इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने श्रीमती गरिमा और पाँच अन्य द्वारा दाखिल उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 12 के तहत अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, लखनऊ द्वारा जारी समन आदेश को रद्द करने की मांग की थी। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि सास स्वयं पीड़ित है, तो वह अपनी बहू के खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम की धाराओं का सहारा ले सकती है।
यह मामला आवेदन संख्या 2697/2025 (धारा 528, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अंतर्गत, पूर्व में धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता) के तहत माननीय न्यायमूर्ति अलोक माथुर द्वारा सुना गया।
मामला संक्षेप में
शिकायतकर्ता, याचिकाकर्ता संख्या 1 (श्रीमती गरिमा) की सास हैं। उनका आरोप था कि विवाह के उपरांत गरिमा ने अपने पति पर रायबरेली जाकर अपने मायके में रहने का दबाव डाला। जब पति ने इनकार किया तो बहू ने न केवल पति के साथ दुर्व्यवहार शुरू कर दिया, बल्कि शिकायतकर्ता के साथ भी बुरा व्यवहार करने लगी।
इसके अलावा यह भी आरोप लगाया गया कि 30 जून 2024 को श्रीमती गरिमा और उनके परिजनों ने जबरन शिकायतकर्ता के पास से जेवरात और नकदी छीन ली। इन आरोपों के आधार पर निचली अदालत ने 13 सितंबर 2024 को शिकायत वाद संख्या 5786/2024 में समन जारी किया।
याचिकाकर्ताओं की दलीलें
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता सुशीलेंद्र कुमार साहू ने निम्नलिखित तर्क रखे:
- यह शिकायत श्रीमती गरिमा द्वारा पहले से दर्ज धारा 498ए, 323, 504, 506 आईपीसी और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत दर्ज एफआईआर का प्रतिशोधात्मक उत्तर है।
- याचिकाकर्ता संख्या 1 ने धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण के लिए भी अर्जी दी हुई है।
- सास “अधिनियम के तहत पीड़ित महिला” की परिभाषा में नहीं आती, अतः वह धारा 12 के तहत शिकायत नहीं कर सकती।
न्यायालय की विवेचना एवं निर्णय
न्यायालय ने इन सभी दलीलों को खारिज करते हुए समन आदेश को सही ठहराया। न्यायमूर्ति अलोक माथुर ने कहा:
“शिकायतकर्ता द्वारा घरेलू हिंसा से संबंधित स्पष्ट आरोप लगाए गए हैं… निचली अदालत ने शिकायत का समुचित संज्ञान लेकर संतोषजनक रूप से समन जारी किया है।”
न्यायालय ने जोर दिया कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 एक सामाजिक कल्याणकारी कानून है और इसे उदारतापूर्वक व्याख्यायित किया जाना चाहिए। न्यायालय ने धारा 2(क) और 2(फ) का हवाला देते हुए कहा:
“यदि सास को बहू या किसी अन्य पारिवारिक सदस्य द्वारा मानसिक या शारीरिक प्रताड़ना दी जाती है, तो निश्चित रूप से वह ‘पीड़ित महिला’ की परिधि में आती है और धारा 12 के तहत आवेदन दायर करने की अधिकारिता रखती है।”
न्यायालय ने स्पष्ट किया:
“‘पीड़ित महिला’ से आशय किसी भी ऐसी स्त्री से है, जो प्रतिवादी के साथ घरेलू संबंध में रही हो और जिसने किसी भी प्रकार की घरेलू हिंसा का आरोप लगाया हो।”
अंततः न्यायालय ने निर्णय दिया कि:
“सास एक पीड़ित महिला है, जो बहू के साथ साझा घर में एक संयुक्त परिवार के रूप में रही है, अतः उसे अधिनियम की धारा 12 के अंतर्गत आवेदन करने का अधिकार है।”
इस आधार पर न्यायालय ने याचिका को निराधार मानते हुए खारिज कर दिया और निचली अदालत द्वारा घरेलू हिंसा प्रकरण में जारी समन आदेश को यथावत बनाए रखा।
मामले का शीर्षक: श्रीमती गरिमा व अन्य बनाम राज्य उत्तर प्रदेश एवं अन्य
मामला संख्या: आवेदन संख्या 2697 / 2025 (धारा 482 बीएनएसएस)