भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सुओ मोटो रिट याचिका (सीआरएल.) संख्या 4/2021 में एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए कहा है कि दोषियों को सजा में छूट (रिमिशन) दिए जाने की प्रक्रिया स्पष्ट नीति द्वारा संचालित होनी चाहिए और इसे मनमाने ढंग से लागू नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत दोषियों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए तथा रिमिशन देने या अस्वीकार करने में मनमानी नहीं होनी चाहिए।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला सुओ मोटो रिट याचिका के रूप में शुरू हुआ, जिसमें दोषियों को सजा में छूट दिए जाने की नीति पर विचार किया गया। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मुद्दे को इसलिए उठाया ताकि राज्य सरकारें दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 432 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 473 के तहत रिमिशन प्रक्रिया को निष्पक्ष और न्यायसंगत तरीके से लागू करें।
इस मामले में न्यायालय की सहायता वरिष्ठ अधिवक्ता लिज मैथ्यू और अधिवक्ता नवनीत आर. ने की। यह मुद्दा इसलिए महत्वपूर्ण बना क्योंकि कई मामलों में दोषियों को बिना किसी कारण रिमिशन से वंचित किया गया था, जबकि कुछ मामलों में बिना उचित आधार के रिमिशन दिया गया।
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मुख्य कानूनी प्रश्न
1. क्या बिना आवेदन किए रिमिशन पर विचार किया जा सकता है?
सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि यदि किसी राज्य में रिमिशन नीति लागू है, तो सरकार को पात्र दोषियों के मामलों पर स्वतः विचार करना चाहिए, भले ही दोषी द्वारा आवेदन न किया गया हो।
‘राशिदुल जफर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2024)’ मामले का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि दोषियों के अधिकार उनकी कानूनी संसाधनों तक पहुंच पर निर्भर नहीं होने चाहिए।
2. क्या रिमिशन आदेश को स्वचालित रूप से रद्द किया जा सकता है?
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि एक बार दी गई रिमिशन को मनमाने ढंग से रद्द नहीं किया जा सकता।
‘माफाभाई मोतीभाई सागर बनाम गुजरात राज्य (2024)’ मामले में दिए गए निर्णय के आधार पर न्यायालय ने कहा कि रद्द करने से पहले प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करना आवश्यक है, जिसमें शो-कॉज नोटिस और दोषी को सुनवाई का अवसर मिलना चाहिए।
3. क्या रिमिशन अस्वीकार करने के लिए कारणों का उल्लेख करना अनिवार्य है?
न्यायालय ने कहा कि रिमिशन पर लिया गया हर निर्णय उचित कारणों पर आधारित होना चाहिए, जिससे पारदर्शिता और निष्पक्षता बनी रहे।
‘बिल्किस याकूब रसूल बनाम भारत संघ (2024)’ मामले का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि रिमिशन स्वीकृत या अस्वीकृत करने के लिए स्पष्ट और विस्तृत कारणों का उल्लेख आवश्यक है।
4. रिमिशन देते समय क्या शर्तें लगाई जा सकती हैं?
न्यायालय ने कहा कि रिमिशन की शर्तें स्पष्ट, तर्कसंगत और गैर-दमनकारी होनी चाहिए।
न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि शर्तें अपराध की प्रकृति, सार्वजनिक सुरक्षा और दोषी के पुनर्वास की संभावना को ध्यान में रखकर तय की जानी चाहिए।
न्यायालय के महत्वपूर्ण अवलोकन
- “सजा में छूट देना कोई अनुकंपा नहीं, बल्कि प्रशासनिक प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसे निष्पक्ष और न्यायसंगत तरीके से लागू किया जाना चाहिए।”
- “अनुच्छेद 21 के तहत दोषियों की स्वतंत्रता को उनकी आवेदन करने की क्षमता पर निर्भर नहीं होना चाहिए।”
- “रिमिशन को मनमाने या स्वचालित तरीके से रद्द नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना आवश्यक है।”
- “कुछ राज्यों में रिमिशन नीति की अनुपस्थिति मनमाने फैसलों को बढ़ावा देती है, जिसे तुरंत सुधारा जाना चाहिए।”
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देश
- जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में रिमिशन नीति नहीं है, उन्हें दो महीने के भीतर नीति तैयार करनी होगी।
- राज्य सरकारों को पात्र दोषियों के मामलों पर आवेदन के बिना भी विचार करना होगा।
- रिमिशन स्वीकृत या अस्वीकृत करने का निर्णय स्पष्ट कारणों के साथ दर्ज किया जाना चाहिए और दोषी को सूचित किया जाना चाहिए।
- रिमिशन को रद्द करने से पहले दोषी को शो-कॉज नोटिस और निष्पक्ष सुनवाई का अवसर देना होगा।
- राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को यह सुनिश्चित करना होगा कि रिमिशन नीतियों को सही तरीके से लागू किया जाए और दोषियों को कानूनी सहायता दी जाए।
- जेल प्रशासन को दोषियों को यह जानकारी देनी होगी कि वे रिमिशन अस्वीकृति को चुनौती दे सकते हैं।
- राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों को दोषियों की रिमिशन स्थिति को ट्रैक करने के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल बनाना होगा।