लखनऊ की एक अदालत ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को भारतीय सेना और सरकार की नीतियों पर की गई कथित टिप्पणियों को लेकर दायर मानहानि और देशद्रोह के मामले में जमानत प्रदान कर दी है। यह मामला अधिवक्ता नृपेन्द्र पांडे द्वारा दायर किया गया था, जिसमें आरोप लगाया गया कि श्री गांधी ने वर्ष 2018 में भारतीय सेना के संबंध में अपमानजनक बयान दिए थे। अदालत ने व्यक्तिगत बंधपत्र और जमानती बंधपत्र प्रस्तुत करने पर उनकी रिहाई का आदेश दिया।
पृष्ठभूमि
मंगलवार को लखनऊ की एक अदालत ने वरिष्ठ कांग्रेस नेता और सांसद राहुल गांधी को जमानत प्रदान की। यह आदेश उनके खिलाफ बेंगलुरु में 2018 में दिए गए एक भाषण के दौरान कथित मानहानि और देशद्रोह के आरोपों को लेकर दायर आपराधिक शिकायत के संबंध में पारित किया गया।
श्री गांधी इस वर्ष की शुरुआत में उनके खिलाफ जारी समन के अनुपालन में अदालत में उपस्थित हुए। अभियोजन और बचाव पक्ष की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने जमानत याचिका को स्वीकार कर लिया।

यह शिकायत लखनऊ निवासी अधिवक्ता नृपेन्द्र पांडे द्वारा दायर की गई थी। अपनी याचिका में श्री पांडे ने आरोप लगाया कि 8 मई 2018 को बेंगलुरु, कर्नाटक में एक सार्वजनिक संबोधन के दौरान श्री गांधी ने भारतीय सेना के प्रति अपमानजनक बयान दिए। शिकायतकर्ता का आरोप था कि श्री गांधी के बयान में केंद्र सरकार पर सेना का राजनीतिक उद्देश्यों के लिए उपयोग करने का आरोप लगाया गया और यह सार्वजनिक दृष्टिकोण में सशस्त्र बलों की प्रतिष्ठा को कम करने के उद्देश्य से किया गया था।
शिकायतकर्ता ने कहा कि ये कथित बयान भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 124-ए (देशद्रोह) और 505 (सार्वजनिक शरारत उत्पन्न करने वाले कथन) के तहत दंडनीय अपराध की श्रेणी में आते हैं। अदालत ने दिसंबर 2023 में इस शिकायत पर संज्ञान लिया था और प्रथमदृष्टया मामला बनता हुआ पाते हुए श्री गांधी को उपस्थित होने का समन जारी किया था।
पक्षकारों की दलीलें
शिकायतकर्ता की ओर से:
शिकायतकर्ता के अधिवक्ता ने दलील दी कि श्री गांधी द्वारा की गई कथित टिप्पणियां न केवल भारतीय सेना की मानहानि करती हैं, बल्कि वैध रूप से स्थापित सरकार के प्रति असंतोष भड़काने की प्रवृत्ति रखती हैं। उनका कहना था कि ये टिप्पणियां दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य से की गईं, जिससे समाज में विभाजन और गलत सूचना फैलाने का प्रयास हुआ। अधिवक्ता ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जमानत याचिका को खारिज करने की मांग की, यह तर्क देते हुए कि आरोप राष्ट्रीय सुरक्षा और सशस्त्र बलों के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
राहुल गांधी की ओर से:
राहुल गांधी के बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने दलील दी कि उनके मुवक्किल एक सम्मानित नागरिक, चार बार के सांसद हैं और समाज में गहरी जड़ें रखते हैं। उन्होंने कहा कि उनके फरार होने या साक्ष्यों से छेड़छाड़ करने की कोई आशंका नहीं है। बचाव पक्ष ने कहा कि संबंधित टिप्पणियां सरकार की नीतियों की राजनीतिक आलोचना थीं और किसी भी रूप में सेना के विरुद्ध मानहानि या देशद्रोह के अपराध की श्रेणी में नहीं आतीं। उन्होंने आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया और स्थापित कानूनी सिद्धांत का हवाला देते हुए कहा कि “जमानत नियम है, जेल अपवाद”। उन्होंने अदालत से राहत देने की अपील की।
अदालत का विश्लेषण और निर्णय
अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें और अभिलेख पर उपलब्ध सामग्री पर विचार करने के बाद जमानत याचिका पर निर्णय सुनाया। अदालत ने कहा कि जमानत सुनवाई का प्राथमिक उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि आरोपी मुकदमे के दौरान उपस्थित रहे और न्याय में किसी प्रकार का व्यवधान न उत्पन्न हो।
अदालत ने देखा कि आरोपी श्री गांधी समन के अनुपालन में उसके समक्ष उपस्थित हुए, जिससे उनकी कानूनी प्रक्रिया में सहयोग देने की मंशा स्पष्ट होती है। अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि जांच चरण पूरा हो चुका है और मामला मुकदमे के पूर्व चरण में है।
अपने आदेश में अदालत ने श्री राहुल गांधी को व्यक्तिगत बंधपत्र प्रस्तुत करने की शर्त पर जमानत प्रदान की। साथ ही, उन्हें मुकदमे की कार्यवाही में सहयोग करने और किसी प्रकार साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ या गवाहों को प्रभावित करने से परहेज करने का निर्देश दिया।
अब यह मामला मुकदमे के अगले चरण में अग्रसर होगा।