प्रक्रिया न्याय की दासी है: झारखंड हाईकोर्ट ने देरी के बावजूद अतिरिक्त दस्तावेज पेश करने की अनुमति दी, 25,000 रुपये का हर्जाना लगाया

झारखंड हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि केवल प्रक्रियात्मक और तकनीकी कारणों से किसी पक्ष को न्याय से वंचित नहीं किया जा सकता। चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की खंडपीठ ने जमशेदपुर की कमर्शियल कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें प्रतिवादी (Defendant) को गवाही के चरण में अतिरिक्त दस्तावेज पेश करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि प्रक्रिया न्याय की दासी है, न कि उसकी स्वामिनी।

यह मामला एक ट्रेडमार्क उल्लंघन के मुकदमे से जुड़ा है। प्रतिवादी रीता वर्मा ने सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश VIII नियम 1-A के तहत अतिरिक्त दस्तावेज रिकॉर्ड पर लाने के लिए एक आवेदन दायर किया था। कमर्शियल कोर्ट ने देरी और बार-बार आवेदन करने के आधार पर इसे खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के इस रवैये को “अत्यधिक तकनीकी” (hyper-technical) करार देते हुए दस्तावेजों को स्वीकार करने का निर्देश दिया, लेकिन साथ ही याचिकाकर्ता पर 25,000 रुपये का हर्जाना (Cost) भी लगाया।

क्या है पूरा मामला?

विवाद 2017 के मूल वाद संख्या 04 से उत्पन्न हुआ है, जो “छगनलाल दयालजी” (वादी) के भागीदारों द्वारा “छगनलाल मदनलाल एंड संस” (प्रतिवादी) की प्रोपराइटर रीता वर्मा के खिलाफ दायर किया गया था। वादी पक्ष ने प्रतिवादी पर “छगनलाल” या “छगनलाल दयालजी” ट्रेडमार्क का उल्लंघन करने और अपने व्यवसाय को वादी के व्यवसाय के रूप में पेश करने (Passing off) का आरोप लगाया था।

वादी पक्ष ने 18 सितंबर 2024 को अपनी गवाही पूरी कर ली थी। इसके बाद, जब प्रतिवादी अपनी गवाही दे रही थीं और 7 गवाहों का परीक्षण हो चुका था, उन्होंने अतिरिक्त दस्तावेज पेश करने की अनुमति मांगी। इन दस्तावेजों में ट्रेडमार्क आवेदन की प्रमाणित प्रतियां, पंजीकरण प्रमाण पत्र, 2016 और 2017 की अखबार की कतरनें और दुकानों की तस्वीरें शामिल थीं। प्रतिवादी का कहना था कि ये दस्तावेज पहले मिल नहीं रहे थे और अखबार की कतरनें ‘ट्रेस’ नहीं हो पाई थीं।

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निचली अदालत का फैसला

12 सितंबर 2025 को, जमशेदपुर की कमर्शियल कोर्ट के पीठासीन अधिकारी ने प्रतिवादी के आवेदन को खारिज कर दिया था। निचली अदालत का कहना था कि यह अतिरिक्त दस्तावेजों के लिए प्रतिवादी का पांचवां आवेदन था और लिखित बयान (Written Statement) दाखिल करते समय इन दस्तावेजों का खुलासा न करने का कोई उचित कारण नहीं बताया गया।

पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ता (प्रतिवादी) का तर्क: अधिवक्ता सुमित गाोदिया ने तर्क दिया कि निचली अदालत का आदेश कानूनन गलत है। उन्होंने कहा कि अदालत ने मामले को बहुत ही तकनीकी दृष्टिकोण से देखा है। प्रस्तुत किए जाने वाले दस्तावेज मामले के सही निर्णय के लिए अत्यंत प्रासंगिक और आवश्यक हैं, और यदि उन्हें स्वीकार नहीं किया गया तो प्रतिवादी को अपूरणीय क्षति होगी।

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उत्तरदाता (वादी) का तर्क: अधिवक्ता श्रुति शेखर और इंद्रजीत सिन्हा ने इसका विरोध करते हुए कहा कि कमर्शियल कोर्ट के मुकदमों का निपटारा तेजी से होना चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि प्रतिवादी को अनंत काल तक सबूत पेश करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, खासकर तब जब उन्हें पहले ही कई अवसर दिए जा चुके हैं।

हाईकोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणी

हाईकोर्ट ने माना कि कमर्शियल कोर्ट के मामलों में तेजी जरूरी है, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने BGS SGS SOMA JV और Ambalal Sarabhai Enterprises के मामलों में कहा है। हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इसका मतलब यह नहीं है कि कार्यवाही कानून के अनुसार न चलाई जाए।

खंडपीठ ने कहा:

“इस मामले में वह सिद्धांत लागू नहीं होता क्योंकि यह मुकदमा 2017 में दायर किया गया था और वादी ने स्वयं सितंबर 2024 में अपने सबूत बंद किए हैं।”

प्रक्रियात्मक कानून पर टिप्पणी: अदालत ने कहा कि प्रक्रियात्मक कानून का उद्देश्य न्याय प्रशासन में सहायता करना है, बाधा डालना नहीं। कोर्ट ने टिप्पणी की:

“प्रक्रियाएं हमेशा न्याय की दासी (handmaid of justice) के रूप में देखी गई हैं, न कि अन्याय को पवित्र करने के साधन के रूप में… प्रक्रियात्मक नियम लुब्रिकेंट (स्नेहक) की तरह हैं, प्रतिरोधक नहीं।”

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सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला: हाईकोर्ट ने सुगंधि बनाम राजकुमार (2020) और लेवाकु पेड्डा रेड्डम्मा (2022) के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि यदि दस्तावेज न्यायपूर्ण निर्णय के लिए आवश्यक हैं, तो देरी होने पर भी हर्जाना लगाकर उन्हें स्वीकार किया जाना चाहिए, न कि पूरी तरह खारिज कर देना चाहिए।

कोर्ट का निर्णय

अदालत ने पाया कि निचली अदालत ने दस्तावेजों को अस्वीकार करके गलती की है।

  1. आदेश रद्द: ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित 12.09.2025 का आदेश रद्द कर दिया गया।
  2. दस्तावेज स्वीकार: याचिकाकर्ता को अतिरिक्त दस्तावेज पेश करने की अनुमति दी गई।
  3. हर्जाना: इस अनुमति के बदले याचिकाकर्ता को 25,000 रुपये का भुगतान ‘झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण’ को करना होगा।
  4. समय सीमा: चूंकि मामला 2017 का है, हाईकोर्ट ने निचली अदालत को निर्देश दिया कि वह मुकदमे का निपटारा 31 मार्च 2026 तक अनिवार्य रूप से कर दे।
  5. अगली सुनवाई: पार्टियों को 28 नवंबर 2025 को ट्रायल कोर्ट के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया गया।

केस विवरण

  • केस शीर्षक: रीता वर्मा बनाम चेतन एडेसेरा व अन्य
  • केस नंबर: C.M.P. No. 1086 of 2025
  • कोरम: चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर

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