एक ऐतिहासिक फैसले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कानूनी सिद्धांत को दोहराया कि कर्मचारियों को संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत पदोन्नति के लिए विचार किए जाने का मौलिक अधिकार है, लेकिन उन्हें पदोन्नति पाने का पूर्ण या मौलिक अधिकार नहीं है। यह फैसला पश्चिम बंगाल सरकार और अन्य बनाम डॉ. अमल सतपथी और अन्य (2023 की एसएलपी (सिविल) डायरी संख्या 43488 से उत्पन्न सिविल अपील) के मामले में आया।
न्यायमूर्ति पामिदिघंतम श्री नरसिम्हा और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कलकत्ता हाईकोर्ट और पश्चिम बंगाल प्रशासनिक न्यायाधिकरण के पहले के फैसलों को खारिज कर दिया, जिसमें एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी को पदोन्नति के पद के लिए काल्पनिक वित्तीय लाभ देने का निर्देश दिया गया था, जिसे उसने कभी ग्रहण ही नहीं किया था।
मामले की पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता, पश्चिम बंगाल सरकार ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस निर्णय को चुनौती दी, जिसमें सेवानिवृत्त प्रधान वैज्ञानिक अधिकारी डॉ. अमल सत्पथी को काल्पनिक वित्तीय लाभ प्रदान करने के न्यायाधिकरण के निर्देश की पुष्टि की गई थी। डॉ. सत्पथी को 31 दिसंबर, 2016 को उनकी सेवानिवृत्ति से पहले मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी के पद पर पदोन्नति के लिए अनुशंसित किया गया था, लेकिन प्रशासनिक देरी के कारण पदोन्नति को अंतिम रूप नहीं दिया गया था।
औपचारिक पदोन्नति के अभाव के बावजूद, हाईकोर्ट और न्यायाधिकरण ने फैसला सुनाया था कि डॉ. सत्पथी काल्पनिक वित्तीय लाभ के हकदार थे, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनकी पेंशन उच्च पद के वेतनमान को दर्शाती है।
मुख्य कानूनी मुद्दे
1. पदोन्नति का अधिकार बनाम पदोन्नति के लिए विचार किए जाने का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने जांच की कि क्या कोई सरकारी कर्मचारी उस पदोन्नति के लिए वित्तीय या पूर्वव्यापी लाभ का दावा कर सकता है, जिसके लिए उनकी सिफारिश की गई थी, लेकिन उन्होंने औपचारिक रूप से पदोन्नति ग्रहण नहीं की थी।
2. पश्चिम बंगाल सेवा नियम के नियम 54(1)(ए) की प्रयोज्यता
नियम में यह प्रावधान है कि किसी कर्मचारी को वेतन पाने के लिए उच्च पद का कार्यभार संभालना होगा, इस बात पर जोर देते हुए कि पदोन्नति कार्यभार संभालने की तिथि से प्रभावी होती है, न कि केवल सिफारिश की तिथि से।
3. प्रशासनिक देरी का प्रभाव
न्यायालय ने इस बात पर विचार किया कि क्या नियोक्ता के कारण पदोन्नति प्रक्रिया में देरी कर्मचारी को वित्तीय लाभ प्रदान करने को उचित ठहराती है।
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति मेहता ने निर्णय सुनाते हुए पदोन्नति के लिए विचार किए जाने के अधिकार और पदोन्नति के अधिकार के बीच अंतर पर जोर दिया। उदाहरणों का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा:
“पदोन्नति के लिए विचार किए जाने का अधिकार अनुच्छेद 14 और 16 के तहत एक मौलिक अधिकार है। हालांकि, वास्तविक पदोन्नति पात्रता और कार्यभार संभालने पर निर्भर करती है और यह एक पूर्ण या मौलिक अधिकार नहीं है।”
वित्तीय लाभों के मुद्दे पर न्यायालय ने फैसला सुनाया:
“पदोन्नति केवल कार्यभार संभालने पर ही प्रभावी होती है। स्पष्ट सक्षम प्रावधानों के अभाव में पूर्वव्यापी वित्तीय लाभ प्रदान नहीं किए जा सकते, खासकर तब जब कर्मचारी ने उच्च पद पर सेवा नहीं की हो।”
न्यायालय ने यूनियन ऑफ इंडिया बनाम एन.सी. मुरली और स्टेट ऑफ बिहार बनाम अखौरी सचिंद्र नाथ सहित अपने पिछले फैसलों का संदर्भ दिया, ताकि इस सिद्धांत को पुष्ट किया जा सके कि यदि कर्मचारी सेवानिवृत्त हो गया है या कैडर में नहीं था, तो उसे पूर्वव्यापी रूप से पदोन्नति नहीं दी जा सकती।
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट और न्यायाधिकरण के फैसलों को पलटते हुए फैसला सुनाया कि:
– डॉ. सत्पथी को उनकी सेवा अवधि के दौरान पदोन्नति के लिए विचार किए जाने का अधिकार था, लेकिन उनकी पदोन्नति की मंजूरी से पहले उनकी सेवानिवृत्ति ने उच्च पद के लिए वित्तीय लाभों के किसी भी दावे को रोक दिया।
– पश्चिम बंगाल सेवा नियमों के नियम 54(1)(ए) ने स्पष्ट रूप से कर्तव्यों को ग्रहण किए बिना पूर्वव्यापी वेतन पर रोक लगा दी।
न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार की अपील को स्वीकार कर लिया और घोषित किया कि पहले के फैसले “कानून की नजर में अस्थिर” थे।