इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (UPSRTC) को अपने अधिवक्ताओं की नियुक्ति के लिए एक नया तंत्र तैयार करने का निर्देश दिया है, जिसमें पारदर्शिता, योग्यता आधारित चयन और युवा, प्रथम-पीढ़ी के वकीलों को अवसर देने की व्यवस्था हो। न्यायमूर्ति अजय भनोट ने यह निर्देश इस अवलोकन के बाद दिया कि वर्तमान प्रणाली में “हकदारी संस्कृति” व्याप्त है, जहां योग्यता के बजाय प्रभाव को तरजीह दी जाती है।
मामला और पृष्ठभूमि
यह आदेश श्रीमती जुबैदा बेगम व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम व अन्य (WRITC No. 12610 of 2025) की सुनवाई के दौरान आया। याचिका अदालत के पहले दिए गए निर्देशों के “प्रथम दृष्टया उल्लंघन” के बाद दायर की गई थी। UPSRTC ने अदालत को बताया कि यह विफलता “श्रम न्यायालय में संबंधित अधिवक्ताओं की पेशेवर लापरवाही या अक्षमता” के कारण हुई और उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू की गई है।
अधिवक्ता नियुक्तियों पर न्यायालय की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति भनोट ने राज्य निगमों में अधिवक्ताओं की नियुक्ति की मौजूदा व्यवस्था की कड़ी आलोचना की। अदालत ने कहा,
“अब तक, राज्य निगमों के अधिवक्ताओं की नियुक्तियों में एक हकदारी संस्कृति जड़ें जमा चुकी है, जहां केवल प्रभावशाली परिवारों के उत्तराधिकारियों को ही प्रतिनिधित्व का अवसर दिया जाता है।”
अदालत ने स्पष्ट किया कि यह टिप्पणी किसी विशेष अधिवक्ता की क्षमता पर टिप्पणी नहीं है, बल्कि उस व्यवस्था में आई गिरावट को दर्शाने के लिए है, जहां पद केवल वही हासिल करते हैं जो सत्ता के गलियारों में प्रभाव डाल सकते हैं।

न्यायालय ने कहा कि योग्य अधिवक्ताओं की निष्पक्ष और पारदर्शी नियुक्ति “सुशासन” के केंद्र में है और यह संवैधानिक कानून के अनुरूप है। अदालत ने कुमारी श्रीलेखा विद्यारथी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1991) मामले का हवाला देते हुए कहा कि राज्य को अपने अधिवक्ताओं की नियुक्ति में निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया अपनानी चाहिए, और यही सिद्धांत UPSRTC जैसे सरकारी निगमों पर भी लागू होता है।
प्रथम-पीढ़ी के वकीलों की उपेक्षा
अदालत ने ईमानदार और परिश्रमी प्रथम-पीढ़ी के वकीलों की अनदेखी पर चिंता जताई। न्यायमूर्ति भनोट ने कहा,
“उक्त वर्ग के अधिवक्ताओं को शायद ही कभी मौका मिलता है, क्योंकि वे सत्ता में बैठे लोगों के साथ कोई प्रभाव नहीं बना पाते।”
निर्णय में कहा गया कि यह व्यवस्था अन्यायपूर्ण है और “कानून द्वारा शासन” पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव डालती है, जिससे न्याय व्यवस्था कमजोर होती है। अदालत ने स्पष्ट किया,
“ऐसी नियुक्ति पद्धतियां, जो योग्यता की उपलब्धियों की उपेक्षा कर वंशानुगत संयोगों को महत्व देती हैं, राज्य निगमों में स्वीकार्य नहीं हो सकतीं।”
अधिवक्ताओं द्वारा मामलों का उप-प्रतिनिधित्व
अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि नियुक्त अधिवक्ताओं द्वारा अपने मामलों को अन्य को सौंपने की प्रवृत्ति गंभीर है। इस संदर्भ में, अदालत ने गौरव जैन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य (2021) में अपने पूर्व आदेश का हवाला दिया, जिसमें मुख्य सचिव को इस प्रथा के विरुद्ध निर्देश जारी करने को कहा गया था।
सुधार का रास्ता: नया चयन तंत्र
स्थिति सुधारने के लिए अदालत ने एक संभावित चयन पद्धति सुझाई:
“अधिवक्ताओं का चयन केवल निगम के अधिकारियों द्वारा स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से अदालत की कार्यवाही का गुप्त रूप से अवलोकन करने से किया जा सकता है।”
इसके बाद उनके पेशेवर कौशल और ईमानदारी पर “कड़े जांच-पड़ताल के तंत्र” को लागू किया जाए।
UPSRTC के प्रबंध निदेशक श्री मसूम अली सरवर, जो अदालत में मौजूद थे, ने आश्वासन दिया कि निगम अधिवक्ताओं की नियुक्ति में “बार के सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को अवसर” देने का प्रयास करेगा।
अंतिम निर्देश
अदालत ने UPSRTC को बोर्ड बैठक बुलाकर पारदर्शिता और योग्यता आधारित नियुक्ति योजना को अंतिम रूप देने और अगली तारीख पर योजना अदालत के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। UPSRTC के प्रबंध निदेशक को शपथपत्र दाखिल करने का आदेश दिया गया है। याचिकाकर्ताओं को संशोधन आवेदन दाखिल करने के लिए समय भी दिया गया।
मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर 2025 को निर्धारित की गई है।