इलाहाबाद हाईकोर्ट, लखनऊ पीठ ने सतेंद्र कुमार यादव को जमानत दे दी, जो एक जूनियर इंजीनियर हैं और जिन पर ठेकेदार के बिल को प्रोसेस करने के लिए ₹10 लाख की रिश्वत मांगने का आरोप था। कोर्ट ने कहा कि “किसी भी लोक सेवक द्वारा अवैध लाभ की मांग और स्वीकृति का प्रमाण अनिवार्य है” ताकि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोष सिद्ध किया जा सके।
मामले की पृष्ठभूमि
यह जमानत याचिका क्रिमिनल मिस्सेलिनियस बेल आवेदन संख्या 522/2025 के तहत दायर की गई थी। मामला उस शिकायत पर आधारित था, जिसे महेंद्र कुमार त्रिपाठी (ठेकेदार) ने 28 नवंबर 2024 को पुलिस अधीक्षक (सतर्कता अधिष्ठान), लखनऊ के समक्ष दर्ज कराया था। शिकायत के अनुसार, हरदोई जिले में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) के तहत किए गए ₹40 लाख के सड़क निर्माण कार्य के लंबित बिल को पास कराने के लिए अभियुक्त यादव ने ₹10 लाख की रिश्वत की मांग की थी।
2 दिसंबर 2024 को भ्रष्टाचार निरोधक दल (Anti-Corruption Team) ने ट्रैप ऑपरेशन किया और यादव को ₹1 लाख की रिश्वत लेते हुए कथित रूप से रंगे हाथों पकड़ लिया। 3 दिसंबर 2024 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और तब से वह न्यायिक हिरासत में थे।

कानूनी मुद्दे और न्यायालय की टिप्पणियाँ
इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह ने की और दो प्रमुख कानूनी मुद्दों का विश्लेषण किया:
1. रिश्वत की मांग और स्वीकृति का प्रमाण
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले Neeraj Dutta बनाम राज्य (Govt. of NCT of Delhi) [2023 4 SCC 731] का हवाला देते हुए कहा कि –
“भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोष सिद्ध करने के लिए यह आवश्यक है कि रिश्वत की मांग और उसकी स्वीकृति दोनों को बिना किसी संदेह के प्रमाणित किया जाए।”
कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि यादव ने वास्तव में रिश्वत की मांग की थी।
2. तलाशी और जब्ती की वैधता
कोर्ट ने यह भी पाया कि –
“जब्ती (Seizure) की कार्यवाही कथित अपराध स्थल से 9 किलोमीटर दूर हुई थी, जो कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 103(4) और (5) का उल्लंघन है।”
कानून के तहत तलाशी और जब्ती स्थानीय स्वतंत्र गवाहों की उपस्थिति में होनी चाहिए। कोर्ट ने जब्ती प्रक्रिया में प्रक्रियात्मक खामियों पर संदेह जताते हुए कहा कि –
“यदि कोई जब्ती वास्तविक अपराध स्थल पर नहीं होती, तो उसकी विश्वसनीयता संदिग्ध हो जाती है।”
पक्षकारों की दलीलें
** बचाव पक्ष की दलीलें:**
अभियुक्त की ओर से अधिवक्ताओं लल्लन राय, प्रदीप कुमार राय, प्रकाश पांडे और प्रवीण कुमार शुक्ला ने निम्नलिखित तर्क दिए:
- झूठे आरोप: अभियुक्त को ठेकेदार की निजी दुश्मनी के कारण फंसाया गया है।
- रिश्वत की मांग का कोई प्रमाण नहीं: ठेकेदार का बिल दिसंबर 2023 में ही कार्यकारी अभियंता को भेजा जा चुका था, इसलिए दिसंबर 2024 में रिश्वत मांगने का कोई औचित्य नहीं बनता।
- गैरकानूनी जब्ती कार्यवाही: राजस्थान हाईकोर्ट (Bail Application No. 5457/2024) के एक निर्णय का हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया था कि अपराध स्थल से दूर जब्त किए गए साक्ष्य अविश्वसनीय होते हैं।
- अभियुक्त का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं: अभियुक्त ने जांच में पूरा सहयोग किया है।
** अभियोजन पक्ष की दलीलें:**
सरकारी अधिवक्ता ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा:
- अभियुक्त रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया।
- छाया गवाह (Shadow Witness) मौके पर मौजूद था, जिसने रिश्वत की स्वीकार्यता की पुष्टि की।
- बिल कई महीनों से लंबित था, जो रिश्वत की मांग का स्पष्ट संकेत है।
- अभियुक्त सरकारी कर्मचारी है और जमानत मिलने पर साक्ष्यों से छेड़छाड़ कर सकता है।
न्यायालय का निर्णय
सभी तथ्यों और तर्कों की समीक्षा करने के बाद, न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह ने अभियुक्त को जमानत देने का आदेश दिया। कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा:
रिश्वत की मांग के प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं हैं।
तलाशी और जब्ती में प्रक्रियात्मक खामियां हैं, जिससे जांच की निष्पक्षता पर सवाल उठता है।
संविधान के अनुच्छेद 21 (निजी स्वतंत्रता) के तहत अनावश्यक रूप से हिरासत में रखना उचित नहीं।
जमानत की शर्तें:
- अभियुक्त साक्ष्यों से छेड़छाड़ नहीं करेगा और गवाहों को प्रभावित नहीं करेगा।
- अदालत की कार्यवाही में अनावश्यक विलंब नहीं करेगा।
- चार्ज फ्रेमिंग और गवाही के महत्वपूर्ण चरणों में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होगा।
- यदि अभियुक्त जमानत की शर्तों का उल्लंघन करता है, तो जमानत रद्द की जा सकती है।