर्व अनुमति के बाद ही टेलीफोन या इलेक्ट्रॉनिक संचार की अनुमति दी जा सकती है। हाईकोर्ट ने इस वर्ष जनवरी में इस नियम की वैधता को बरकरार रखते हुए कहा था कि यह सार्वजनिक सुरक्षा के हित में बनाया गया है और इसे मनमाना नहीं माना जा सकता।
उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ताओं के पिता, सैयद सलाहुद्दीन, अमेरिका द्वारा नामित वैश्विक आतंकवादी हैं और हिज़्ब-उल-मुजाहिदीन के स्वयंभू कमांडर हैं, जो कश्मीर में सक्रिय प्रमुख आतंकी संगठनों में से एक है।
अब यह मामला मई महीने के अंत में दोबारा सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है, जिसमें याचिकाकर्ताओं की राहत की मांग पर विचार किया जाएगा।