सक्षम न्यायालय के आदेश से न्यायिक हिरासत में बंद आरोपी के लिए हैबियस कॉर्पस याचिका अस्वीकार्य: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में मनोहर लाल द्वारा दायर हैबियस कॉर्पस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने न्यायिक हिरासत से अपनी रिहाई की मांग की थी। जस्टिस कुलदीप तिवारी की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह कानूनी सिद्धांत पुन: स्थापित किया कि जब किसी व्यक्ति को सक्षम न्यायालय द्वारा वैध न्यायिक रिमांड आदेश के तहत हिरासत में रखा जाता है, तो हैबियस कॉर्पस याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता।

मामले की पृष्ठभूमि

मनोहर लाल, जो याचिकाकर्ता थे, को पुलिस स्टेशन मलोया में दर्ज एफआईआर नंबर 51, दिनांक 21 मई 2024 के तहत भारतीय दंड संहिता की धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात), 420 (धोखाधड़ी), और 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत गिरफ्तार किया गया था। उन्हें धोखाधड़ी में संलिप्त होने के आरोपों के आधार पर हिरासत में लिया गया था। जब ट्रायल कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका को खारिज कर दिया, तो मनोहर लाल ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हैबियस कॉर्पस याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने अपनी निरंतर हिरासत को अवैध करार दिया।

याचिकाकर्ता, जो कि वकील श्री वीनेत कुमार जाखड़ द्वारा प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ने तर्क दिया कि उनकी गिरफ्तारी प्रक्रिया संबंधी सुरक्षा का उल्लंघन है, विशेष रूप से दंड प्रक्रिया संहिता (सीआर.पी.सी.) की धारा 41-ए का पालन न करने की वजह से, जो गिरफ्तारी से पहले नोटिस जारी करने का प्रावधान करती है। इसलिए, मनोहर लाल का दावा था कि उनका रिमांड और उसके बाद की हिरासत अवैध थी, और उन्हें रिहा किया जाना चाहिए।

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कानूनी मुद्दे

मामले में मुख्य मुद्दा यह था कि क्या याचिकाकर्ता को सक्षम न्यायालय द्वारा पारित रिमांड आदेश के तहत न्यायिक हिरासत में रहने पर हैबियस कॉर्पस याचिका पर विचार किया जा सकता है। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि गिरफ्तारी में प्रारंभिक अवैधता और प्रक्रियात्मक चूक के कारण रिमांड आदेश शून्य था और इसलिए उनकी हिरासत अवैध थी।

न्यायालय के अवलोकन और निर्णय

जस्टिस कुलदीप तिवारी ने याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत तर्कों को खारिज कर दिया और यह निर्णय दिया कि हैबियस कॉर्पस याचिका अस्वीकार्य थी। न्यायाधीश ने कई सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का हवाला देते हुए यह जोर दिया कि जब किसी व्यक्ति को सक्षम न्यायालय द्वारा वैध रिमांड आदेश के तहत न्यायिक हिरासत में रखा जाता है, तो हैबियस कॉर्पस के माध्यम से हिरासत को चुनौती नहीं दी जा सकती, जब तक कि आदेश “स्पष्ट अवैधता या अधिकार क्षेत्र की कमी” से ग्रसित न हो।

जस्टिस तिवारी ने महत्वपूर्ण टिप्पणियों में कहा:  

“जब किसी व्यक्ति को सक्षम न्यायालय द्वारा न्यायिक हिरासत में रखा गया हो, तो हैबियस कॉर्पस याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता, जब तक कि रिमांड आदेश अधिकार क्षेत्र की कमी या पूरी तरह से अवैध न हो। गिरफ्तारी के समय की प्रक्रियात्मक त्रुटियाँ बाद में होने वाली न्यायिक रिमांड को अमान्य नहीं बनाती हैं।”

न्यायालय ने कानू सन्याल बनाम जिला मजिस्ट्रेट, दार्जिलिंग (1974) का हवाला दिया, जिसमें यह सिद्धांत स्थापित किया गया कि प्रारंभिक गिरफ्तारी में त्रुटियां बाद की न्यायिक हिरासत को अमान्य नहीं करती हैं। साथ ही, मनुभाई रतिलाल पटेल बनाम गुजरात राज्य (2013) का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया कि रिमांड आदेश को केवल उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है और इसे हैबियस कॉर्पस याचिका के माध्यम से चुनौती नहीं दी जा सकती।

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वी. सेंथिल बालाजी बनाम राज्य (2023) के फैसले का हवाला देते हुए न्यायालय ने यह भी कहा कि:

“एक बार जब आरोपी को सक्षम न्यायालय द्वारा न्यायिक हिरासत में भेजा जाता है, तो रिमांड की वैधता को हैबियस कॉर्पस के माध्यम से चुनौती नहीं दी जा सकती, जब तक कि रिमांड आदेश अधिकार क्षेत्र की कमी या अवैधता से ग्रसित न हो।”

न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि मनोहर लाल के खिलाफ रिमांड आदेश तथ्यात्मक रूप से विचार करने के बाद पारित किया गया था और इसमें कोई कानूनी दोष नहीं था। इसलिए, हिरासत वैध थी और हैबियस कॉर्पस याचिका को खारिज कर दिया गया।

न्यायालय ने महत्वपूर्ण फैसलों का हवाला दिया जिनमें शामिल हैं:

1. कर्नल डॉ. बी. रामचंद्र राव बनाम उड़ीसा राज्य (1971): इस मामले में यह दोहराया गया कि यदि किसी व्यक्ति को वैध न्यायिक आदेश के तहत कारावास में रखा गया हो, तो हैबियस कॉर्पस नहीं दी जा सकती।

2. कानू सन्याल बनाम जिला मजिस्ट्रेट, दार्जिलिंग (1974): इस मामले ने यह स्थापित किया कि प्रारंभिक गिरफ्तारी में प्रक्रियात्मक दोष न्यायिक रिमांड को अमान्य नहीं करता।

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3. मनुभाई रतिलाल पटेल बनाम गुजरात राज्य (2013): इस मामले में यह निर्णय दिया गया कि न्यायिक हिरासत को हैबियस कॉर्पस याचिका द्वारा चुनौती नहीं दी जा सकती।

4. वी. सेंथिल बालाजी बनाम राज्य (2023): इस मामले में यह दोहराया गया कि न्यायिक हिरासत में होने पर गिरफ्तार या हिरासत को चुनौती देने के लिए उपयुक्त न्यायिक मंच का उपयोग किया जाना चाहिए।

अंत में, न्यायालय ने हैबियस कॉर्पस याचिका को खारिज कर दिया और यह पाया कि मनोहर लाल की हिरासत सक्षम न्यायालय द्वारा जारी वैध रिमांड आदेश के तहत कानूनी थी। यद्यपि न्यायालय ने याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी के दौरान प्रक्रियात्मक चूकों के बारे में चिंताओं को माना, लेकिन यह कहा कि इस तरह के मुद्दों को जमानत सुनवाई या अन्य उपयुक्त कार्यवाहियों में उठाया जाना चाहिए।

हालांकि, न्यायालय ने मनोहर लाल को नियमित जमानत के लिए आवेदन करते समय प्रक्रियात्मक उल्लंघनों के मुद्दे उठाने की अनुमति दी।

मामले का विवरण:

– केस नंबर: CRWP-8774-2024  

– पीठ: न्यायमूर्ति कुलदीप तिवारी  

– याचिकाकर्ता: मनोहर लाल  

– प्रतिवादी: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट और अन्य  

– याचिकाकर्ता के वकील: श्री वीनेत कुमार जाखड़

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