पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा राज्य कृषि विपणन बोर्ड (HSAMB) की ऑनलाइन स्थानांतरण नीति, 15 जून 2023 को वैध ठहराया है, जिसमें वरिष्ठ कर्मचारियों को स्थानांतरण में प्राथमिकता दी गई है। इस नीति को मनमाना और असंवैधानिक बताते हुए दायर की गई याचिकाओं को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि आयु-आधारित स्थानांतरण प्राथमिकताएँ तर्कसंगत हैं, क्योंकि वृद्ध कर्मचारियों को पारिवारिक जिम्मेदारियों और स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
न्यायमूर्ति जगमोहन बंसल द्वारा दिए गए फैसले में यह स्पष्ट किया गया कि हर कर्मचारी अंततः वृद्ध होगा और इसी नीति के तहत लाभ प्राप्त करेगा।
“इस वर्गीकरण को उचित ठहराने के लिए पर्याप्त कारण प्रतीत होते हैं। वृद्ध कर्मचारियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए क्योंकि उनके पास अधिक अनुभव होता है, लेकिन साथ ही वे अधिक पारिवारिक जिम्मेदारियों और स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करते हैं।”
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला गौरव वाधवा एवं अन्य (CWP-25754-2023 और संबंधित मामले) द्वारा दायर याचिकाओं से जुड़ा था, जो सभी HSAMB में उप-मंडलीय अभियंता (सिविल) के रूप में कार्यरत हैं। याचिकाकर्ताओं ने ऑनलाइन स्थानांतरण नीति को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि यह युवा कर्मचारियों के साथ भेदभाव करती है, क्योंकि स्थानांतरण स्कोरिंग प्रणाली में आयु के लिए 60 अंक आवंटित किए गए हैं।
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उन्होंने यह भी अधिकतम कार्यकाल सीमा का विरोध किया, जिसमें किसी कर्मचारी को:
- एक ही स्थान पर 3 वर्ष,
- एक बाजार समिति में 6 वर्ष,
- और एक मंडल या सर्कल में 8 वर्ष से अधिक नहीं रहने दिया जाता।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सज्जन सिंह और विशाल पुनिया ने तर्क दिया कि यह नीति युवा कर्मचारियों के अवसरों को सीमित करती है, निजी क्षेत्र में कार्यरत जीवनसाथी वाले कर्मचारियों को लाभ नहीं देती, और अनुशासनात्मक कार्रवाई पर नकारात्मक अंकन लागू करके “दोहरे दंड” (double jeopardy) का उल्लंघन करती है।
वहीं, राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता बी.आर. महाजन एवं अधिवक्ता निकिता गोयल और समर्थ सागर ने तर्क दिया कि यह नीति पारदर्शिता सुनिश्चित करने, पक्षपात को रोकने और कर्मचारियों को एक ही स्थान पर जमे रहने से रोकने के लिए बनाई गई है।
मुख्य कानूनी मुद्दे और अदालत की टिप्पणियाँ
1. आयु-आधारित स्थानांतरण अंकन:
याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि युवा कर्मचारियों को कम अंक मिलते हैं, जिससे उनकी पसंदीदा पोस्टिंग मिलने की संभावना कम हो जाती है।
अदालत ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा:
“हर कर्मचारी अंततः वृद्ध होगा और इसी नीति के तहत लाभ प्राप्त करेगा। यह वर्गीकरण न्यायसंगत और तर्कसंगत है, क्योंकि वृद्ध कर्मचारियों को स्वास्थ्य और पारिवारिक जिम्मेदारियों का सामना करना पड़ता है।”
2. अनुशासनात्मक दंड पर नकारात्मक अंकन:
इस नीति के तहत, छोटे अनुशासनात्मक दंड के लिए 5 अंक और बड़े दंड के लिए 10 अंक काटे जाते हैं। याचिकाकर्ताओं ने इसे संविधान के अनुच्छेद 20(2) (Double Jeopardy) के उल्लंघन के रूप में बताया।
हालांकि, अदालत ने इसे खारिज करते हुए कहा:
“कोई व्यक्ति, जिसे गंभीर अनुशासनात्मक दंड दिया गया है, यह दावा नहीं कर सकता कि उसे उसकी पसंद की पोस्टिंग दी जानी चाहिए। नियोक्ता को यह अधिकार है कि वह ऐसे कर्मचारियों को गैर-संवेदनशील स्थानों पर तैनात करे।”
3. निजी क्षेत्र में कार्यरत जीवनसाथी को लाभ न मिलना:
इस नीति में केवल उन कर्मचारियों को 5 अतिरिक्त अंक दिए गए हैं जिनके जीवनसाथी किसी सरकारी विभाग, बोर्ड, या निगम में कार्यरत हैं। निजी क्षेत्र में कार्यरत जीवनसाथियों वाले कर्मचारियों को यह लाभ नहीं दिया गया।
अदालत ने इसे सही ठहराते हुए कहा:
“निजी क्षेत्र की नौकरियाँ आमतौर पर स्थानांतरण योग्य नहीं होतीं। ऐसे में यह लाभ देना अव्यवहारिक होगा।”
4. अधिकतम कार्यकाल सीमा:
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि 3 साल का अधिकतम कार्यकाल और सर्कल में 8 साल की सीमा अनुचित है।
अदालत ने इसे उचित ठहराते हुए कहा कि यह राज्य की मॉडल स्थानांतरण नीति के अनुरूप है, जिससे कोई कर्मचारी लंबे समय तक एक ही स्थान पर नहीं रह सके।
हाईकोर्ट का निर्णय
सभी दलीलों और साक्ष्यों का विश्लेषण करने के बाद, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने याचिकाओं को खारिज कर दिया।
मुख्य निर्णय:
- राज्य सरकार की स्थानांतरण नीति को पारदर्शी और निष्पक्ष बताया गया।
- युवा कर्मचारियों के साथ कोई अनुचित भेदभाव नहीं माना गया।
- अनुशासनात्मक दंड के आधार पर नकारात्मक अंकन को न्यायसंगत ठहराया गया।
- निजी क्षेत्र में कार्यरत जीवनसाथी वाले कर्मचारियों को स्थानांतरण में अतिरिक्त अंक न देना उचित बताया गया।
- अधिकतम कार्यकाल की सीमा को राज्य की नीतियों के अनुरूप बताया गया।
अदालत ने टिप्पणी की:
“उत्तरदाता (HSAMB) ने पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए स्थानांतरण नीति बनाई है। इसमें कोई स्पष्ट मनमानी नहीं है, जो न्यायिक हस्तक्षेप को उचित ठहराए।”
निष्कर्ष
इस फैसले ने स्पष्ट कर दिया कि सरकारी स्थानांतरण नीतियाँ नियोक्ता के अधिकार क्षेत्र में आती हैं, और जब तक वे मनमानी या असंवैधानिक नहीं होतीं, न्यायिक समीक्षा का दायरा सीमित होता है। अदालत ने यह भी माना कि वरिष्ठ कर्मचारियों को उनके अनुभव, पारिवारिक जिम्मेदारियों और स्वास्थ्य संबंधी कारणों से स्थानांतरण में प्राथमिकता देना एक तार्किक निर्णय है।