पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने गुरुवार को चंडीगढ़ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) सुरक्षा एवं यातायात सुमेर प्रताप सिंह को अगले सप्ताह अदालत में पेश होने का निर्देश दिया। अदालत ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में हुई एक भयावह घटना के बाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश को खतरे के स्तर से संबंधित विरोधाभासी रिपोर्टों के लिए स्पष्टीकरण मांगा है।
सितंबर 2024 में एक दुखद घटना सामने आई, जब एक व्यक्ति ने न्यायाधीश के निजी सुरक्षा अधिकारी (पीएसओ) से बंदूक छीन ली और स्वर्ण मंदिर में आत्महत्या करने के लिए उसका इस्तेमाल किया। इस घटना ने न्यायाधीश की सुरक्षा के संबंध में तत्काल न्यायिक समीक्षा शुरू कर दी।
घटना की जांच हरियाणा की आईपीएस अधिकारी मनीषा चौधरी ने की। आज की सुनवाई में उन्होंने मुख्य न्यायाधीश शील नागू और न्यायमूर्ति सुधीर सिंह की खंडपीठ को बताया कि घटना का न्यायाधीश से कोई संबंध नहीं था। उनके निष्कर्षों के आधार पर क्लोजर रिपोर्ट की सिफारिश की गई।
हालांकि, सुनवाई में तब मोड़ आया जब अदालत ने चंडीगढ़ पुलिस की एक अलग रिपोर्ट की जांच की, जो एक सीलबंद लिफाफे में बंद थी, जिसमें उसी घटना के कारण न्यायाधीश को बढ़े हुए खतरे का सुझाव दिया गया था। जांच रिपोर्ट और पुलिस के बयान के बीच स्पष्ट विसंगति के कारण अदालत ने प्रदान किए गए सुरक्षा आकलन की सुसंगतता पर सवाल उठाया।
“जांच से न्यायाधीश से कोई संबंध नहीं दिखता है, फिर भी आपकी रिपोर्ट इस घटना के आधार पर खतरे के स्तर को बढ़ाती है। आप इन परस्पर विरोधी स्थितियों को कैसे समेटते हैं?” पीठ ने सवाल किया।
चंडीगढ़ प्रशासन के प्रतिनिधि ने सुझाव दिया कि खतरे के परिदृश्य का पुनर्मूल्यांकन किया जा सकता है और नए सिरे से आकलन के लिए हरियाणा पुलिस के साथ सहयोग करने की पेशकश की।
न्यायपालिका को दिए गए आधिकारिक बयान को वापस लेने की संभावना से हैरान अदालत ने एसएसपी के असंगत दावों के बारे में चिंताओं को उजागर किया और अधिकारी और अन्य सुरक्षा एजेंसियों के बीच समन्वय पर सवाल उठाया।