राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा श्री पद्मेश मिश्रा को अतिरिक्त महाधिवक्ता (AAG) नियुक्त करने के खिलाफ दायर रिट याचिका को खारिज कर दिया है। याचिकाकर्ता, अधिवक्ता सुनील सामदरिया ने इस नियुक्ति को राजस्थान राज्य विधिक नीति, 2018 का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी थी। हालांकि, हाईकोर्ट ने अपने विस्तृत निर्णय में राज्य सरकार को अपनी विधिक नीति में संशोधन करने और अपने विवेकानुसार विधि अधिकारियों की नियुक्ति करने का अधिकार दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता, अधिवक्ता सुनील सामदरिया ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एस.बी. सिविल रिट पिटीशन संख्या 14130/2024 दायर कर 23 अगस्त 2024 को जारी सरकारी आदेश द्वारा पद्मेश मिश्रा की एएजी पद पर नियुक्ति को चुनौती दी थी। सामदरिया का तर्क था कि मिश्रा के पास राजस्थान राज्य विधिक नीति, 2018 के क्लॉज 14.4 के तहत आवश्यक न्यूनतम दस वर्षों का कानूनी अभ्यास नहीं है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार ने क्लॉज 14.8 को मनमाने ढंग से उसी दिन जोड़ा, ताकि मिश्रा की नियुक्ति को सही ठहराया जा सके।
मामले के प्रमुख कानूनी मुद्दे
- पात्रता मानदंड: क्या एएजी पद के लिए 2018 की नीति के क्लॉज 14.4 के तहत दस वर्षों के कानूनी अनुभव की अनिवार्यता थी?
- सरकार की नीति बदलने की शक्ति: क्या क्लॉज 14.8 को जोड़ना, जिससे किसी भी विशेषज्ञ वकील की नियुक्ति की अनुमति मिली, मनमाना था?
- अतिरिक्त महाधिवक्ता का पद: क्या एएजी का पद एक “सार्वजनिक पद” है, जिसके लिए न्यायिक समीक्षा के तहत क्वो वारंटो रिट दायर की जा सकती है?
- महाधिवक्ता से परामर्श: क्या नियुक्ति से पहले महाधिवक्ता से प्रभावी परामर्श आवश्यक था, जैसा कि नीति के क्लॉज 14.2 में उल्लेख किया गया है?
पक्षकारों की दलीलें
याचिकाकर्ता के तर्क:
- नियुक्ति क्लॉज 14.4 का उल्लंघन करती है, जिसमें न्यूनतम दस वर्षों के अनुभव की शर्त थी।
- क्लॉज 14.8 को जल्दबाजी में और मनमाने तरीके से जोड़ा गया, जिससे मिश्रा की नियुक्ति संभव हो सकी।
- नियुक्ति के लिए महाधिवक्ता से प्रभावी परामर्श नहीं लिया गया।
- यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के “स्टेट ऑफ पंजाब बनाम बृजेश्वर सिंह चाहल” [(2016) 6 SCC 1] में निर्धारित निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ मानदंडों के विपरीत है।
प्रतिवादी (राज्य सरकार) की दलीलें:
- राज्य सरकार के पास विधिक अधिकारियों की नियुक्ति और पात्रता मानदंड तय करने का पूरा अधिकार है।
- क्लॉज 14.4 पूर्ण रूप से अनिवार्य नहीं था, क्योंकि सरकार को भिन्न मानदंड निर्धारित करने की स्वतंत्रता थी।
- क्लॉज 14.8 को मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद जोड़ा गया था, जिससे यह एक वैध नीतिगत निर्णय बन गया।
- एएजी की नियुक्ति एक संविदात्मक (contractual) नियुक्ति है, न कि कोई सरकारी पद, इसलिए इस पर क्वो वारंटो रिट दायर नहीं की जा सकती।
कोर्ट का निर्णय
न्यायमूर्ति सुदेश बंसल ने याचिका को खारिज करते हुए निम्नलिखित महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं:
1. राज्य सरकार की नियुक्ति प्रक्रिया में न्यायालय का हस्तक्षेप नहीं
“नियुक्ति के लिए पात्रता मानदंड तय करना पूरी तरह से नियोक्ता के अधिकार क्षेत्र में आता है, और न्यायालय इसमें यह विचार नहीं करेगा कि कोई अन्य मानदंड अधिक उपयुक्त होता या नहीं।”
- सरकार को पात्रता मानदंड तय करने और अपने प्रशासनिक आवश्यकताओं के अनुसार विधिक अधिकारियों की नियुक्ति करने का अधिकार है।
2. क्वो वारंटो रिट अस्वीकार्य
“अतिरिक्त महाधिवक्ता का पद कोई सरकारी या सार्वजनिक पद नहीं है, बल्कि यह एक संविदात्मक नियुक्ति है।”
- कानून अधिकारियों की नियुक्ति पूरी तरह कार्यकारी (executive) निर्णय होता है, जो सरकार के विवेकाधिकार के अंतर्गत आता है।
3. क्लॉज 14.8 का संशोधन गैर-मनमाना
“घटनाओं का क्रम संयोग मात्र हो सकता है, लेकिन इसे मनमानी, पक्षपात या शक्ति के दुरुपयोग के रूप में नहीं देखा जा सकता।”
- नीति संशोधन एक वैध कार्यकारी निर्णय था, जिसे मंत्रिमंडल द्वारा मंजूरी दी गई थी।
4. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मामलों का समर्थन
- न्यायालय ने “स्टेट ऑफ यूपी बनाम जोहरी मल” [(2004) 4 SCC 714] पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया था कि राज्य को अपने विवेक से विधिक अधिकारियों की नियुक्ति करने का अधिकार है।
- कोर्ट ने “सेंसस कमिश्नर बनाम आर. कृष्णमूर्ति” [(2015) 2 SCC 796] के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि जब तक कोई नीति मनमानी, कपटपूर्ण या मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती, तब तक अदालतें उसमें हस्तक्षेप नहीं करेंगी।
5. बृजेश्वर सिंह चाहल मामले का अपवाद
- कोर्ट ने कहा कि “स्टेट ऑफ पंजाब बनाम बृजेश्वर सिंह चाहल” [(2016) 6 SCC 1] का मामला बड़े पैमाने पर की गई नियुक्तियों से संबंधित था, जबकि राजस्थान सरकार ने अपनी नीति में एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया अपनाई थी।
अंतिम निर्णय
राजस्थान हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि जब तक राज्य सरकार की नियुक्ति में स्पष्ट मनमानी या दुर्भावना साबित नहीं होती, तब तक न्यायालय इस पर हस्तक्षेप नहीं करेगा। कोर्ट ने क्लॉज 14.8 को वैध ठहराया और राज्य सरकार के नीतिगत अधिकारों की पुष्टि की।
मुख्य निष्कर्ष
✅ राज्य सरकार को कानूनी अधिकारियों की नियुक्ति में व्यापक विवेकाधिकार प्राप्त है।
✅ संविदात्मक सरकारी पदों पर क्वो वारंटो रिट दायर नहीं की जा सकती।
✅ न्यायालय तब तक नीतिगत निर्णयों में हस्तक्षेप नहीं करेगा, जब तक कि वे पूरी तरह से मनमाने न हों।
✅ युवा और सक्षम अधिवक्ताओं की नियुक्ति राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आती है।
हालाँकि, कोर्ट ने याचिकाकर्ता के प्रयासों की सराहना की और कहा:
“हालांकि याचिकाकर्ता इस मामले में सफल नहीं हुआ, लेकिन उसकी इस मुद्दे को उठाने की ईमानदार कोशिश सराहनीय है।”
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