POSH Act | दूसरे विभाग के कर्मचारी के खिलाफ भी जांच कर सकती है पीड़िता के कार्यस्थल की ICC: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि ‘कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013’ (POSH Act) के तहत पीड़ित महिला के कार्यस्थल पर गठित आंतरिक शिकायत समिति (ICC) को किसी दूसरे विभाग के कर्मचारी के खिलाफ भी शिकायत सुनने का पूरा अधिकार है।

जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की पीठ ने एक आईआरएस (IRS) अधिकारी की अपील को खारिज करते हुए कहा कि POSH अधिनियम के तहत ‘कार्यस्थल’ (Workplace) की परिभाषा व्यापक है और इस कानून की व्याख्या इसके सामाजिक कल्याण के उद्देश्य को ध्यान में रखकर की जानी चाहिए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अधिनियम की धारा 11 में प्रयुक्त वाक्यांश “जहां प्रतिवादी एक कर्मचारी है” (where the respondent is an employee) केवल एक प्रक्रियात्मक प्रावधान है और यह किसी ICC के क्षेत्राधिकार पर रोक नहीं लगाता।

मामले का संक्षिप्त सारांश और परिणाम

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी सवाल यह था कि क्या एक सरकारी विभाग की ICC किसी दूसरे विभाग में कार्यरत अधिकारी के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच कर सकती है। अपीलकर्ता, जो एक आईआरएस अधिकारी हैं, ने खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग (जहां शिकायतकर्ता कार्यरत थीं) की ICC के क्षेत्राधिकार को चुनौती दी थी। उनका तर्क था कि केवल उनके अपने विभाग (राजस्व विभाग) की ICC ही उनके खिलाफ जांच करने के लिए सक्षम है। सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट और केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) के फैसलों को बरकरार रखा।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला 2004 बैच की एक आईएएस (IAS) अधिकारी (पीड़ित महिला) द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत से जुड़ा है, जो घटना के समय खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग में संयुक्त सचिव के पद पर तैनात थीं। उन्होंने आरोप लगाया कि 2010 बैच के आईआरएस अधिकारी (अपीलकर्ता), जो उस समय केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) में ओएसडी (जांच) के पद पर थे, ने 15 मई 2023 को कृषि भवन, नई दिल्ली स्थित उनके कार्यालय में उनका यौन उत्पीड़न किया।

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घटना के बाद, अधिकारी ने एफआईआर दर्ज कराई और 24 मई 2023 को अपने ही विभाग की ICC के समक्ष POSH अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज की। ICC ने 13 जून 2023 को अपीलकर्ता को नोटिस जारी किया। अपीलकर्ता ने क्षेत्राधिकार की कमी का हवाला देते हुए इस नोटिस को CAT के समक्ष चुनौती दी। CAT ने 23 जून 2023 को उनकी याचिका खारिज कर दी, जिसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने भी 30 जून 2023 को CAT के आदेश को सही ठहराया। इसके बाद अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

पक्षों की दलीलें

अपीलकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विपिन सांघी ने तर्क दिया कि सिविल सेवकों के लिए केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964 एक पूर्ण कोड है। उन्होंने POSH अधिनियम की धारा 11 का हवाला देते हुए कहा कि इसमें लिखा है “जहां प्रतिवादी एक कर्मचारी है”, जिसका अर्थ है कि जांच उसी कार्यस्थल की ICC द्वारा की जानी चाहिए जहां आरोपी कार्यरत है। उन्होंने जोर देकर कहा कि चूंकि केवल उनका विभाग (राजस्व विभाग) ही उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकता है, इसलिए खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग की ICC के पास जांच का अधिकार नहीं है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि धारा 19(h) के तहत, यदि आरोपी शिकायतकर्ता के कार्यस्थल का कर्मचारी नहीं है, तो एकमात्र उपाय भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत कार्रवाई शुरू करना है।

दूसरी ओर, केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने तर्क दिया कि अपीलकर्ता की व्याख्या POSH अधिनियम के उद्देश्य को ही विफल कर देगी। उन्होंने कहा कि अधिनियम में ‘कार्यस्थल’ और ‘नियोक्ता’ की व्यापक परिभाषाएं यह दर्शाती हैं कि विधायिका का इरादा सभी शिकायतों का निवारण सुनिश्चित करना था। उन्होंने तर्क दिया कि धारा 13(3) के तहत, जांच करने वाली ICC अपनी सिफारिशें आरोपी के नियोक्ता को भेज सकती है, जिससे विभागों के बीच का अंतर समाप्त हो जाता है।

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कोर्ट का विश्लेषण

सुप्रीम कोर्ट ने POSH अधिनियम के प्रावधानों की विस्तृत व्याख्या की।

धारा 11 की व्याख्या कोर्ट ने धारा 11(1) में “where” (जहां) शब्द पर अपीलकर्ता की निर्भरता को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि यहां “where” शब्द का प्रयोग किसी भौतिक स्थान के संदर्भ में नहीं, बल्कि एक स्थिति या शर्त (“in case” या “यदि”) के रूप में किया गया है।

“धारा 11 में ‘जहां प्रतिवादी एक कर्मचारी है’ वाक्यांश का उपयोग अनिवार्य रूप से एक प्रक्रियात्मक ट्रिगर है, जो ICC को यह निर्देश देता है कि वह आरोपी पर लागू होने वाले सेवा नियमों के अनुसार जांच करे। यह किसी विशिष्ट ICC को शिकायत सुनने से रोकने वाली कोई क्षेत्राधिकार संबंधी बाधा नहीं है,” कोर्ट ने टिप्पणी की।

कार्यस्थल की परिभाषा कोर्ट ने POSH अधिनियम की धारा 2(o)(v) पर प्रकाश डाला, जो ‘कार्यस्थल’ की परिभाषा का विस्तार करती है और इसमें “रोजगार के दौरान कर्मचारी द्वारा दौरा किया गया कोई भी स्थान” शामिल है।

“यदि हम POSH अधिनियम के प्रावधानों की व्याख्या इस तरह करें कि केवल आरोपी के कार्यस्थल की ICC ही शिकायतों की जांच कर सकती है… तो यह अधिनियम के विस्तारित दायरे के उद्देश्य को ही विफल कर देगा,” पीठ ने कहा।

कोर्ट ने तर्क दिया कि पीड़ित महिला को आरोपी के कार्यस्थल की ICC के पास जाने के लिए मजबूर करना उसके लिए “प्रक्रियात्मक और मनोवैज्ञानिक बाधाएं” पैदा करेगा।

दो-चरणीय जांच प्रक्रिया अनुशासनात्मक प्राधिकरण के मुद्दे पर, कोर्ट ने कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) के 16 जुलाई 2015 के कार्यालय ज्ञापन (Office Memorandum) का उल्लेख किया। कोर्ट ने समझाया कि सरकारी कर्मचारियों के लिए जांच प्रक्रिया में दो चरण शामिल हैं:

  1. तथ्यान्वेषी जांच (Fact-Finding Inquiry): पीड़ित महिला के कार्यस्थल की ICC आरोपों की सत्यता जांचने के लिए प्रारंभिक जांच करती है।
  2. औपचारिक अनुशासनात्मक जांच: यदि आरोप सही पाए जाते हैं, तो रिपोर्ट आरोपी के अनुशासनात्मक प्राधिकारी को भेजी जाती है। यदि प्राधिकरण चार्जशीट जारी करने का निर्णय लेता है, तो आरोपी के विभाग की ICC औपचारिक कार्यवाही के लिए ‘जांच प्राधिकारी’ (Inquiring Authority) के रूप में कार्य करती है।
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कोर्ट ने कहा:

“यह केवल एक तथ्यान्वेषी जांच है जिसे पीड़ित महिला के कार्यस्थल पर गठित ICC द्वारा किया जाना है… यह तथ्य कि अंततः आरोपी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई उसके नियोक्ता और उसके विभाग द्वारा की जानी है, पीड़ित महिला के कार्यस्थल की ICC को तथ्यान्वेषी जांच करने से रोकने के लिए बाधा नहीं बन सकता।”

फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने अपील को खारिज करते हुए फैसला सुनाया कि पीड़ित महिला के विभाग की ICC तथ्यान्वेषी जांच करने के लिए सक्षम है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि ICC की रिपोर्ट (जिसे सीलबंद लिफाफे में रखा गया था) को आगे की कार्रवाई के लिए अपीलकर्ता के विभाग को भेजा जाए, ताकि सेवा नियमों के अनुसार उचित कदम उठाए जा सकें।

कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला:

“POSH अधिनियम की धारा 11 में निहित वाक्यांश ‘जहां प्रतिवादी एक कर्मचारी है’ की व्याख्या इस अर्थ में नहीं की जा सकती कि किसी आरोपी के खिलाफ ICC की कार्यवाही केवल उसके अपने कार्यस्थल पर गठित ICC के समक्ष ही शुरू की जा सकती है।”

केस डिटेल्स:

  • केस टाइटल: डॉ. सोहेल मलिक बनाम भारत संघ और अन्य
  • केस नंबर: सिविल अपील संख्या 404/2024
  • कोरम: जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई
  • साइटेशन: 2025 INSC 1415

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