सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राजस्थान हाईकोर्ट के उस आदेश में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया, जिसमें राज्य सरकार को लंबे समय से लंबित पंचायत और नगर निकाय चुनाव अप्रैल 2026 तक पूरा कराने का निर्देश दिया गया है। राज्य सरकार की ओर से यह आश्वासन दिए जाने के बाद कि चुनाव निर्धारित समयसीमा के भीतर करा दिए जाएंगे, शीर्ष अदालत ने विशेष अनुमति याचिका पर विचार करने से मना कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची और न्यायमूर्ति विपुल एम पंचोली शामिल थे, ने कांग्रेस नेता और पूर्व विधायक संयम लोढ़ा द्वारा दायर याचिका का निपटारा कर दिया। लोढ़ा ने नगर निकाय चुनाव तुरंत कराए जाने की मांग करते हुए आरोप लगाया था कि राज्य में स्थानीय निकाय चुनावों में अनुचित देरी की जा रही है।
राज्य सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने अदालत को बताया कि ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों के लिए परिसीमन (डिलिमिटेशन) की प्रक्रिया अंतिम चरण में है और हाईकोर्ट द्वारा तय समयसीमा के भीतर चुनाव करा दिए जाएंगे।
पीठ ने राज्य सरकार के इस आश्वासन को रिकॉर्ड पर लेते हुए कहा कि इस स्तर पर उसके बयान पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि किसी कारण से चुनाव में देरी होती है, तो संबंधित पक्ष दोबारा हाईकोर्ट का रुख कर सकते हैं।
पीठ ने कहा, “हमें प्रतीत होता है कि परिसीमन की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है और हाईकोर्ट ने इसे 15 अप्रैल 2026 तक पूरा करने के निर्देश दिए हैं। ऐसे में इस विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर विचार करने का कोई कारण नहीं है।”
14 नवंबर के अपने आदेश में राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को लंबित पंचायत और नगर निगम चुनाव एक साथ कराने और पूरी प्रक्रिया 15 अप्रैल 2026 तक पूरी करने का निर्देश दिया था। हाईकोर्ट ने ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों के लिए परिसीमन की प्रक्रिया 31 दिसंबर तक समाप्त करने के भी निर्देश दिए थे।
हाईकोर्ट ने पंचायतों के पुनर्गठन और परिसीमन को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह को भी खारिज कर दिया था। इसके साथ ही उन याचिकाओं को भी खारिज किया गया था, जिनमें प्रधानों और सरपंचों को हटाए जाने और बाद में प्रशासक के रूप में पुनर्नियुक्त किए जाने को चुनौती दी गई थी।
राजस्थान में 11,000 से अधिक ग्राम पंचायतों और 309 शहरी स्थानीय निकायों में चुनाव कराए जाने हैं। लोढ़ा और अन्य याचिकाकर्ताओं का कहना था कि चुनावों को टालना संविधान के प्रावधानों और राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 का उल्लंघन है।

